चाहत – अमिता गुप्ता “नव्या

मां… मां…आज क्या है?

अरे सोनू, मैं तो बताना ही भूल गई,जा जल्दी से नहा धोकर तैयार हो जा,अभी पूजा में बैठना है।

 

मां,”लेकिन बताओ तो सही आज है क्या?”

आज तुम्हारे दादा जी की बरसी है।

 

अच्छा मां, मैं जल्दी से तैयार हो कर आता हूं,और दादी को भी साथ लाता हूं।

शीला को सोनू का दादी को साथ में लाना शायद अच्छा नहीं लगा।

 

शीला ने फ़ौरन कहा उसकी कोई जरूरत नहीं है, मां जी अभी आ जाएंगी, पंडित जी को आने दो पहले।

 

सोनू सिर हिलाकर अंदर चला गया,जाते जाते दादी के कमरे पर नजर डाली… चारों तरफ सन्नाटा पसरा था।

सोनू के पैर स्वयं ही ठिठक गए,वह जैसे ही अंदर गया एकटक दादी को निहारने लगा…

गाल पर पड़ी झुर्रियां, दादा जी की तस्वीर निहारती आंखें और आंखों से बहती अश्रुधार, कुछ मन ही मन बुदबुदाते होंठ…

सोनू कोशिश कर रहा था दादी के हाव-भाव समझने की।

दादी आप रो क्यूं रही हैं?? आपको दादा जी की याद आ रही है, बड़ी ही मासूमियत से सोनू ने अपनी दादी श्यामा से पूछा।

श्यामा ने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया,शायद स्मृतियों में गोता लगा रही थीं।

अचानक कोमल हाथों के स्पर्श से  श्यामा चौंक गई, स्वयं को संभालते हुए वह सोनू से बोली।

 




“क्या बात है बेटा??”

 

दादी,आप रो क्यूं रहे हो,आपको दादा जी की याद आ रही है क्या??

मुझे भी आती है मैं तो रोज उनसे बातें करता हूं,शाम को वो तारा बनकर चमकते हैं आसमान में,आज मैं उन्हें आपसे मिलवाऊंगा, फिर आप कभी मत रोना,आप भी उनसे बात कर लेना।

 

सोनू की बात सुनकर श्यामा के आंसू कुछ थम से गए। वह कुछ और बोलती इतने में रसोईघर से शीला की आवाज सुनाई दी,सोनू तैयार हो गया तू।

 

अच्छा दादी मां मैं नहाने जा रहा हूं आप रूको मैं अभी आता हूं नहीं तो मां डांटेगी मुझे।

 

पंडित जी ने पूजा आरंभ की श्यामा,शीला और सोनू तीनों ही पूजा के लिए बैठे,

सुशील सोनू के पिता, आफिस से छुट्टी न मिलने के कारण पूजा में शामिल नहीं हो पाए।

 




जैसे ही पूजा समाप्त हुई,घर में बने भोजन को देखकर श्यामा की आंखों से टप-टप आंसू फिर बहने लगे,पूरे एक वर्ष बाद अपने स्वर्गवासी पति का मनपसंद खाना देख कर शायद अपनी भावनाओं को वह रोक नहीं पायी।

 

जैसे ही खाने की थाली श्यामा के सामने आयी रोज की तरह आज भी श्यामा ने अपनी थाली का आधा खाना अलग रख दिया,और उसे गाय को दे आयी,बाकी का खाना स्वयं ही खा लिया।

 

शीला को आज फिर यह सब देखकर अच्छा नहीं लगा…

 मां जी, मैं आपसे बार-बार कहती हूं,यह आधा खाना आप थाली से क्यूं निकाल देती हैं, इतना समझाने के बाद भी आपको समझ नहीं आता।

 

श्यामा ने आज चुप्पी तोड़ते हुए शीला की बात का जवाब दिया,

“जब से मैं इस घर में विवाह कर आई,तब से आज तक मैंने कभी भी अकेले खाना नहीं खाया,भले ही शिवमंगल जी आज मेरे साथ नहीं पर मैंने खुद को कभी अकेला नहीं समझा था।”

वह हमेशा कहते थे कि थाली एक ही होगी चाहे एक रोटी हो या भरा थाल,हम दोनों हमेशा आधा-आधा बांटकर खाएंगे जिससे हमारा प्यार,समर्पण,हमारी चाहत कभी कम नहीं होगी।

यह उनकी चाहत ही थी जिसे मैं आज भी जिन्दा रखने की कोशिश करती हूं।

श्यामा की बातों का कोई भी प्रत्युत्तर शीला के पास नहीं था,अब वह भी ऐसी चाहत के सम्मुख नतमस्तक थी।

 

स्वरचित मौलिक

… अमिता गुप्ता “नव्या”

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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