भोर का उजाला – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

रीतिका के पापा आइये चाय बन गईं। चाय पी लीजिए। कहाँ है? आइये चाय ठंडी हो जाएगी। सुबह सुबह कहाँ चले गए? रीतिका की माँ चाय का कप लिए अपने पति को चाय पीने के लिए ढूंढ रही थी। जब घर मे दिखाई नहीं दिए तो फिर अपने आप मे ही बोलने लगी, पता नहीं कहाँ चले गए? कहकर जाना चाहिए था। इनके चक्कर मे मेरी भी चाय ठंडी हो जाएगी। ऐसा करती हूँ मै अपना पी लेती हूँ, ये जब आएगे तो उन्हें गर्म करके दें दूंगी।

वे अभी चाय पीने ही जा रही थी कि तभी उनके पति  मिठाई का डब्बा लेकर अंदर आए। उन्हें देखते ही उन्होंने कहा कहाँ चले गए थे?चाय ठंडी हो रही है। उसके पति ने ख़ुश होते हुए कहा अरे चाय को छोड़ो, यह मिठाई खाओ और यह कहते हुए उन्होंने अपनी पत्नी के मुँह मे मिठाई का टुकड़ा डाल दिया। मिठाई किस ख़ुशी मे लाए है?  उनकी पत्नी ने पूछा। तभी दौड़ते हुए उनका बेटा आया और बोला पापा मुझे भी मिठाई दीजिए और अपनी माँ से बोला आज पापा का सपना पूरा हो गया

इस ख़ुशी मे मिठाई आई है।रीतिका परीक्षा मे पास हो गईं? माँ ने खुश होते हुए पूछा। हाँ माँ, अब दीदी इंजीनियर बनेगी और पापा का सपना पूरा होगा। हाँ बेटा, मेरा सपना है कि मेरे बच्चे काबिल बने, अपने पैरो पर खडे हो, समाज मे हमारा नाम रोशन करे। रीतिका का चयन तो अभी शुरुआत है, अभी कृतिका और तुम्हे भी सफलता हासिल करनी है तब जाकर मेरा सपना पूरा होगा। पापा ने अपने बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।उनकी बातो को सुनकर रीतिका और कृतिका भी उठ कर आई

और प्यार से भाई को डांटते हुए बोली – भाई साहब आपको तो आर्मी ज्वाइन करनी है तो आप सुबह उठकर दौड़ लगाते हो, पर सुबह सुबह शोर मचा कर हमें क्यों जगा रहे हो?  हम दोनों बहने देर रात तक पढ़ती है तो हमें चैन से सोने दिया करो और चुपचाप  दौड़ने चले जाया करो। रितेश ने भी उनके व्यंगपूर्ण  बात का जबाब व्यंग मे ही देते हुए कहा दीदी जी अभी सुबह नहीं हो रहा है, दोपहर हो रहा है और मै दश  किलोमीटर दौड़ लगाकर आ गया हूँ। तो अब कृपया आपलोग भी जागने की कृपा करे।

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आपलोगो की जानकारी के लिए बता दूँ कि आर्मी मे सिर्फ दौड़न से चयन नहीं होता है उसके लिए पढाई  भी करनी पड़ती है जो कि मै करता हूँ।बच्चो की नोक – झोक ऐसे ही चलती रहती, लेकिन बीच मे माँ ने टोकते हुए कहा- आगे का फैसला तुमलोग बाद मे कर लेना अभी नहा धोकर तैयार हो जाओ। हम मंदिर जाकर भगवान का आशीर्वाद  लेते है और उन्हें धन्यवाद देते हुए उनसे प्रार्थना करेंगे कि आगे भी ऐसे ही हम पर कृपा बनाए रखे। रीतिका घर की सबसे बड़ी बेटी है जिसका चयन रेलवे के द्वारा आयोजित होने वाले इंजीनियरिंग के परीक्षा मे  हुआ था।

सभी इस बात से खुश थे खाशकरके उसके माँ – पापा, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अपने बच्चो को उच्च शिक्षा दिला सके। इसलिए उनकी बेटी ने यह निर्णय लिया था कि वह दिन रात मेहनत करेगी और रेलवे के परीक्षा मे पास होंगी। उसे पता था कि रेलवे के इंजिनियरिंग परीक्षा मे पास होने पर रेलवे अपने पैसो से सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज मे पढ़ाती है और डिग्री के बाद क्लास वन रैक की नौकरी प्रदान करती है। उसने आज बहुत मेहनत करके यह सफलता प्राप्त की थी।

रीतिका ने अपने पापा को प्रणाम करते हुए कहा – आज जो सफलता मैंने प्राप्त की है वह आप ही के कारण सम्भव हुआ है। आपने हमे हर कदम पर हौसला दिया है और जितना हो सके हमारी शिक्षा के लिए सुविधा प्रदान की है। कृतिका और रितेश ने भी हाँ मे हाँ मिलाई। बच्चो द्वारा श्रेय देने पर वे  यह सोचते हुए कि बच्चो को क्या मालूम कि उनकी सोच बेटियों के लिए पहले क्या थी अपने अतीत मे चले गए। उनके जीवन मे यदि एक दुर्घटना नहीं घटती तो शायद उनकी सोच नहीं बदलती और आज बच्चियों का जीवन कुछ और ही होता।

उन्हें आज भी वह दिन याद है जब रीतिका का जन्म हुआ था। बेटी पैदा होने के कारण उन्होंने और उनकी माँ ने ऐसा शोक मनाया था लग रहा था  जैसे घर मे किसी की मृत्यु हो गईं हो। उनकी माँ ने रीतिका की माँ को क्या क्या नहीं सुनाया था। आते ही बेटी जन कर रख दी। लगता है जैसे इसका बाप खजाना दें कर विदा किया है इसे तो पाल ही रहे थे अब इसकी बेटी को भी पालो। सोंठ, हलवा तो सोचना ही नहीं था उसे तो माँ ढंग से खाना भी नहीं देती थी।

बच्ची रोती रहती पर काम छोड़कर दुध पिलाने भी नहीं जाने देती थी। कहती थी बेटी है कुछ नहीं होगा। बेटियां तो भूखे प्यासे भी अच्छे से पल जाती है। कभी कभी रीतिका की माँ कहती थी, रीतिका के पापा बाहर जाते वक़्त कुछ पैसे मुझे भी दें जाया करो। बाहर कुछ बिकने आता है तो रीतिका की दादी उसे नहीं खरीद कर देती है इसके कारण वह बहुत रोती है। पर माँ के डर से मैं उसे कभी पैसे नहीं देता था। माँ का तो बहाना था मै खुद भी बेटी पर पैसे खर्च नहीं करना चाहता था।

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अभी हम रीतिका के जन्म के सदमे से उबरे भी नहीं थे कि रीतिका के तीन वर्ष के होते होते कृतिका भी पैदा हो गईं। अब मेरी माँ का जो रोना धोना हुआ कि पूछो मत। उन्होंने रीतिका कि माँ को पहले से भी ज्यादा कोसा। साथ ही अपने को भी जी भर कर कोसा। लगता है मै अभागन बिना पोता देखे ही मर जाउंगी। यह मुझे पोता नहीं देगी। मै तो अपने बेटे की दूसरी शादी करवाउंगी। मेरा तो जन्म ही खराब हो जाएगा।पोता नहीं होगा तो स्वर्ग की सीढ़ी कौन लगाएगा? मै तो नर्क मे जलूंगी।

इस बार मैंने भी रीतिका की माँ को सुनाया और जब ट्रक लेकर निकला तो छह महीना तक नहीं आया। दो दो बेटियों का बोझ उठाना पड़ेगा यह सोच सोच कर परेशान रहता था।रीतिका की माँ के लाख कहने पर भी मैंने उसका नाम स्कूल मे नहीं लिखवाया था। हम माँ बेटा का सोचना था कि बेटियों की पढ़ाई मे पैसे क्यों बर्बाद करे? पैसा रहेगा तो उनकी शादी के वक़्त काम आएगा।आखिर बेटियों को पढ़ाकर क्या फायदा है? रीतिका की माँ का सोचना था कि दो बच्चे हो गए उन्हें ही पढ़ा लिखा कर बड़ा करना चाहिए,

पर मुझे और मेरी माँ को एक बेटे की चाहत थी। रीतिका की माँ के नहीं चाहने से क्या होना था? मेरी और मेरी माँ की मर्जी से वह फिर एक बार गर्भवती हुई और ईस्वर की कृपा से एक बेटा पैदा हुआ। हमने धूमधाम से उसका जन्मोत्सव मनाया। माँ ने न जाने कितने मन्नत माँग रखी थी उन्होंने उन सभी को पूरा किया। बेटा एक वर्ष का हो रहा था। उसका पहला जन्मदिन था। मै उसका जन्मदिन मनाने के लिए घर आ रहा था। गाड़ी तेज गति मे थी तभी सामने से एक मोटर बाइक आ गईं

उसे बचाने के चक्कर मे संतुलन बिगड़ गया और ट्रक डीवाइडर से टकरा कर पलट गया। मुझे गहरी चोट आई । दिमाग़ मे चोट के कारण बाया अंग लकवाग्रस्त हो गया। मै एक वर्ष तक बिस्तर पर पड़ा रहा। इलाज तो इंश्योरेंस के पैसो से हो गया पर घर खर्च भी तो जरूरी था। माँ, मै,  रीतिका की माँ और तीन बच्चो को मिलाकर छह जन थे। मै बिस्तर पर था। आमदनी का और कोई जरिया नहीं था। रीतिका की माँ पढ़ी लिखी नहीं थी। वैसे पढ़ा लिखा तो मै भी नहीं था

पर मै ट्रक चलाकर अपने परिवार के जरूरतों को पूरा करता था, पर रीतिका की माँ  गाड़ी नहीं चला सकती थी। ट्रक के मालिक ने कुछ मदद की पर दूसरा कोई कितना मदद कर सकता है। घर चलाने के लिए रीतिका की माँ ने  बच्चो को दादी के पास छोड़ कर लोगो के घरो मे जाकर बर्तन धोने और झाड़ू पोछा करने का काम शुरू किया। इसतरह से एकवर्ष तक उसने बहुत ही मेहनत करके घर  का खर्च चलाया।बिस्तर पर पड़े पड़े मुझे एहसास हुआ कि पढ़ाई लिखाई खाशकर के बेटियों के लिए कितनी जरूरी है।

आज मेरी पत्नी पढ़ी लिखी होती तो उसे लोगो के जूठे बर्तन नहीं धोने पड़ते। तब ही मैंने सोच लिया कि अब जैसे ही ठीक होऊंगा, अपनी बेटियों का नाम एक अच्छे स्कूल मे लिखवा कर उन्हें खूब पढ़ाऊंगा लिखाऊंगा और उन्हें अपने पैरो पर खड़ा करूंगा। भगवान की कृपा से मेरे बच्चे भी पढ़ने मे अच्छे है और सीमित साधनों मे भी मेरी बेटी ने अच्छा परिणाम दिया है।

लतिका पल्लवी 

वाक्य – हमारा बुरा वक़्त हमारे जीवन को नई दिशा दें जाता है

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