बीमार हूँ लाचार नहीं-मुकेश कुमार

प्रताप जी का दिल्ली में शर्ट की अपनी खुद की फैक्ट्री थी। गांधीनगर के होलसेल बाजार में उनकी खुद की अपनी दुकान भी थी उनके तीनों बेटे मिलकर दुकान को संभालते थे।  प्रताप जी पैसे की कमी की वजह से स्वयं तो पढ़ाई नहीं कर पाए थे

क्योंकि वह खुद एक गरीब परिवार से आते थे जब वह दिल्ली आए थे तो वह एक साधारण से कारीगर थे जो शर्ट की सिलाई करते थे।  लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर आज उन्होंने इतना बड़ा मुकाम हासिल किया है। उन्होंने अपने बच्चों को दिल्ली के सबसे महंगे स्कूलों में पढ़ाया।

अपने बच्चों की वह हर इच्छा पूरी करते थे जो उनके जीवन में आगे बढ़ने के लिए जरूरी था।  लेकिन उनके बच्चे अपने पापा को बहुत कोसते रहते थे क्योंकि प्रताप जी अपने बच्चों को फिल्में देखने के लिए पैसा नहीं देते थे और ना ही बड़े बड़े रेस्टोरेन्ट में खाना खाने के लिए।

प्रताप जी कहा करते थे कि बेटा आज तुम जहां हो इसके लिए हमने कितना मेहनत किया है तुम्हें इसका अंदाजा नहीं है। घर में नौकर चाकर की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी खाना प्रताप जी की पत्नी सुनीता जी ही बनाती थी और पूरा परिवार एक साथ ही खाना खाता था।



बेटे कहते, “पापा आप बहुत कंजूस हो पता नहीं ये  पैसे आप मरोगे तो अपने साथ ही ले जाओगे। आखिर जीवन में रखा क्या है।” शायद वह इसलिए कहते थे क्योंकी उन्होंने अभी तक ₹1 भी अपनी मेहनत से कमाया नहीं था। प्रताप जी के तीनों बेटे बड़े हो गए थे तो अब वे इनकी शादी करने की सोच रहे थे 

लेकिन उसके पहले प्रताप जी का मानना था कि इन तीनों का अलग अलग बिजनेस करा दूं और जो उनका 4 मंजिला फ्लैट है उसमें से तीन फ्लैट  तीनों बेटों के नाम कर दूं और नीचे वाले फ्लैट खुद प्रताप जी और और उनकी पत्नी सुनीता जी अपने लिए रख ले।

प्रताप जी ऐसा इसलिए सोचते थे कि तीनों बेटे आपस में कभी एक दूसरे से लड़ाई ना करें उनका अपना खुद का बिजनेस रहेगा तो एक दूसरे से किसी का लेना देना भी नहीं रहेगा और प्यार से सब भाई मिलकर रहेंगे। संडे के दिन था। 

तीनों बेटों को उन्होंने अपने पास बुलाया और उनको बोला कि देखो बेटा मैं अपना बिजनेस  तुम तीनों में बांटना चाहता हूं  हमारा जो फ्लैट है उसमें से एक-एक फ्लैट तीनों को दे देता हूं।  लेकिन शर्त यह है कि तुम लोग जितना भी कमाओगे अपने कमाई का 10 प्रतिशत हिस्सा हर महीने मेरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दोगे।

यह सुनकर तीनों बेटे बोल उठे पापा हम आपको अपने से अलग थोड़ी कर रहे हैं हम तीनो भाई चार-चार महीने अपने साथ आपको रखेंगे। प्रताप जी बोले नहीं बेटा मुझे किसी के साथ नहीं रहना है मैं नीचे अकेले मैं और तुम्हारी मम्मी रहेंगे तुम जो 10 परसेंट हमें दोगे उसी से हम अपना गुजारा कर लेंगे।

प्रताप जी के तीनों बेटे इस बात के लिए मान गए। समय के साथ प्रताप जी ने अपने तीनों बेटों को बारी-बारी से शादी कर दिया और वह अपना जीवन सुखी पूर्वक जीने लगे।  प्रताप जी ने अब अपने बिजनेस से रिटायरमेंट ले लिया था अब उनको कोई मतलब नहीं था बिजनेस में क्या घाटा हो रहा है क्या फायदा हो रहा है।

कहने को तो प्रताप जी के तीनों बेटे उसी फ्लैट में रहते थे लेकिन अपने  मम्मी पापा से महीनों दिन हो जाते थे मुलाकात करे हुए भी। उनकी बहू को भी प्रताप जी से कोई मतलब नहीं था वे सब अपनी ज़िंदगी मे व्यस्त रहती थी सास-ससुर कैसे हैं। ठीक भी हैं की नहीं है कोई सुध लेने वाला नहीं था।



एक दिन शाम को प्रताप जी और उनकी पत्नी सुनीता पार्क से घूम कर आए जैसे ही घर में बैठे अचानक से उनकी तबीयत खराब हो गई और वह बेहोश हो गए।  सुनीता जी ने इसकी खबर अपने बहुओं को दी। जल्दी से उन्होने प्रताप जी को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया।

जांच करने के बाद पता चला की प्रताप जी को हार्ट अटैक आया था और जल्दी से इनको ऑपरेशन कराना होगा और ऑपरेशन करने मे कम से कम 8 लाख रुपये  का खर्चा आएगा। 8 लाख का  खर्चा सुनकर तीनो बहुओं ने वहां से धीरे-धीरे खिसक ली और अपने घर पर आ गई।

 

बेटे भी हॉस्पिटल पहुंचे और जैसे ही सबको पता चला कि पापा को इलाज में 8 लाख का खर्चा होना है वह चुपचाप घर आ गए। सुनीता जी को बहुत बुरा लगा कि उनके बेटे अपने पापा को छोड़कर घर चले गए हैं हॉस्पिटल में सुनीता जी अकेले रह गई थी उनको समझ नहीं आ रहा था 

कि पति का इलाज कैसे होगा उन्होने प्रताप जी से सारी बात बता दिया कि तीनों बेटे आए थे सब घर वापस चले गए। प्रताप जी बोले, “सुनीता तुम्हें निराश होने की जरूरत नहीं है सब हो जाएगा।” सुनीता जी ने बाहर जाकर अपने बेटों को फोन किया और उन्होंने बोला बेटा पैसे का इंतजाम करो तुम्हारे पापा का ऑपरेशन करवाना बहुत जरूरी है।

लेकिन तीनों लड़के ने पैसे देने से मना कर दिया सब ने यही कहा कि मम्मी हमारे पास पैसा कहां है हमारा बिजनेस तो बिल्कुल ही घाटे में चल रहा है बल्कि हमारे ऊपर और भी कर्जा हो गया है।  सुनीता जी बहुत परेशान हो गई थी कि कैसे उनके पति का इलाज होगा।

वे सोच रही थी कि उनके पति मेहनत करके आज इतना बड़ा बिजनेस खड़ा किया और जब खुद की जरूरत पड़ी तो बेटे पैसे देने से  मुकर गए। सुनीता जी अपने पति के पास आकर निराश बैठी हुई थी। प्रताप जी ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा कि डॉक्टर ने कब कहा है ऑपरेशन करने के लिए।

सुनीता जी बोली, “उन्होंने तो बोला है पैसा जमा करा दीजिए और ऑपरेशन शुरू हो जाएगा।” उन्होंने बोला कि तुम घर जाओ और मेरा चेक बुक लेकर आओ।  बैंक से जाकर पैसा निकाल लो मेरे अकाउंट में 13 लाख रुपये पड़े हैं। अब सुनीता जी की जान में जान आई चलो ऑपरेशन तो हो जाएगा।



प्रताप जी बोले तुम बारी-बारी से तीनों बेटों के पास फोन लगाओ मुझे उनसे बात करनी है।  प्रताप जी अपने बेटे को फोन करके बोला बेटा तुम तीनों जल्दी से हॉस्पिटल आ जाओ तुम से कुछ जरूरी बात करनी है।  तीनों बेटे आधे घंटे के अंदर ही हॉस्पिटल पहुंच चुके थे।

प्रताप जी तीनों बेटों से कह रहे थे बेटा जब मैं  तीनों का बंटवारा कर रहा था और तुम्हारी कमाई से मैंने जब 10 परसेंट हिस्सा मुझे देने के लिए कहा था तो तुम  तीनों ने कहा था कि बाबूजी आप पैसे का क्या करेंगे हम तीनो भाई है ना आप की सेवा करने के लिए।

आज तुम तीनों लोग मेरा इलाज कराने से मुकर गए यह कह कर कि हमारे पास पैसा नहीं है आज अगर वह 10 परसेंट मैं तुमसे नहीं मांगा होता तो मेरा तो इलाज ही नहीं हो पाता।   आखिर तो बेटे मेरे ही हो मुझे बचपन से ही तुम सब का नेचर पता था।

इसीलिए मैं बुढ़ापे में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता था बेटा याद रखो मैं बीमार जरूर हूं लेकिन लाचार नहीं। प्रताप जी ने अपने बड़े बेटे से कहा यह चेक अपनी मम्मी के साथ ले जाओ और बैंक से पैसे निकाल कर मेरा इलाज करा दो।

प्रताप जी के तीनों बेटे शर्म के मारे बिल्कुल ही चुप हो गए थे और वे अपने पिता से माफी मांगने लगे। दोस्तों इस कहानी का बस इतना ही उद्देश्य है कि आप जितना भी कमाए लेकिन उसमें से कुछ पैसा आप अपने भविष्य के लिए जरूर जमा करके रखें आप  अपने बच्चों के सहारे ना रहे हैं

बच्चे हमें बुढ़ापे में करेंगे या नहीं करेंगे अगर हम खुद से ही कुछ जमा करके रखेंगे तो हमें फिर किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।  आज अगर प्रताप जी अपने पास पैसा जमा नहीं करते तो शायद उनका इलाज नहीं हो पाता।

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