बड़ी बहू – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

अरे राधाऽऽऽ ओ बहुरानीऽऽऽ बेटा कहां हो इसके बिना तो हम बिल्कुल अपाहिज से होकर रह गये हैं…थोड़ा गर्म पानी दे दो बिटिया, सुबह से गले में जकड़न सी हो रही है सोच रही गरारे कर गला साफ कर लेती ।

 “ हे भगवान ये बैठे बिठाए क्या मुसीबत गले पड़ आई” क्या कल जाना हो सकेगा मेरा..?

“आई माँ राधा जल्दी में आई तो हांफते हुए आती है”।

अरे बेटा आराम से एक आवाज में कैसी दौड़ी चली आती है। भगवान ऐसी बहू सबको दे, मैं तो घन्य हो गई इसको पाकर भगवान ने जाने किस जन्म के पून्य का फल दिया है मुझे इस बहू के रूप में ,( सन्तोषी देवी बुदबुदाई)

हाँ माँ लाती हूँ गर्म पानी,ऐसा करती हूँ नमक भी डाल दूंगी जल्दी आराम आ जायेगा आपके गले में। वैसे माँ आपको कहा किसने था सुबह-सुबह मन्दिर की प्रभात फेरी में जाने के लिए ध्यान तो आप रखती नहीं है अपना अब इस उम्र में …

तभी ससुर घनश्याम जी सुबह की सैर से वापस लौटे…” अरे कहेगा कौन अब जायेगीं नहीं तो यहां वहां, इधर उधर की खबरे कैसे मिलेंगी भई “। (धनश्याम जी पत्नी की तरफ देख मुस्कुराये) बोले- बहू, जरा एक कप गर्म- गर्म चाय पिला दो आज तो कुछ सर्दी भी ज्यादा ही है बहार। हाथों को मलते छड़ी एक तरफ रख अखवार ले लाॅन में एक तरफ आकर बैठ गये और अखवार पढ़ने में तल्लीन हो गये ।

जी बाबूजी अभी लाई चाय राधा जल्दी से किचन में एक तरफ गर्म पानी रख, दूसरी तरफ चाय की तैयारी करने लगी । 

तभी उसकी छोटी ननद मोना हाथ में कुछ कपड़े लेकर आई भाभी ओ भाभी देखो तो जरा इन ड्रेस में से एक अच्छी सी छांटकर बता दीजिए मुझे पता है आपकी च्वाइस बहुत अच्छी है शाम स्कूल फेयरवेल में जो पहननी है मुझे । 

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  “मोना, जरा रूको राधा बोली”!!

  पहले बाबूजी को चाय माँ को गर्म पानी दे कर आती हूँ।

  मोना तुनककर अल्हड़ पन से बोली बस भाभी आप सबके काम में लगी रहती है बस हमेशा मेरा ही काम टाल देती है। राधा बिना कुछ कहे मुस्कुराती हुई चली जाती है।

राधा वापस आकर मोना की ड्रेस स्लैक्ट करती है ।ये पहनो इसमें बिल्कुल राजकुमारी सी लगोगी।ये पीली वाली है तो बहुत खूबसूरत मगर रहने दो थोड़ा छोटी है स्कूल फंक्शन में सही नहीं लगेगी । भाभी के शब्दों को सुनकर मोना थोड़ा लज्जाई फिर गले लगकर बोली ओहऽऽ भाभी आप भी न ड्रेस हाथ में ले थैंक्यू भाभी कह भाग गई।

तभी देवर मनीष हाथ में रेकेट लिए घर में दाखिल हुआ भाभी एक गिलास नीम्बू पानी …मैंने पहले ही रख दिया तुम्हारे कमरे में राधा बोली ।

अरे वाह भाभी सच आप कितना ख्याल रखती है सबका..

 “थक नहीं जाती हो सारा दिन दौड़ते भागते “ सच भाभी हो ऐसी हो मैं तो सभी दोस्तों में आपका गुणगान करते नहीं थकता !!

.अरे देवर जी  सब तुम्हारे हाथ में मेरे आराम की इतनी ही चिंता है तो एक देवरानी ले आओ बस फिर वो यूं समझो आराम ही आराम करना मैंने। फिर तो मैं घर की बड़ी बहू जो बन जाउंगी। देखना कितना रोब जमाऊंगी छोटी बहू पर राधा की बातें सुनकर मनीष खिलखिला कर हंँसने लगा ।

“हा़ भाभी क्यों नहीं”…?

“मनीष खुशी से चहकता उत्साहित हो बोला”….!!

वैसे भी मुझे आपको दिखाना है कुछ, मनीष कमरे में जा वापस आकर एक फोटो दिखाकर कहता है ये होगी आपकी देवरानी देख लीजिए अच्छे से भाभी आप।

“राधा फोटो देखकर, अच्छा तो ये बात है “।

“हा़ं भाभी ये ही बात है मनीष मुस्कुराया “!

आज करती हूँ माँ बाबूजी से बात…

 क्या- क्या चल रहा चोरी छिपे,बंधवाती हूँ तुम्हारे पैरों में बेड़ियां,अब ये सब ज्यादा दिन नहीं छुपने वाला देवर जी ।

मनीष भाभी की बातें सुनकर खिलखिला कर हंँसने लगता है।

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और सासूमां बाबूजी की सहमति रानी घर में छोटी बहू बनकर आ गई। वो मनीष के साथ ही आफिस में कार्यरत,बड़ी बहू के स्वभाव के एकदम विपरीत आते ही राधा को नीचा दिखाने घर पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश करने लगी । रानी के घर में आते ही मनीष पहले जो काम माँ, भाभी से पूछ कर करता अब सभी काम रानी से पूछ कर करने लगा परिवार के सभी लोग इस बदलाव के लिए खुद को तैयार नहीं कर सके धीरे- धीरे रिश्तों में कड़वाहट आने लगी। रानी का राधा की हर बात पर टांग अड़ाना, नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहना राधा को बहुत अखरता था। मगर वो उसकी किसी भी बात पर गुस्सा नहीं करती , मनोस्थिति को समझती प्यार से ही हर बात का जवाब देती । कभी किसी बात की तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देती ।

एक दिन रानी और मनीष आफिस से आते हैं।सभी बैठे चाय पी रहे थे राधा के कोई सगे संबंधी मिलने आये हुए थे राधा उनसे बातों में मशगूल थी मनीष तो कमरे में चले जाते हैं लेकिन रानी वहीं सोफे पर बैठ राधा को हुक्म चलाती है जरा जल्दी से मेरे लिए भी अदरक डालकर चाय बना दो ,आज मैं बहुत थक गई हूँ।

राधा कहती हैं थोड़ा रूको रानी तुम तब तक फ्रेश हो जाओ मैं कुछ जरूरी बातें कर रही हूँ ये मेरे रिश्तेदार इनको जल्दी वापस जाना है।

भला रानी को राधा का मना करना अपनी तोहीन लगता है। कुछ पल में ही उसका अहंकारी स्वभाव जाग उठता है।वो तो सदा इसी गलतफहमी में रहती वो महान है ज्ञान का अहंकार उसके अंदर तक समाया था दूसरों को अपने से कम आंकना ही उसकी फितरत थी । इसी बात पर तमाशा खड़ा कर देती है उसको तो राधा को परेशान करने में आत्मीय शान्ति मिलती।अपने अंहकार मूर्खता के कारण उसका कुंठित मन उसकी इच्छाओं का पूरा न होना उसके तिरस्कार बोध को बड़ा देता है। वो तो बस यही सोचती राधा घर बार सम्भालती घरेलू महिला ही है तभी सारा दिन घर के ही कामों लगी रहतीं वो इस बात से अज्ञान थी, की राधा भी सरकारी अध्यापिका रह चुकी है।

राधा एक जिंदादिल आत्मविश्वास से भरी अज्ञान रानी की बात पर ध्यान नहीं देती तो गुस्से में रानी खुद उठकर चाय बनाने किचन में चली जाती है। और जल्दी में चाय का गर्म- गर्म पानी का बर्तन अपने ऊपर गिरा लेती है। उसकी चीखने की आवाज सुनकर राधा भागती हुई आती है। रानी के ज़ख्म ठन्डे पानी से धो उस पर जलन कम करने वाला मलहम लगाती है ।राधा एक जिन्दादिल इंसान रानी की बाते इग्नोर करती है।

“ जब भी कोई व्यक्ति किसी को इग्नोर करने की कोशिश करता है,तो असल में वो उसे इग्नोर नहीं करता है बल्कि अपनी प्राथमिकता के साथ उसके बारे में सोच रहा होता है “।

राधा का क्षमा से भरा व्यवहार पवित्रता सुसंस्कार को प्रकट करता है। जिससे सामने वाले का अंहकार ढलता है।उसकायही व्यवहार प्रेम का परिधान और नफरत का निदान है । उसका मानना माफ करना दुश्मन पर विजय पा लेने के बराबर है।उसे ईश्वर की कृपा और पुरस्कार भी मिलता है। घर के सभी सदस्यों का प्यार, सम्मान रूपी पुरस्कार ऐसे ही थोड़े न मिला ।

रानी राधा के व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती। और अपने किये पर शर्मिन्दा होती है। राधा से क्षमा याचना करती है।

राधा कहती हैं- “त्रुटि करना मानवीय और क्षमा करना ईश्वरीय है”!! 

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“ रिश्ते हमेशा एक चक्रव्यूह रचते हैं जिसमें कभी न कभी हममे से कोई फंस ही जाता है। उसमें फंसने की बजाय रिश्ते को जीने की कोशिश करनी चाहिए। हमारा अहंकार हमारी सोच हमारा व्यवहार रिश्ते को बनाने बिगाड़ने में जिम्मेदार है “ ।

तब तक सासूमां ससुर जी देवर ननद सभी वहां आ जाते हैं। सासूमां कहती हैं रानी तुमको बड़ी बहू राधा के व्यवहार से बहुत कुछ सिखना है। उसके साथ मिलजुल कर जिम्मेदारी निभाने की कौशिश करनी चाहिए।

तुमने उसको छोटा समझा उसे महत्व नहीं दिया फिर भी उसने तुमको क्षमा कर दिया लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण वो अपने आप को क्षमा करदे क्योंकि उसने तुमको ऐसा करने दिया।

हमारी बड़ी बहू लाखों में एक है वो जानती है सही बात सही है भले ही कोई इसके खिलाफ हो।और गलत बात ग़लत है भले ही कोई इसके पक्ष में हो।

हम अपनी आँखों के आगे उसके साथ गलत नहीं देख सकते तुमने उसको कमतर आंका हकीकत में वो भी पढ़ी-लिखी एम ए बी. एड है। सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी दूसरे शहर  दूर ट्रांसफ़र हो जाने की वजह से फिलहाल नौकरी छोड़ दुबारा प्राइवेट में तलाश कर रही है। हम तो उसके अहसान मंद है उसको हमारी कितनी फिक्र है । 

हमने देखा उसने कैसे जिम्मेदारियों के बोझ तले अपनी ख्वाहिशों को मारा है हर कोई ऐसा नहीं कर सकता एक आधा विरला ही ऐसा मिलता है। बड़ी बहू जानती है रिश्ते निभाने वाले कभी मुकाबला नहीं करते …उनमें तो निभाने की अथाह ताकत होती है. ‌.। हमारी बड़ी बहू का प्यार निविशेष अनपेक्षित प्यार है उसका स्पर्श ही आशीर्वाद है जो संबल बन सबको प्रेरित करता है।

 रानी सब बातें सुनकर कहती हैं सही कह रहे हैं मैं अपने अंहकार में सब फर्ज भूल गई थी वैसे भी सुबह का भूला शाम को वापस घर लौट आये तो.. ‌ तभी बड़ी बहू राधा बोली उसको भूला नहीं कहते सारे सदस्य खिलखिला कर हँस पड़े। 

रिश्ता इंसान ऐसा ही होना चाहिए जो ऊर्जा भरता रहे ऐसे लोगों पर गुमान होता है। प्यार आता है।उनको सलाम करने कि मन करता है….राधा उन्हीं इंसानों में से एक जो बड़ी बहू के रूप में अपनी समझदारी से छोटों को भी बहुत कुछ सिखा देती है। 

   लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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