” मां बस कुछ दिनों की बात है मेरी खातिर तुम कुछ महीने और नौकरी कर लो पाठक जी कह रहे थे वे बहुत जल्दी कोई दूसरी काम करने वाली ढूंढ़ लेंगे तब तक आप यहीं काम करो,पाठक जी ने बुरे समय में हमारा साथ दिया है अब उनके लिए इतना तो करना ही पड़ेगा!!?, मैं बहुत जल्दी तुम्हें यहां से ले जाऊंगा मैं पाठक जी को मना नहीं कर सकता मेरी मज़बूरी समझो मां!!? मैं भी क्या करूं मेरी कमाई ज्यादा नहीं है बच्चों की पढ़ाई घर का ख़र्च मेरी अकेले की कमाई से पूरे नहीं होते इसलिए मैं आपकी पैसो से मदद नहीं कर पाता!!? मैं शहर में रहना ही नहीं चाहता पर बच्चों के कारण वहां रह रहा हूं इस छोटे से कस्बे में कोई अच्छा स्कूल नहीं है।
बच्चों के भविष्य के लिए शहर में रहना मेरी मज़बूरी है मां मैं आपको भी शहर ले चलता पर क्या करूं हमारा घर बहुत छोटा है मेरी तनख्वाह भी कम है मेरे मालिक ने मुझसे कहा है की वे कुछ ही महीनों बाद मेरी तनख्वाह बढ़ा देंगे तब मैं आपको अपने साथ शहर ले चलूंगा। अभी आप यहीं पाठक जी के घर रहकर उनके यहां काम कीजिए यहां आपको रहने के लिए कमरा मिला है और पाठक जी आपको नौकरानी नहीं घर का सदस्य समझते हैं ,आप मेरी बात समझ रहीं हैं ना मां!!?” राजीव ने अपनी ज़बान में शहद घोलते हुए बहुत प्यार से अपनी मां को समझाते हुए कहा
” पर बेटा अब मुझसे ज्यादा काम नहीं होता मेरे घुटनों में दर्द रहता है थोड़ा बहुत कर लेती हूं इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगता की मैं बिना काम किए मालिक से तनख्वाह लूं जब मालिक मुझे बिना पैसे काटे पूरी पगार देते हैं तो मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है इसलिए मैं कह रही थी कि,तू मुझे अपने साथ ले चले मेरे जाने के बाद मालिक किसी और को काम पर रख लेंगे ” सावित्री जी ने अपने बेटे राजीव से अपने मन की बात कही।
मां की बात सुनते ही राजीव का चेहरा गुस्से से लाल हो गया उसने चिल्लाते हुए कहा,” मां आप मेरी बात समझती क्यों नहीं मैं कह रहा हूं कि, कुछ महीने तक आप यहां काम कर लो उसके बाद मैं आपको अपने साथ ले जाऊंगा और एक आप हैं जो मेरी मज़बूरी को समझने के लिए तैयार ही नहीं है आपको अपने बेटे की नहीं अपने मालिक की भावनाओं की ज्यादा परवाह है!!”
” अपने बेटे का ऐसा रूप देखकर सावित्री जी स्तब्ध रह गई उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि, उन्होंने ऐसा क्या कह दिया जो राजीव को इतना गुस्सा आ गया वो आज तक काम करके अपना और अपने परिवार का भरन पोषण करती आईं थी।बेटे की नौकरी लगने के बाद भी वो अपनी पूरी तनख्वाह उसे ही दे देती थी लेकिन अब कुछ महीनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी इस बार जब बेटा उससे मिलने आया तो उसने अपने मन की बात कही की राजीव उसे अपने साथ शहर लेकर चले।
उसकी बात सुनकर राजीव पता नहीं क्यों भड़क गया।” राजीव तुम सावित्री बहन पर चिल्ला क्यों रहे हो वो तुम्हारी मां हैं!!?अपनी मां से ऐसे बात करते हैं!!? तभी वहां घर की मालकिन मिसेज पाठक ने आते हुए गुस्से में राजीव से कहामिसेज पाठक को अपने सामने देखकर राजीव घबरा गया उसका चेहरा डरसे सफेद पड़ गया वो मन ही मन सोचने लगा अगर उसकी मंशा मिसेज पाठक जान गई तो उसकी सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी।” चाची जी!! अच्छा हुआ आप यहीं आ गई मैं आपके पास ही आने वाला था!!” राजीव ने जल्दी से बात बदलते हुए कहा” तुम मेरे पास क्यों आना चाहते थे!!?” मिसेज पाठक ने राजीव को घूरते हुए कहा” चाची जी मैं मां पर नाराज़ इसलिए हो रहा था की मां समय पर अपनी दवाइयां नहीं लेती उनके घुटनों में दर्द रहता है फिर भी वो कितनी लापरवाही करतीं हैं इन्हीं की शिक़ायत करने मैं आपके पास आने वाला था!!” राजीव ने एक अच्छा बेटा बनने का दिखावा करते हुए कहा
” हां बात तो तेरी ठीक सावित्री बहन अपनी सेहत के प्रति बहुत लापरवाही करतीं हैं ये बात मुझे पता है ” मिसेज पाठक ने मुस्कुराते हुए कहा वे राजीव की असलियत समझ ही नहीं पाई।
जबकि सावित्री जी आश्चर्यचकित होकर राजीव को देख रहीं थीं राजीव ने तो उनकी दवाइयों के बारे में कुछ कहा ही नहीं था वो तो उनको कुछ महीनों और यहां काम करने के लिए कह रहा था।
राजीव की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी वो घबरा गया उसे डर था कहीं उसकी मां मिसेज पाठक को बता न दें की वो उनसे काम करते रहने के लिए मजबूर कर रहा था।
इसलिए राजीव ने जल्दी से बात का रूख़ बदलते हुए बोला,” चाची जी अब आप ही बताइए मैं कुछ गलत कह रहा हूं मैं तो मां को अपने साथ शहर चलने के लिए कह रहा था पर उन्होंने कहा वे आप लोगों को छोड़कर जाना ही नहीं चाहतीं। मैंने उसकी बात मानते हुए उनसे कहा ठीक है आप यहीं रहें मैं आपको अपने साथ चलने के लिए नहीं कहूंगा पर अपना ध्यान रखिए!! “पर वे मुझसे कहने लगी तुम्हें मेरे बारे में सोचने की जरूरत नहीं है!!” मेरे मालिक, मालकिन मेरा बहुत ध्यान रखते हैं मां की बातें सुनकर मुझे बुरा लगा मैं उनका बेटा हूं उनकी तकलीफ़ देखकर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है और मां मुझे पराया समझती हैं उनकी बातें सुनकर मुझे थोड़ा ग़ुस्सा आ गया बस और कोई बात नहीं है!!”
” अच्छा तो ये बात है!!? अरे सावित्री तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए तेरा बेटा तेरा कितना ध्यान रखता है आज कल के बेटे तो बुढ़ापे में मां बाप को छोड़कर चले जाते हैं फिर कभी लौटकर आते ही नहीं तेरा बेटा तो हर दूसरे तीसरे महीने तुमसे मिलने आता रहता है तुम्हें तो ख़ुशी ख़ुशी उसके साथ चले जाना चाहिए और तुम बेटे के साथ जाने से मना कर रही हो तो बेटे को गुस्सा तो आएगा ही!!??” मिसेज पाठक ने मुस्कुराते हुए कहामिसेज पाठक की बात सुनकर राजीव घबरा गया कि, कहीं उसका ही दांव उल्टा न पड़ जाए अगर मिसेज पाठक की बातों में आकर मां ने उनके सामने कह दिया की वे उसके साथ शहर चलेगी तो बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
उसके घर में कलह मच जाएगी यहां आते समय उसकी पत्नी ने उसे धमकाते हुए कहा था कि,” अगर वो अपनी मां को यहां लेकर आया तो वो उसे छोड़कर मायके चली जाएगी राजीव अपनी पत्नी को नाराज़ नहीं करना चाहता था उसे भी अपनी मां से कोई मतलब नहीं था वो तो यहां उसकी तनख्वाह लेने आता था।उसने मां के सामने ऐसा झूठा दिखावा किया था की उसकी तनख्वाह कम है उतने में उसके घर का ख़र्च पूरा नहीं होता इसलिए वो मजबूरी में उससे पैसे लेता है।
मां तो मां होती है सावित्री जी भी ममता में अंधी होकर अपनी पूरी तनख्वाह राजीव को दे देती थीं क्योंकि मिसेज पाठक के घर में उन्हें रहने की जगह खाना, कपड़ा सब मुफ्त में मिलता था उनकी सारी तनख्वाह बच जाती थी राजीव ये बात अच्छी तरह से जानता था की मां के सामने अगर वो अपनी परेशानियों का रोना रोएगा तो मां बिना कोई सवाल पूछे उसे पैसे दे देंगी।
इधर दो बार से सावित्री जी ने राजीव से कहना शुरू कर दिया था कि,अब उससे काम नहीं होता इसलिए वो अब नौकरी छोड़कर उसके साथ रहना चाहती है पर राजीव अपनी मां को अपने साथ रखना नहीं चाहता था उसे तो सिर्फ़ मां की कमाई से मतलब था मां जिंदा रहे या मरे उसे कोई लेना देना नहीं था ।
मिसेज पाठक की बात खत्म होते ही राजीव ने चापलूसी भरे लहज़े में कहा,” चाचीजी मां सही कह रही थीं मुझे उन पर नाराज़ नहीं होना चाहिए था वहां शहर में एक कमरे का घर है मां को इतने बड़े बंगले में रहने की आदत है वो उस छोटे से घर में कैसे रहेगी यहां मां आपके साथ रहतीं हैं तो कितनी खुश रहतीं हैं। वहां शहर में कोई किसी से कोई मतलब नहीं रखता।
वहां अगल बगल मां के साथ का कोई है भी नहीं मां वहां परेशान हो जाएंगी मैं मां की बात को समझ ही नहीं सका मां मुझे माफ़ कर दीजिए अब मैं आपको साथ चलने के लिए नहीं कहूंगा एक साल बाद मेरा प्रमोशन हो जाएगा तब मैं किसी अच्छी कालोनी में बड़ा घर ले लूंगा जहां अच्छे लोग होंगे पार्क होगा तब मैं आपको अपने साथ चलने के लिए कहूंगा “
राजीव की बातें सुनकर सावित्री जी को समझ नहीं आ रहा था की वो झूठ क्यों बोल रहा है मैंने तो चलने के लिए मना नहीं किया और राजीव ने तो मुझे साथ चलने के लिए कहा भी नहीं और अब मालकिन के सामने ऐसा जता रहा है की वो मुझे अपने साथ लेकर जाना चाहता है और मैं उसके साथ जाने के लिए मना कर रहीं हूं।कहीं ऐसा तो नहीं मेरा बेटा मुझे अपने साथ ले ही नहीं जाना चाहता वो सिर्फ मुझे बहला रहा है उसे मुझसे नहीं मेरे पैसों से मतलब है!!?”
फिर अचानक उनके मन ने कहा नहीं नहीं मैं क्या सोच रही हूं राजीव सच ही कह रहा है वहां का खर्चा बहुत है मैं भी अगर उसके साथ चली गई तो उस पर और भार पड़ जाएगा मेरी तनख्वाह भी नहीं मिलेगी शहर में राजीव मुझे काम करने नहीं देगा उसकी बदनामी होगी मुझे अपने बेटे की बात को समझना चाहिए उसे मेरी मदद की जरूरत है मुझे मालकिन के सामने उसे शर्मिन्दा नहीं करना चाहिए ” सावित्री जी ने मन ही मन निर्णय लिया।
” तू ठीक कह रहा राजीव मेरा वहां एक कमरे के घर में
दम घुट जाएगा मैं अभी यहीं रहूंगी जब तू बड़ा घर ले लेना तब मैं तेरे साथ शहर आऊंगी अभी मैं यहीं मालकिन के घर में काम करूंगी मेरा मन भी लगा रहेगा और चार पैसे भी हाथ में आएंगे !!” सावित्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा
” ठीक है सावित्री जैसी तुम्हारी मर्जी हम कहां तुम्हें यहां से जाने के लिए कह रहे हैं तुम ही कहती हो की अब तुमसे काम नहीं हो पाता है मैं कोई दूसरी काम वाली रख लूं अब तुम काम करना चाहती हो तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है!! ” अच्छा मैं चल रही हूं तुम भी बेटे को विदा करके आ जाओ पाठक जी के चाय का समय हो रहा है!!” मिसेज पाठक ने कहा और सावित्री के कमरे से बाहर निकल गई।
मिसेज पाठक के जाते ही राजीव ने सावित्री का हाथ पकड़कर चापलूसी करते हुए बोला,” धन्यवाद मां आपने मुझे चाचीजी के सामने शर्मिन्दा होने से बचा लिया एक साल की बात है उसके बाद मैं आपको अपने साथ शहर ले चलूंगा!! मां एक बात और कहनी थी सोच रहा हूं कहूं की नहीं!!”” क्या कहना है कह न मां से कैसा संकोच!!?” सावित्री ने मुस्कुराते हुए पूछा
” मां अब एक साल मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी मुझे कम्पनी में ज्यादा काम करना होगा तभी मेरी तरक्की होगी इसलिए मैं आपसे मिलने नहीं आ पाऊंगा मुझे पैसों की दिक्कत हो जाएगी अगर आप चाहें तो मेरी ये परेशानी भी दूर हो सकती है!!” राजीव ने बहुत ही मासूम बनते हुए कहा लेकिन उसकी आंखों में धूर्तता साफ़ दिखाई दे रही थी जो सावित्री जी को नहीं दिखाईं दी क्योंकि उनकी आंखों पर तो ममता की पट्टी बंधी हुई थी।” बता मैं क्या करूं जिससे तेरी परेशानी दूर हो जाए!!?” सावित्री जी ने राजीव के सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से पूछा
” मां अगर आप पाठक चाचा जी से कह दें की वो आपकी तनख्वाह मेरे एकाउंट में डाल दें तो मेरी पैसों की दिक्कत कम हो जाएगी मैं कहना तो नहीं चाहता था पर क्या करूं मेरी भी मजबूरी है मां!” राजीव ने संकोच का नाटक करते हुए कहा
” अरे राजीव इसमें संकोच करने की क्या बात है मैं मालिक से कह दूंगी वो मेरी तनख्वाह तुम्हारे एकाउंट में जमा करा देंगे!” सावित्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा वो अपने बेटे की धूर्तता को समझ ही नहीं सकी।
उसके बाद राजीव सावित्री जी से विदा लेकर शहर चला गया सावित्री अपने बेटे को जाते हुए देखती रहीं।राजीव जब शहर अपने घर पहुंचा तो उसे देखकर उसकी पत्नी ने घूरते हुए पूछा,” तुम्हारी मां तो नहीं आईं है!!?” नहीं डार्लिंग तुमने मना किया था तो मैं उन्हें कैसे लेकर आता अब तो मुझे उनके पास भी नहीं जाना पड़ेगा उनकी तनख्वाह मेरे एकाउंट में जमा हो जाएगी
ऐसी व्यवस्था करके आया हूं!” राजीव ने अपनी पत्नी को गले लगाते हुए कहा” यह तो तुमने अच्छा किया मैं तुम्हारी अनपढ़ गंवार मां के साथ नहीं रह सकती मैं तो तुम्हें भी उनके पास नहीं जाने देती लेकिन उनके पैसों के लिए मैं तुम्हें वहां जाने देती थी अब ये समस्या भी खत्म हो गई हमें बैठे बिठाए हर महीने पैसे मिलते रहेंगे ” राजीव की पत्नी ने बेशर्मी से हंसते हुए कहादूसरी तरफ सावित्री मिसेज पाठक के घर में काम करतीं रहीं उनसे ज्यादा काम नहीं होता था फिर भी वो ज़्यादा से ज़्यादा काम करने की कोशिश करतीं।
एक दिन वो चाय की ट्रे लेकर बाहर गार्डन में आ रहीं थीं तभी उन्हें चक्कर आया और उनके हाथ से चाय की ट्रे ज़मीन पर गिर गई वो खुद भी गिरने वाली थीं मिसेज पाठक के बेटे ने उन्हें दौड़कर सभांल लिया।
मिसेज पाठक का बेटा कल ही शहर से अपने मातापिता से मिलने घर आया था उसने सावित्री को कुर्सी पर बैठाते हुए कहा,” सावित्री मौसी जब आपसे अब काम होता नहीं तो आप काम से छुट्टी क्यों नहीं ले लेती अब आपको आराम करना चाहिए आप अपने बेटे के पास शहर चली जाइए आप यहां रहेगी तो बिना काम किए मानेगी नहीं आपका ज़मीर ये गवाही नहीं देगा की आप हमारे घर में बिना काम किए रहें, हम सभी आपको अच्छी तरह जानते हैं,
मां आप सावित्री मौसी को अब काम से रिटायर कर दीजिए और इनसे कहिए की ये अपने बेटे के पास चली जाएं यहां रहेगी तो बिना काम किए मानेगी नहीं “
” पवन तुम ठीक कह रहे हो राजीव आया था उसने हमसे कहा कि,शहर में वो बहुत छोटे घर में रहता है वहां का माहौल भी अच्छा नहीं है उसकी तनख्वाह भी कम है एक साल बाद उसकी तरक्की हो जाएगी तब वो बड़ा घर खरीद लेगा तब सावित्री को ले जाएगा एक साल की बात है उसके बाद सावित्री शहर अपने बेटे के पास चली जाएगी एक साल तक वो यहीं रहेंगी उससे जितना काम होगा करेंगी मैं कल ही एक दूसरी काम वाली रख लूंगी “मिसेज पाठक ने गम्भीर लहज़े में कहा
” मां क्या आप लोगों से राजीव ने कहा है की वो एक कमरे के मकान में रहता है और उसे पैसों की दिक्कत है!!?” पवन ने गम्भीर लहज़े में पूछा
” हां पवन अभी एक महीने पहले ही तो राजीव यहां आया था उसने मेरे सामने कहा है की वो बहुत छोटे घर में रहता है उसे ज्यादा तनख्वाह नहीं मिलती लेकिन तू ये बात क्यों पूछ रहा है!!?” मिसेज पाठक ने आश्चर्य से पूछा
” मां मैं इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि राजीव ने सावित्री मौसी और आपसे झूठ बोला है वो शहर में बहुत अच्छी नौकरी करता है और तीन कमरों वाले घर में रहता है वो जहां रहता है वहां बहुत बड़े बड़े लोग रहते हैं उसके सास उसकी सास भी रहती है जब वो अपनी सास को अपने साथ रख सकता है तो अपनी मां को क्यों नहीं ये बात मेरी समझ में नहीं आ रही है!!?” पवन ने गम्भीर लहज़े में कहा
” तू सच कह रहा है!!?”” पर तुम्हें कैसे पता है!!? मिसेज पाठक ने आश्चर्य से पूछा” मां मैं अपने एक दोस्त से मिलने उस कालोनी में गया था वहां मैंने राजीव को देखा मैं उसे आवाज देने ही वाला था की वो आगे निकल गया तब मेरे दोस्त ने पूछा कि, क्या मैं राजीव को जाता हूं तो मैंने बता हां तब मैंने अपने दोस्त से राजीव के बारे में जानकारी ली तो उसने बताया की ये किसी बहुत अच्छी कम्पनी में काम करता है और यहां अपने परिवार के साथ रहता है इसकी सास भी इनके साथ रहती है पर राजीव की पत्नी बहुत अहंकारी और दुष्ट औरत है।
आप लोग कह रहीं हैं की राजीव ने कहा की वो छोटे से घर में रहता है उसे पैसों की दिक्कत है जबकि वो कार से चलता है ये बात मुझे अभी कुछ दिनों पहले ही पता चली है इसलिए मैं कह रहा था की अब सावित्री मौसी को आराम करना चाहिए उनका बेटा अच्छा कमाता है इनकी देखभाल करने में समर्थ है!!” पवन ने आश्चर्यचकित होकर कहा
पवन की बात सुनकर जहां मिसेज पाठक के चेहरे पर गुस्सा दिखाईं देने लगा वहीं सावित्री की आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली उनके चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई।
“सावित्री तुम्हें क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो !!?” मिसेज पाठक ने पूछा
” मालकिन मैं अपनी किस्मत पर रो रहीं हूं जिस बेटे को मैंने नौकरानी का काम करके पाला पढ़ाया लिखाया उस बेटे ने मेरे साथ विश्वासघात किया मुझसे झूठ बोला की वो छोटे घर में रहता है उसे पैसों की दिक्कत है वो मुझे मिलने नहीं आता था वो यहां पैसे लेने आता था इस बार उसने मुझसे कहा कि,वो एक साथ तक यहां नहीं आ पाएगा मैं अपनी तनख्वाह मालिक से कह कर उसके एकाउंट में जमा करवा दिया करूं!!”
मालकिन उस दिन वो मुझ पर गुस्सा इस लिए कर रहा था की मैंने उससे कहा की वो मुझे अपने साथ लेकर चले वो मुझे अपने साथ रखना ही नहीं चाहता उसे मुझसे कोई लगाव नहीं है उसे तो सिर्फ़ मेरे पैसों से प्यार है” सावित्री जी ने दर्द भरी आवाज़ में कहा और फूट फूटकर रोने लगी।
” राजीव इतना नीचे गिर गया है मुझे विश्वास नहीं हो रहा है आज कल के बच्चों को क्या हो गया है उन्हें रिश्तों से ज्यादा पैसों से प्यार है मां बाप की कोई परवाह नहीं है!!?” मिसेज पाठक ने गम्भीर लहज़े में कहा
” हां मां यही सच है मां राजीव अपने साथ सावित्री मौसी को शहर में रखना ही नहीं चाहता इसलिए उसने आप लोगों के सामने झूठी कहानी गढ़ी है ” पवन ने गम्भीर लहज़े में कहा
” तुम ठीक कह रहे हो राजीव को सावित्री से नहीं उसके पैसों से मतलब है मैंने ऐसा अहसानफरामोश लड़का नहीं देगा अब सावित्री क्या करेगी कहां जाएंगी अब कैसा जमाना आ गया है बच्चे इंसानियत भूलते जा रहें हैं वो रिश्तों से ज्यादा पैसों को अहमियत देने लगे हैं!!??” मिसेज पाठक ने नफ़रत भरे लहज़े में कहा
” मालकिन मैं आपके घर के किसी कोने में पड़ी रहूंगी मुझे यहां से जाने के लिए न कहिएगा मुझसे जितना काम हो पाएगा मैं करूंगी मुझे तनख्वाह भी नहीं चाहिए बस मुझे दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिए दो साड़ी चाहिए इतना तो आप करेगी मुझे विश्वास है!!” सावित्री जी ने विनती करते हुए कहा
” सावित्री मुझे कोई दिक्कत नहीं है तुम यहां रहो तुमने हमारी बहुत सेवा की है लेकिन राजीव अब मेरे घर में नहीं आना चाहिए!!” मिसेज पाठक ने कठोर शब्दों में कहा
” मालकिन आज के बाद मैं खुद राजीव से कोई सम्बन्ध नहीं रखूंगी मैं उसकी धूर्तता को समझ गई हूं आज के बाद मैं यही समझूंगी की मेरा बेटा मेरे लिए मर गया मैं ऐसे स्वार्थी बेटे की मां कहलाने से अच्छा बांझ कहलाना ज्यादा पसंद करूंगी ” सावित्री जी ने कठोर शब्दों में कहा
तभी उनके फ़ोन की घंटी बजी फोन राजीव का था उन्होंने फ़ोन उठाया उधर से राजीव की आवाज सुनाई दी,” मां क्या आपने चाचाजी से कहा नहीं की वो आपकी तनख्वाह मेरे एकाउंट में जमा रहा दें अभी तक मेरे खाते में पैसा नहीं आया है मुझे पैसों की बहुत जरूरत है!!”
” राजीव आज के बाद मुझे फ़ोन करने की जरूरत नहीं है तू समझ लेना तेरी मां मर गई है जहां तक रही पैसे भेजने की बात अब मैंने खैरात देना बंद कर दिया है वैसे तू अपने पैरों पर खड़ा है मेरे पैसों की तुम्हें क्या जरूरत है और ज्यादा पैसों की दिक्कत हो तो अपनी सास से कहो वो कमाकर देगी जो तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में रह रही है जो तूने मेरे साथ किया है वही कल को तेरी औलाद तेरे साथ करेंगी ये मेरी बददुआ है एक मां की बददुआ कभी खाली नहीं जाती ” इतना कहकर सावित्री जी ने फ़ोन काट दिया और अपना फ़ोन ज़मीन पर पटककर तोड़ दिया जिससे फिर उसके बेटे का फ़ोन उसके पास न आए अब वो अपने बेटे की आवाज भी नहीं सुनना चाहती थीं।
उधर राजीव के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव दिखाई देने लगे उसका झूठ पकड़ा गया था अब वो किस मुंह से अपनी मां के सामने जाएगा क्या उसकी मां कभी उसे क्षमा करेंगी या नहीं यही सोचकर वो परेशान था,उसका गुनाह क्षमा के काबिल नहीं था रह रह कर उसे मां की बददुआ याद आ रही थी वो अंदर तक कांप गया उसका भविष्य उसकी आंखों के आगे दिखाई देने लगा।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश
#वाक्य इज्जत इंसान की नहीं पैसों की होती है