बहू और बेटी – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

सपना, रोज़ तड़के ही उठ जाती थी ।उठते ही घर का बुहारा निकालती , साफ़ सफ़ाई करती, अपने बुज़ुर्ग सास ससुर को चाय बनाकर देती.. फिर उनके साथ बैठकर ,ख़ुद भी चाय पीती थी । उसकी सेवा और संस्कार देखकर उसके सास ससुर फूले नहीं समाते थे ,लेकिन उन्हें एक ही दुख था कि उनके बाद ,सपना का क्या होगा । क्योंकि पिछले वर्ष उनके फ़ौजी बेटे का स्वर्गवास हो गया था ।

कम उम्र की सपना का वैधव्य उन दोनों से देखा नहीं जाता था ।

एक दिन सपना की बचपन की सहेली उसके घर आई । उसने सपना को उसके वृद्ध सास ससुर की सेवा में लीन देखा ,तो वो हतप्रभ सी रह गई । उसने सपना से कहा तुम क्यूँ इनकी सेवा में लगी रहती हो.. तुम्हारे लिए अब इस घर में बचा ही क्या है ।

कम उम्र की सपना का मन अपनी सखी की पढ़ाई पट्टी से विचलित हो गया और उसने घर के कामों को देर सवेर, बेमन से करना शुरू कर दिया ।

एक दिन सपना ,देर से सो कर उठी तो उसने अपने सास ससुर को बात करते हुए सुना कि, आजकल सपना, कुछ उदास सी रहने लगी है।बेचारी की उम्र ही क्या है … क्यों न हम इसकी दूसरी शादी कर दें ।

सपना के ससुर जी बोले ..हम इसका कन्यादान कर देंगे और बेटी की तरह मानेंगे । कभी कभी अपने घर भी बुलाया करेंगे ।

सपना की सास ने कहा हमारी बेटी की कमी भी पूरी हो जाएगी और सपना की जिंदगी में भी बहार आ जाएगी ।

अपने सास ससुर की बात सुनकर सपना को अपने उपर लज्जा आ रही थी । वो सोच रही थी कि उसकी सखी ने उसको गलत राय न दी होती तो वो अपने आदर्शों से विचलित नहीं हुई होती ।

अगले दिन से सपना फिर वही पुरानी मेहनतकश बहू और नई बेटी …दोनों बन गई थी ।

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रश्मि वैभव गर्ग

कोटा

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