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दादी माँ प्रणाम, कहते हुए पैर छूकर विमला जी के पोता पोती अपनी माँ के साथ स्कूल के लिए चले गए। यह उनका प्रतिदिन का काम था, स्कूल जाते वक़्त दादी को उनके कमरा मे जाकर प्रणाम करना और फिर स्कूल के लिए निकल जाना और रात मे भी सोने जाने के पहले दादी को गुड नाइट कहने  उनके कमरे मे आना।

इससे ज्यादा विमला जी का अपने पोता पोती से संबंध नहीं था। बहू भी सुबह चाय लेकर आती और प्रणाम करके चाय पी लेने को कहकर चली जाती। उसके बाद बहू बच्चो को उठाती , उन्हें स्कूल के लिए तैयार करती, उनका टिफिन बनाकर पैक करती और उन्हें बस स्टेण्ड तक छोड़ने जाती।

फिर आकर विमला जी के लिए दलिया चढ़ा देती और पूजाघर साफ करती, पूजा क़ी सारी तैयारी करती। विमला जी का काम  बस पूजा करना रहता था।विमला जी जैसे पूजा करके डाइनिंग टेबल पर आती तब तक उनका दलिया तैयार करके रख देती। नाश्ता करने के बाद विमला जी को फिर से चाय पीने क़ी आदत थी।

बहु चाय बनाकर रख जाती। इन सारी गतिविधियों के बीच सास बहू मे नाममात्र क़ी बातचीत होती थी वह भी कभी कभी, जब विमला जी को दलिया नहीं खाने का मन होता या चाय क़ी जगह काफ़ी पीनी होती थी। विमला जी को नाश्ता देने के बाद अपने पति को नाश्ता देती उनका लंच पैक करती। पति के ऑफिस जाने के बाद वह अपना नाश्ता अपने कमरा मे लेकर चली जाती।

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वह नाश्ता अपने कमरे मे ही करती थी। चाय भी वह रसोईघर मे ही पी लेती। नाश्ता करने के बाद विमला जी आराम करने चली जाती। नौकरानी के आने के बाद बहू फिर नीचे आती और  नौकरानी जब तक झाड़ू पोछा, बर्तन आदि करती तबतक वह कमरा मशीन मे डालकर धो लेती और छत पर जाकर फैला देती। थोड़ी देर आराम करने के बाद

जब विमला जी उठती तो उनकी बहू आकर पूछती माँ आज खाने मे क्या बनेगा? वे जो जो कहती उसे फटाफट बनाकर बच्चो को लेने चली जाती। बच्चो को लाने के बाद विमला जी के लिए खाना परोस देती तबतक बच्चे भी हाथ मुँह धोकर कपड़ा बदल लेते थे। विमला जी के खाने के बाद बहू अपना और बच्चो का खाना लेकर कमरा मे चली जाती.

बच्चे कार्टून देखते हुए खाना खाते।वह भी वही बैठकर खा लेती।बच्चो को थोड़ी देर आराम करने के लिए बोलकर खुद भी थोड़ी देर वह मोबाईल चलाती ।  कुछ समय बाद वह फिर उठती और छत से कपड़े लाती। सारे कपड़ो को तह करके उसे अलमारी मे रख देती विमला जी का कपड़ा उनके कमरा के अलमारी मे रख आती।फिर बच्चो को जगाती, उन्हें लेकर पार्क जाती।

पार्क से आने के बाद बच्चो को कुछ हल्का फुल्का खाने को देती और उनका होमवर्क करवाती। बच्चो के लिए टी वीं खोलकर नीचे आती और रात के खाने क़ी तैयारी करती। सब्जी बनाकर आटा गूथकर रख देती। तब तक उसके पति आ जाते थे। फिर माँ बेटा के लिए चाय बनाकर विमला जी के कमरा मे ले जाती तबतक उसके पति भी हाथ मुँह धोकर पहुंच जाते।

दोनों माँ बेटा चाय पीते हुए बाते करते तभी वह बच्चो के लिए रोटी सेककर उन्हें खाने को दें आती। थोड़ी देर बाद जब विमला जी कहती तो वह गर्म गर्म रोटी सेककर माँ बेटा के लिए डाइनिंग टेबल पर खाना लगा देती। उनके खाने के बाद वह भी अपना खाना लेकर कमरा मे चली जाती और बच्चे ठीक से नहीं खाए रहते थे तो उन्हें अपने हाथो से खिलाकर खुद भी खा लेती।

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बच्चो को खिला पिलाकर उन्हें सुला देती फिर रसोई का बचा काम निपटाती। उसके बाद फिर सोने चली जाती। फिर वही सुबह उठना नहा धोकर नीचे आना सासु जी के लिए चाय बनाना, बच्चो को उठाना वगैरह वगैरह।अब आप सोच रहे होंगे कि मै आपको किसी की दिनचर्या क्यों सुना रही हूँ।

आप सोचिये सुनकर आप इतना बोर फील कर रहे है तो जिसकी यह दिनचर्या है वह कितना बोर होता होगा। लेकिन आज चार वर्ष से यही दिनचर्या है विमला जी के घर की। पहले बच्चे छोटे होंगे तो थोड़ा काम का हेर फेर होगा, परन्तु था ऐसा ही बोरिंग। बहू का बिना बोले सारे काम को सही समय पर कर देना और फिर अपने कमरा मे चले जाना।

बीच बीच मे विमला जी की बेटी जो शादी शुदा और दो बच्चो की माँ थी, अपने बच्चो के साथ आया करती थी। बेटी आती तो बहू का काम कुछ बढ़ जाता परन्तु वह कुछ कहती नहीं थी सारे काम कर देती थी। ननद के बच्चो को खूब प्यार करती बच्चे भी दिनभर मामी मामी करते और उसी के कमरे मे रहते और उसके बच्चो के साथ खेलते।

शुरू शुरू मे तो दोनों माँ बेटी को बहुत अच्छा लगा पर जब बच्चे नानी के पास नहीं फटकते बस मामी के पास रहते तो उन्हें बुरा लगता पर अब कुछ नहीं हो सकता था। विमला जी दिनभर अकेले कमरा मे पड़ी रहती कभी बेटी को,तो कभी बहन को,कभी भाई को,कभी ननद को फोन करती। लेकिन कोई फोन पर कितना बात कर सकता है।

बेटा आता तो थोड़ी देर बात करता। ऐसे ही बेचारी का जीवन कट रहा था तभी एक दिन उनकी ननद अपने पति के हार्ट का ऑपरेशन करवाने के लिए आई। उनकी ननद का घर गाँव मे था और उनकी दो बेटियां ही थी। वे बेटियों के घर नहीं जाना चाहती थी इसलिए मायके आ गईं। उनके पति प्राय बीमार रहते थे इसलिए वे जल्दी नहीं आती थी।

भतीजे की शादी के बाद उसके बच्चो के होने के वक़्त आई थी बच्चे जुड़वा थे इसलिए एकबार ही आना हुआ था। शादी के वक़्त जब आई थी तो चौदह पंद्रह दिन रुकी थी। उनके आने के बाद भी बहू का व्यवहार पहले जैसा ही था बहू ने उनसे पूछा फुआ जी आप क्या खाती है और कब खाती है यह बता दीजिएगा तो मै समय पर सब तैयार कर दूंगी।

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उन्हें अजीब लगा फिर भी उन्होंने कहा जब मुझे खाना होगा तब बोल दूंगी,तुम आओ तबतक मेरे पास बैठो।बहू काम का बहाना कर कर चली गईं।शाम के वक़्त जब विमला जी का बेटा ऑफिस से आया और हाथ मुँह धोकर चाय के लिए विमला जी के कमरे मे आया तो प्रतिदिन की तरह बहू तीनो की चाय लेकर आई। तीन कप चाय देखकर फुआ ने कहा – बहू तीन ही कप क्यों? तुम्हारी चाय कहा है?

बहू ने कहा मै रसोईघर मे ही काम करते करते पी लुंगी। फुआ ने कहा कितना काम है कि तुम थोड़ी देर बैठकर चाय नहीं पी सकती? जाओ जाकर अपनी चाय लाओ और यही बैठकर पीओ। काम ज्यादा होगा तो मै और भाभी तुम्हारी मदद कर देंगे। बहू कुछ बोल नहीं पाई और अपनी चाय लाकर पीने बैठ गईं। चाय पीने के बाद वह रसोई घर मे चली गईं तब फुआ ने अपनी भाभी और भतीजा से पूछा – क्या बात है

कुछ हुआ है क्या? बहू की तबियत खराब है? सुबह से देख रही हूँ ना बोल रही है ना हँस रही है बस चुपचाप काम किये जा रही है। विमला जी ने कहा – क्या कहे दीदी ऐसी ही है बस काम से काम रखती है।शादी के वक़्त तो ऐसी नहीं थी कितना घुलमिल कर रहती थी। बोलती थी तो लगता मधु टपक रहा है हँसी तो ऐसी थी जैसे लगता कानो मे मिश्री घुल रही हो।

फुआ जी ने कहा।पता नहीं दीदी अब तो ना बोलती है ना बच्चे बोलते है बस दिनरात कमरा मे पड़ी रहती हूँ कोई झाकने भी नही आता कि जिन्दा हूँ कि मर गईं। ऐसा तो मत बोलो भाभी काम मे तो कोई कोताही नहीं देख रही हूँ बस उसकी निश्छल हँसी और उसकी प्यारी प्यारी बाते नहीं सुनाई दें रही है। फिर भतीजे की तरह देखते हुए कहा तुम ही कुछ बताओ।

क्या किया है तुमलोगो ने उसके साथ जो वह ऐसी हो गईं है। ऐसी कोई बात नहीं है फुआ वह ऐसी ही है और अपने बच्चो को भी अपने जैसा ही बना दी है। बस उससे बात करते है. मुझसे और माँ से तो बस काम भर ही बात करते है। फुआ ने सोचा इनसे पूछना बेकार है मै बहू से ही पूछ लुंगी क्योंकि उन्हें इनकी बात पर जरा भी विश्वास नहीं था।

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बहू उनकी बेटियों से हर तीज त्यौहार पर या उनके जन्मदिन, मैरेज एनीवरसरी आदि पर फोन करके बात करती थी। उनकी बेटियां कहती भाभी कितनी अच्छी है सब की खोज खबर लेती रहती है। वैसी बहू अपने सास और पति से बात नहीं करती यह तो सोचने मे उन्हे दिक्कत हो रही थी। दूसरे दिन सारे काम यथावत ही हुआ।

जब शाम के वक़्त बहू बच्चो को लेकर पार्क चली गईं तो उसकी फुआ सास भी उसके पीछे से पार्क पहुंची। वहाँ उन्होंने देखा कि बहू अन्य बच्चो की माँओ  से खूब घुल मिलकर बात कर रही थी। पहले के जैसे हँस रही थी और नहीं तो बच्चो के साथ भी दौड़ भाग कर रही थी। थोड़ी देर तक उन्होंने उसकी गतिविधी को देखा फिर उसके पास आई। उन्हें देखकर बहू ने कहा आइये फुआ जी वहाँ चलकर बैठते है।

आप अकेली आई पहले कहती तो हमारे साथ ही आ जाती। तुम्हारे साथ आती तो मै अपनी पहले वाली बहू को कैसे देखती फुआ सास ने जबाब दिया। मै आपकी बात नहीं समझी। आप क्या कहना चाहती है? बहू ने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा। अब अपना नाटक बंद करो और बताओ भाभी और बाबू के साथ तुम ऐसा क्यों कर रही हो?

फुआ जी आपकी भाभी को बहू की नहीं बल्कि एक रोबोट की जरूरत थी जो दिनरात उनके इसारो पर काम करे पर ना तो उनके सामने बोले और नाही घर के किसी काम मे राय दें। चुकि रोबोट पोता नहीं पैदा कर सकता है और नाही दहेज ला सकता है इसलिए उन्होंने बहू को घर मे लाया। उनके बेटा बेटी भी बस वह जो कहती है वही सुनते है।

एक शब्द भी यदि आपके भतीजा के सामने बोलो तो कहते है माँ कह रही है तो वही करना होगा। ज़रा सा जोर से हँस दो तो हंगामा शुरू भले घर की बहू इतना जोर से हंसती है भला। उसके बाद तो बस उनके बेटा का भी शुरू हो जाता यह क्या दिनभर ठी ठी लगाई रहती हो? कभी चुप नहीं रह सकती?  उनके साथ थोड़ी देर बैठने जाओ तो बोलना शुरू कर देते, कोई कामधाम नहीं है आ गईं बात सुनने,

जाओ अपना काम करो।थोड़े दिनों तक तो मैंने बर्दाश्त किया उसके बाद मैंने उन दोनों माँ बेटा से बोलना ही बंद कर दिया। अपने बच्चो के साथ बात करना हँसना बोलना बस यही करती हूँ. उन दोनों से काम से ज्यादा बात नहीं करती। आपतो जानती ही है मुझे बच्चो के साथ खेलना पसंद है बस जब भी दीदी आती है मै उनके बच्चो को भी अपने साथ रख लेती हूँ और हम खूब मज़ा करते है।

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पर दीदी से भी बात नहीं करती हूँ।  इसका अर्थ यह नहीं की मै उनकी सेवा मे चूक करती हूँ. उनका सारा काम समय पर करती हूँ। लेकिन जब माँ को रोबोट चाहिए था तो रोबोट बन गईं हूँ। फुआ सास ने कहा जानती हूँ कि तुम अपने कर्तव्यों का अच्छे से पालन कर रही हो, पर बुढ़ापे मे शारीरिक काम के आलावा भावनात्मक जरूरत भी होती है तो बहू मेरी बात मान लो और उनदोनो को माफ कर दो।

अपनी सास का अकेलापन बांटो और अपने बच्चो को भी दादी के साथ खेलने को कहो। ठीक है फुआ जी आप कह रही है तो देखती हूँ। सुबह उठकर बहू तीन कप चाय लेकर विमला जी के पास आई फिर उन्हें प्रणाम करके विमला जी से पूछा माँ  क्या मै आपके साथ बैठकर चाय पी लू?  हाँ, बहू जरूर पीओ

. मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत व्यवहार किया पर तुम्हारी चुप्पी ने मुझे समझा दिया कि जिस घर की बेटी,बहू चुप रहती है उस घर मे मनहूसियत छा जाती है. बेटी पहले की तरह हँसती बोलती रहो घर सुहावन लगता है। 

 

वाक्य – आपको बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए 

 

लतिका पल्लवी

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