बड़ी भाभी – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

गिरिजा रसोई में खाना बनाने में व्यस्त थी क्योंकि उसे आज कम से कम आठ लोगों के लिए टिफ़िन बाँधनी थी क्योंकि आज से ही स्कूल कॉलेज खुल गए थे । ननद के दो बेटे और दूर के रिश्तेदार के दो बेटे तथा उसके खुद के दो बच्चे पति और उनके मुँह बोले भाई आए हुए थे सबको समय पर जाना था । उनकी बड़ी बेटी खाना खाकर बॉक्स लेकर स्कूल चली जाती थी वह स्कूल में नौकरी करती थी । इसीलिए गिरिजा सुबह चार बजे उठकर नौ बजे तक खाना बना देती थी ।

उसने एक नियम बनाया था कि नाश्ता किसी के लिए नहीं बनेगा सिर्फ़ खाना ही बनेगा किसी को भी भूख लग रही है तो दाल चावल या अचार चावल कुछ भी खा सकते हैं ।

वह सब्ज़ी दाल सब बनाने के बाद अंत में चावल चढ़ाती थी । आज भी जब दरवाज़े पर घंटी की आवाज़ सुनती है तो जल्दी से कुकर में एक कप चावल और धोकर रख देती है उसे मालूम है कि उनका घर आव जाव घर है कोई ना कोई आते ही रहते हैं और उन्हें भूखे पेट भेजने का रिवाज उनके घर में नहीं है ।

गिरिजा की शादी शंकर से उस समय हुई जब वह अठारह साल की ही थी । शंकर रेलवे में नौकरी करते थे । दोनों शादी के बाद गुंटूर से हैदराबाद आ गए उनका भरा पूरा परिवार था । गिरिजा उस घर में बड़ी बहू बनकर आई थीं । सास ससुर देवर ननद सबकी सेवा वह बिना थके कर देती थी । उनके घर में घरवाले तो थे ही आसपास के गाँव से भी हर रोज़ अस्पताल यूनिवर्सिटी कॉलेज कोर्ट केस कुछ भी हो सब को हैदराबाद आना पड़ता था ।

गाँव में सब कहते थे हैदराबाद में किसी के घर जाने की ज़रूरत नहीं है अपना शंकर है ना उसी के घर चलते हैं । किसी के लिए मामा का घर था तो किसी के लिए गिरिजा बुआ का घर था ।

इसलिए तो उनके घर में हमेशा मेले जैसा माहौल बना रहता था । गिरिजा और शंकर ने भी चार बच्चों को जन्म दिया था । उनमें दो लड़कियाँ थीं और दो लड़के थे । घर आए मेहमानों के साथ साथ उनके बच्चे भी पलते जा रहे थे । उन्होंने अपने घर में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया था ।

वहाँ आए हुए लोग हों या उनके अपने बच्चे सबको अपने कपड़े खुद धोने पड़ते थे । अपना काम खुद को ही करना पड़ता था । हाँ इतने लोगों का खाना गिरिजा ही बनाती थी । सुबह चार बजे उसके दिन की शुरुआत होती थी तो रात के ग्यारह बजे फिर उसे बिस्तर का मुँह देखने को मिलता था ।

गिरिजा की आधी उम्र रसोई में ही बीत गई थी परंतु उसके चेहरे पर कभी शिकन नहीं होती थी । हमेशा हँसते हुए ही सारे काम अकेले ही कर लेती थी । बड़े बेटे राघव को भी रेलवे में ही नौकरी मिल गई थी । दोनों लड़कियों की शादी हो गई थी । दूसरे बेटे ने शादी करने से मना कर दिया था । शंकर भी रिटायर हो गए थे पर घर पर लोगों का आना जाना कम नहीं हुआ था । इसी बीच बड़े बेटे ने शहर से दूर एक बड़ा सा घर खरीद लिया था । शंकर और गिरिजा की मर्ज़ी के बग़ैर उन्हें बेटे के साथ शहर से दूर उसके घर रहने के लिए जाना पड़ा । उनका घर शहर से दूर होने के कारण लोगों का आना जाना कम हो गया था । सबके साथ मिलकर रहने वाले लोगों को अकेले खाना भी रास नहीं आता था ।

गिरिजा को एक छोटे से घर में बहुत सारे लोगों के बीच रहने और बिना रुके किए गए कामों से अब मुक्ति मिल गई थी ।  लेकिन यह बात इन दोनों को हजम नहीं हो रही थी । सबके स्कूल और ऑफिस जाने के बाद यह घर काटने को दौड़ता था । उन्हें बार बार उस व्यस्त दिनचर्या की याद आती थी ।

गिरिजा ने तो बेटे के बच्चों को और उसके घर को सँभाल लिया था क्योंकि बहू भी नौकरी पर चली जाती थी । परंतु शंकर जी सुबह से शाम तक अकेले ही रहते हुए उदास हो गए थे । पेपर पढ़ने के अलावा उनके पास कोई और काम नहीं था । अकेलेपन के गम से उनकी मृत्यु हो गई थी ।

अब गिरिजा अकेली हो गई थी । वह धीरे से अपनी छोटी बेटी के घर रहने के लिए गई । वहीं थोड़ी दूर पर छोटे बेटे ने भी घर किराए पर लिया था उसकी शादी नहीं हुई थी तो वह उसके साथ रहने लगी।  उसे पति का पेंशन और सफर करने के लिए रेलवे का पास मिलता ही था तो माँ बेटा आए दिन तीर्थ यात्रा पर निकल जाते थे ।

अब तक घर में रहने वाली गिरिजा अब घर में कम रहती थी । अभी भी लोगों की मदद करना उसने नहीं छोड़ा था । बच्चों को ज़रूरत पड़ती थी तो उनके पास जाकर उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाती थी । कोई भी मदद के लिए पुकारता था तो तो वह वहाँ पहुँच जाती थी ।

उनके लिए बच्चे कुछ करेंगे या नहीं मालूम नहीं परंतु जितने भी लोगों ने उनसे मदद ली थी वे फ़ोन करके उनसे कहते थे कि आप अपने बुढ़ापे की फ़िक्र मत कीजिए हम सब आपकी मदद के लिए तैयार हैं ।

बड़े बेटे ने एक दिन माँ को अपने पास बुलाया था कि उसे अपनी पत्नी के साथ बाहर ट्रिप पर घूमने जाना है तो वे बच्चों को सँभाल ले क्योंकि छोटा बेटा बहुत ही छोटा था ।

गिरिजा उसके घर रहने के लिए अपने छोटे बेटे के साथ आई । खाना खाकर सब रात को सो गए थे । राघव को सुबह की फ़्लाइट पकड़नी थी । पति पत्नी दोनों सुबह जल्दी से उठकर तैयार हो गए थे । राघव जाते हुए माँ को जगाने गया था ताकि उन्हें बता सके कि वह जा रहा है परंतु माँ तो उठ ही नहीं रही थी ।

उसने अपने छोटे भाई को उठाया और कहने लगा कि अरे यार माँ आज अभी तक सो रही है । मेरी फ़्लाइट छूट जाएगी तू उन्हें बता देना कि हम लोग निकल गए हैं कहते हुए वे दोनों केब में जाकर बैठ गए थे ।

छोटा बेटा जल्दी से माँ को उठाने जाता है पर यह क्या माँ तो कभी न उठने वाली नींद में चली गई थी । उसके चेहरे पर सुकून था जैसे वे अपनी ज़िंदगी से थक हार कर आराम से सुकून की नींद सो रही हो । उसने अपने बड़ी भाभी के साथ ही हर रिश्ते को बखूबी निभाया था । छोटे बेटे ने राघव को तुरंत फोन किया तो वह वापस आ गया और अपनी छुट्टियों को केंसल करके माँ के अंतिम संस्कार की तैयारी में लग गया ।

गिरिजा की मृत्यु की ख़बर हवा की तरह सब जगह फैल गई थी । पूरा घर लोगों से भर गया था । सबकी ज़ुबान पर एक ही बात थी कि इतने लोगों के लिए उसने काम किया था पर मजाल है किसी से एक गिलास पानी का भी माँगा हो । वे ऐसी महान महिला है । सबकी ज़ुबान पर एक ही बात थी कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें ।

उनके जाने के बाद गिरिजा की कमी उस घर में आए दिन दिखने लगी थी । सुकून इस बात की थी कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी का अंतिम समय अपनी इच्छा से से जिया है । अब बच्चों को और परिवार को अफ़सोस होता है कि हमने तो उनके लिए कुछ नहीं किया था  सिर्फ़ उनसे अपने लिए काम करवाया था ।

वह बड़ी भाभी बनकर इस घर में आई थीं और मरते दम तक वो सबके लिए बड़ी भाभी ही बनी रहीं । यहाँ तक कि जब उनके बच्चे छोटे थे उन्हें माँ नहीं बड़ी भाभी ही कहते थे जब थोड़े से बड़े हुए थे तब उन्हें महसूस हुआ कि वे माँ पापा कहकर पुकारने लगे थे ।

दोस्तों गिरिजा ने पैसे नहीं लेकिन नाम बहुत कमाया है उनके किए कर्मों के कारण ही आज उनके बच्चे सुकून से जी रहे हैं और वे भी दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं।

के कामेश्वरी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!