ओ बड़ी बहू मेरे लिए एक कप चाय बना दे। सर बड़ा भारी सा हो रहा है। राधा जी अपनी बहू मानसी को बड़ी बहू कहकर ही बुलाती थी। मानसी भी उनकी एक आवाज पर दौडी चली आती थी। मानसी चाहे उनकी कितनी सेवा कर ले पर राधा जी अपनी बड़ी बहू से कभी खुश नहीं होती थी।
राधा जी की एक छोटी बहू रक्षा और थी जो उनके बेटे के साथ नौकरी पर रहती थी। वह कभी-कभी आती राधा जी के लिए कुछ तोहफा ले आती।जितने दिन वहां रहती मानसी के साथ किसी काम में हाथ नहीं बँटाती थी। अगर कभी करने भी लगती तो राधा जी मना कर देती। अरे दो दिन के लिए आई है, कहाँ काम में लगी है। आजा मेरे पास बैठ जा। रक्षा अपनी सास के साथ मीठी-मीठी बातें बनाये जाती।
मानसी को उन दिनों और भी काम बढ़ जाता। लेकिन वह चुप रहती कि चलो कुछ दिन की बात है। लेकिन उसे दुख इस बात का था कि इतना करने के बाद भी राधा जी कभी भी दो बोल प्यार के नहीं बोलती थी। रक्षा के जाने के बाद भी राधा जी मानसी के सामने रक्षा की बडाई करती रहती। पड़ोसी और रिश्तेदारों से भी कहती रक्षा के आने से मन लग जाता है। वर्ना बड़ी बहुत तो बस अपने काम में ही लगी रहती है मेरे साथ बैठकर दो घड़ी बात भी नहीं करती।
इस बार जब छुट्टी में मानसी की नंद कुछ दिनों के लिए रहने के लिए आई, तो राधा जी उसके सामने भी मानसी को कभी कुछ, कभी कुछ कहती रहती। एक दिन मानसी की नंद को गुस्सा आ गया। वह बोली मम्मी यहां बैठो मेरे पास। सारा दिन क्यों बड़ी भाभी के पीछे पड़ी रहती हो। वे सारा दिन आपका ध्यान रखती हैं। कभी आपको पलट कर जवाब नहीं देती। सही कहा है किसी ने की करने वाले को कभी भलाई नहीं मिलती। मम्मी छोटी भाभी तो केवल आकर बातें करती हैं। कभी आपको अपने पास आकर रहने के लिए भी कहा उन्होंने।
लेकिन अबकी बार मानसी की नंद ने सोच लिया था कि अपनी मम्मी की आंखों पर बंधी पट्टी खोलकर रहेगी। दो दिन बाद ही रक्षा भी छुट्टियों में रहने आ गई तो मानसी की नंद ने उससे कहा कि भाभी अब छोटी भाभी और मैं यहां है। आप भी कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाओ। आप घर की जिम्मेदारी की वजह से जा ही नहीं पाती हो। मानसी ने मना किया तो उसकी नंद बोली भाभी इस घर में आपकी अहमित का एहसास तभी होगा, जब आप यहां पर नहीं होंगी। नंद के ज्यादा कहने पर मानसी अपने घर चली गई।
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अगले दिन सुबह ही जब कई आवाज लगाने पर भी रक्षा नहीं उठी, तो उसकी सास ने सुबह की चाय भी खुद बनाकर पी। रक्षा ने उठकर सबके लिए नाश्ता, खाना बनाया। लेकिन आज वह राधा जी के साथ बैठी ना बतियाई। बल्कि जो काम उनकी बड़ी बहू खुशी-खुशी करती थी। रक्षा का सारा दिन
मुंह बना रहा। दो दिन बाद ही वह बोली मांजी मेरे बस का नहीं है पसीने से लथपथ मैं सारा दिन काम करती रहूँ। मैं यहाँ छुट्टियां मनाने आई थी, नौकर बनने नहीं। यह क्या कह रही हो बहू ।यह तुम्हारा भी तो घर है। अपने घर में काम करके कौन नौकर हो जाता है भला। लेकिन अब मेरी समझ में आ गया है। जब भी तुम यहाँ आओगी सब मिलकर काम करेंगे। जिससे की बड़ी बहू को भी थोड़ा टाइम मिले।
मानसी की नंद ने तुरंत उसे फोन मिलाया। भाभी मेरा काम हो गया है आप वापस आ जाइए। जब मानसी घर पहुंँची तो सारा नजारा ही बदला हुआ था। राधा जी उसके आते ही बोली बड़ी बहू मुझे माफ कर दे। मैं दोनों बहुओं में सामंजस्य नहीं बैठा पाई। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा रक्षा भी तो इस घर की बहू है, मेहमान नहीं। नंद को सब बुरा बताते हैं। लेकिन तेरा साथ तेरी नंद ने ही दिया और मेरी आंखें खोल दी। अरे मम्मी देर आए दुरुस्त आए। अब मेरी दोनों भाभियाँ मिलकर मेरी सेवा करेंगी, क्योंकि मैं तो मेहमान हूंँ कहकर हँसने लगी। अरे घबराओ नहीं मैं तो मजाक कर रही हूं। मैं भी अपनी भाभियों की पूरी हेल्प करुँगी। फिर सब मिलकर छुट्टियों का मजा लेंगे
#बेटियां
#साप्ताहिक विषय- बड़ी बहू
नाम: नीलम शर्मा
मुजफ्फरनगर उत्तरप्रदेश,
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