चिया मेरी उड़ेगी… –    प्रीता जैन : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : करीब 7-8 साल बाद पोस्टिंग पर भोपाल आना हुआ, उसी शहर फिर आकर वह अपना सा लगने लगता है वही जानी-पहचानी सड़कें देखे-भाले रास्ते और परिचित चेहरे…कुल मिलाकर दिल को सुकून मिल रहा था,

गृहस्थी बसाने में ज़्यादा समय नहीं लगा जल्दी ही ज़िन्दगी की गाड़ी नियत ढर्रे पर भागने लगी| जबसे आई हूँ सोचती हूँ भोपाल आना और भी अच्छा लगेगा जब प्यारी बेटी चिया व उसकी मम्मी वंदना से मिल लूंगी, बातें तो फ़ोन पर होती रहतीं किन्तु इतने सालों बाद मिलने के लिए आतुर हो रही थी|

एक-दूसरे के हालचाल से ज़्यादा यह जानने के लिए बेचैन थी कि एकाएक बारहवीं के बाद चिया को मेडिकल ना कराकर अन्य कोर्स करने की इजाज़त कैसे दे दी? पोस्ट ग्रेजुएशन अपनी इच्छानुसार कर सकी ऐसा कब और कैसे हो सका? जानने के लिए वास्तव में अधीर थी मैं| 

पहली दफ़ा यूँ तो सरकारी बंगला रहने को मिल रहा था लेकिन ऐसी कॉलोनी में रहना शुरू किया, जो मुख्य  बाज़ार के आसपास थी रोज़मर्रा की वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाती थीं| एक दिन शाम को घूमते हुए वंदना से मेरी मुलाक़ात हुई

कुछ देर बातचीत करके ऐसा लगा जैसे वर्षों पुरानी जान-पहचान हो इस नितान्त अजनबी शहर में किसी से अपनापन लगा, फिर तो अधिकतर मिलने लगे एक-दूसरे के घर भी आना-जाना होने लगा ये दोस्ती कब घनिष्ठ रिश्ते में बदल गई पता ही ना लगा|

मेरा बेटा कबीर और वंदना की बेटी चिया एक ही कक्षा में थे कबीर पढ़ाई-खेलकूद दोनों में सामान्य था पर वंदना की बेटी चिया पढ़ने में होशियार मेधावी थी फिर भी वंदना खुश व संतुष्ट ना
रह पाती, उसे लगता हर क्षेत्र में आगे ही आगे रहना है इसलिए उसकी तुलना साथ के अन्य बच्चों से करती ही रहती|

चिया को लेकर वंदना ने कई सपने बुने हुए थे पर एक सपना तो चिया को पूरा
करना ही करना था बारहवीं करते ही किसी अच्छे नामी इंस्टिट्यूट से मेडिकल की पढ़ाई, कभी-कभी मुझे वंदना के व्यवहार पर हंसी भी आती…..

चिया कितनी भी मेहनत करले रात-दिन एक करदे पर फिर भी उसका बोलना नहीं रुकता| कुछ तो कर चिया कुछ तो कर…..फिर झल्लाकर चिया भी कहती यह कुछ की क्या परिभाषा है इसे कैसे नापते हैं बता देना, दिन-रात दोनों माँ-बेटी की नोंकझोंक चलती रहती चिया की मेहनत जारी रहती और वंदना का बोलना| 



ऐसा भी नहीं वंदना सिर्फ बोलती ही रहती अपनी कई इच्छाएं-अरमान भी उसने भुला दिए थे कहीं घूमने-फिरने ना जाती यहां तक कि कॉलोनी में होने वाली किटी पार्टी अथवा दूसरी गतिविधियों को भी अनदेखा कर देती, बस यही कहती…

मेडिकल में एडमीशन के लिए समय पर खाना-पीना व पढ़ना ज़रूरी है इसलिए सारा दिन चिया को देखने में ही निकल जाता है एक बार एडमीशन हो जाए फिर तुम सबके साथ मैं भी एन्जॉय किया करूंगी|

एक वाक्या तो आज भी याद कर हंसी आती है बारिश की वजह से मौसम बड़ा ही सुहावना हो रहा था सभी लोग घरों से बाहर निकल ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे तभी एकाएक लाइट चली गई अब तो और भी सबको बाहर आने का बहाना मिल गया,

किन्तु ऐसे समय में भी देखा चिया पढ़ाई कर रही है और वंदना इमरजेंसी छोटी सी टॉर्च पकड़े उसको पढ़ने के लिए प्रेरित करती हुई बोलती जा रही है, अगले साल किसी अच्छे कॉलेज में आ जाएगी तब इस मौसम का दोगुना मज़ा ले लेना बारिश तो हर साल आएगी अभी तो सिर्फ पढ़-लिख इधर-उधर ना देख| 

खैर| हमारा भोपाल से ट्रांसफर हो गया फिर इतने सालों बाद अचानक आना हुआ तो मन बीती यादों के जाल में फंसता रहा और एक-एक पल आँखों के आगे आने लगे जैसे कल ही की
बात हो, कितनी भी जल्दी करलो फिर भी नए घर को व्यवस्थित करने में समय तो लग ही जाता है

आखिरकार वंदना ही मुझसे मिलने आ गई बोली रहा नहीं गया तुझसे बिना मिले वर्षों बाद दोनों मिले लग रहा था क्या-क्या बातें करलें बोलने-सुनाने को बहुत कुछ था बातों का कहीं से कहीं तक अंत नहीं था|

कबीर व चिया दोनों ही पढ़ाई करने बाहर चले गए थे वंदना कहने लगी जब बच्चे हॉस्टल चले जाते हैं तो घर में कितना अकेलापन महसूस होता है समझ नहीं आता सारा दिन क्या करूँ
क्या नहीं?

हाँ! सच कह रही है वक्त काटे नहीं कटता पर बहुत उत्सुक हूँ जानने के लिए चिया ने मेडिकल की पढ़ाई ना कर इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स कैसे किया और तूने भी कैसे इजाज़त
दे दी? ये सब कैसे हुआ बता सब मुझे…|



तुझे तो पता ही है मेरा व अतुल दोनों का मन चिया को डॉक्टर बनाने का था खासकर मेरा तो बहुत ही था पर धीरे-धीरे यह अहसास होने लगा चिया कहती कुछ नहीं है लेकिन इसका मन किसी और क्षेत्र में जाने का है|

आज तेरे आगे अपना मन खोल रही हूँ रूढ़िवादी परम्पराएं व अपनों की सोच की वजह से जो मैं अपनी ज़िन्दगी में ना कर सकी वो सब चिया से करवाना चाहती थी, उसी में अपना प्रतिबिम्ब देख यही चाहती रही मेरे ही मन का पढ़े-लिखे उठे-बैठे|

एक दिन मैं व चिया दोनों बैठे थे अचानक चिया कहने लगी…माँ लड़की का जन्म लेना अच्छा नहीं होता ऐसा लगता है जैसे किसी जंज़ीर में बंधा हुआ है एक छोर उसके पास तथा दूसरा किसी और के हाथ होता है, अपनी
मनमरज़ी का लड़की कुछ नहीं कर पाती हमेशा दूसरे की मरज़ी से जीना ही उसकी नियति बन
जाता है| आप भी कहां अपने मन का कर पाईं? पहले नानाजी के कहेनुसार करती गईं फिर शादी के बाद पापा के अनुसार रहने को विवश हो गईं जैसा उन लोगों ने चाहा आपने अपना जीवन बिताने की ठान ली, इसी तरह मेरे साथ हो रहा है आज आपके हाथों मेरे जीवन की डोर है कल किसी और
के हाथों…..| क्या एक लड़की अपने मन का नहीं जी सकती? ज़िन्दगी के कुछ फैसले स्वयं नहीं ले सकती, किसी को तो पहल करनी होगी ना माँ…नहीं तो सारी बातें सिर्फ किताबों व विज्ञापनों तक ही सीमित रह जाएंगी सच्चाई में तो अभी भी सब वैसा ही है जैसा वर्षों पहले था|

माँ हम में से कोई तो आगे आएगा जो अपनी बेटी-बहन को उसके स्वतंत्र अस्तित्व वजूद से जीने देगा उसकी राह में बाधक नहीं होगा हम लड़कियों का भी पूरा हक़ है अपने मन की करें अपने अनुसार इस सुन्दर सी ज़िन्दगी को जिएं, इसकी शुरुआत होनी बहुत ज़रूरी है माँ…इसकी पहल किसी ना किसी को तो करनी होगी यक़ीनन आज से इसी वक्त से…| 

ये सब सुन मैं तो अवाक रह गई मैंने तो सोचा भी ना था मेरी चिया इतनी समझदार और परिपक्व है इतना सब अपने जेहन में रखे हुए है मेरा पूरा शरीर सुन्न सा हो गया लगा, जैसे- शरीर में जान नहीं है लेकिन फिर अगले ही पल मेरी चेतना लौटी|

अंतरात्मा से हलचल हुई सही तो कह
रही है…हममें से कोई तो आगे आएगा जैसा बेटियां चाहती हैं उनकी चाहत को पूरा करने उनके वजूद का अहसास कराने|

मैं…! हाँ मैं भी तो इन्हीं में से एक हूँ जो अपनी ख्वाहिशों अपनी बंदिशें बेटी पर लगा रही थी अपनी मन मरज़ी से उसे जीने दे रही थी पर नहीं अब और नहीं, आज से जो चिया चाहेगी वही होगा उसी की इच्छानुसार ज़िन्दगी बीतेगी उसकी चाहत इच्छा सर्वोपरि होगी| 

चिया नाम भी तो मैंने रखा है अपनी बिटिया को इस खुले आसमान में अपने अरमानों के साथ जी भर उड़ने स्वतंत्र विचरण के लिए, आज से मेरी चिया जीवन का हर क्षण अपनी मरज़ी के साथ बिताएगी कदम दर कदम आगे रखेगी|

मेरी बेटी मेरा अभिमान-गौरव तथा मेरी अभिलाषा है… इसकी ख़ुशी में हमारी ख़ुशी है, आज मेरी चिया पर कोई ज़बरदस्ती नहीं है स्वयं की रूचि से पहले इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स किया और अब नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन अहमदाबाद से मनचाहे क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है| ईश्वर से यही प्रार्थना है वो उड़े खूब ऊपर तक जाए तथा उसका जीवन खुद के बुने सपनों के इंद्रधनुषी रंगों से सदा-सदा के लिए सरोबार रहे
आबाद रहे…|  

  प्रीता जैन

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