…”अम्मा आज सुबह से शाम होने को आई… आप कुछ खाती क्यों नहीं… कुछ तो खा लीजिए… ऐसे तो बीमार पड़ी रहती हैं… अब क्या इरादा है… अम्मा… सुनती हो…कुछ तकलीफ़ हो तो वो भी बताएंगी तब ना जानूं…!”
अम्मा ने आंचल आंखों पर डाल लिया… कुछ ना बोली… शाम को राहुल घर आया तो सुधा बरस पड़ी…” यह क्या लगा रखा है अम्मा ने आज सुबह से… अब तुम ही देखो… मेरे तो बस की नहीं…!”
” क्यों क्या हो गया…!”
” अरे एक दाना मुंह में ना डाला आज… लगता है कोप भवन में पड़ी है… कुछ बोले तो समझ आए…!”
राहुल ने कपड़े बदले… मुंह हाथ धोकर सीधा मां के कमरे में पहुंच गया…” क्या हुआ मां… सुधा बोल रही है तुमने कुछ खाया नहीं… तबीयत तो ठीक है… कुछ बोलो भी…!”
अम्मा कुछ ना बोली… मुंह ढककर पड़ी रही तो राहुल ने मुंह पर से आंचल हौले से खींच लिया…” ओ मां… अरे क्या हुआ तुझे बुढ़िया… क्यों रूठी है… बोल तो…!”
अब अम्मा की आंखों में विद्रोह झलक पड़ा…” कुछ नहीं तू जा खा पी… मुझे अब नहीं खाना…!”
” क्या हो गया… तू सुबह से भूखी है… मैं कैसे खा लूं… बोल तो सही…!”
” देख बेटा… अब मैं नहीं सह सकती… अब कोई समझौता नहीं होगा मुझसे…!”
” क्या समझौता… बोल ना… बताएगी कुछ…!”
अब तक सुधा भी दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई थी…” क्या कर दिया मां मैंने… मेरी शिकायत लगा रही हो क्या… मेरे कारण कौन सा समझौता करना पड़ रहा आपको…!”
” देख बहु तू तो चुप ही रह… रोज वही सुखी रोटी… मूंग की दाल बिना तड़के वाली…और लौकी भिंडी या तोरई की सब्जी… यह भी कोई जिंदगी है… ऐसा खाना मैं नहीं खा सकती… घर में रोज पूरियां तली जाती हैं… गरमा गरम पकवानों की खुशबू लेती रहूं और रुखा सुखा खाऊं… यह सब अब मुझसे नहीं होगा… मैं खाऊंगी तो बढ़िया खाऊंगी… नहीं तो नहीं खाऊंगी…!”
” लेकिन मां तुझे तो डॉक्टर ने सब मना किया है ना खाने से… इसलिए……!”
” तू चुप कर लल्ला… मना किया है… अब इस उमर में अपनी जिंदगी का अचार डालना क्या मुझे… कुछ दिन की परहेज होती है… रोज तीन वक्त का खाना परहेज से खाने से अच्छा तो यही है ना कि मैं भूखी मर जाऊं…!”
सुधा ने झट से अम्मा का हाथ थाम लिया…” छी अम्मा.… कैसी बात करती हो… मरें आपके दुश्मन… अभी रुकिए मैं गरमा गरम पूरियां निकाल रही हूं… आपको वही खाना तो आप वही खा लीजिए… लेकिन कल फिर बीमार पड़ीं तो मुझे मत कहना… फिर लगाती रहना गुसलखाने के चक्कर…!”
” मां ठीक ही तो कह रही है ना सुधा… तेरा पेट कितना कमजोर है जानती है ना…!”
” नहीं… मैं कुछ नहीं जानती… जो होगा सो होगा… पेट कमजोर है तो मैं उसमें कुछ डालूंगी ही नहीं…!”
दोनों हार मान गए… सुधा ने रसोई में जाकर गर्मागर्म पूरियां निकाली… थोड़ी पनीर की भुर्जी बनाई, और साथ में जरा सी घी में हलवा… थाली में लेकर अम्मा के सामने गई तो उनकी आंखें चमक उठी… “लो अम्मा अब खाओगी या नहीं…!”
अम्मा ऐसे उठी जैसे कुछ हुआ ही ना हो…” रख थाली…!” साथ में थोड़ी सी दाल और सब्जी भी थी…उसे तो अम्मा ने हाथ भी नहीं लगाया…
चार पूरियां खा लेने के बाद पेट पर हाथ रखती बोली…” देख बेटा… पूरी जिंदगी अपनी जिम्मेदारियों के कारण समझौते करती रह गई… अब शरीर के कारण समझौता करती रहूं… कभी-कभी तो मन ऊब जाता है… आखिर यह जिंदगी भी कोई जिंदगी है… कुछ ना कुछ हमेशा बस समझौते किए चलो…!”
सुधा मुस्कुराते हुए अम्मा के गले में हाथ डालकर बोली…” तो अम्मा… आज से बच्चों के साथ-साथ आपके लिए भी हमेशा यही बनाना है ना…!”
” नहीं री… यह तो मुझे मारने पर तुली है… कभी-कभी यह भी दे दिया कर… बस रुखा सूखा खाते-खाते जी ऊब जाता है.…!”
सुधा ने शिकायत भरे लहजे में कहा…” तो मां यह बात तो आप मुझे सुबह भी बता सकती थीं ना… उसके लिए शाम तक भूखा रहने की क्या जरूरत थी…!”
अम्मा कुछ ना बोली… ऐसा लगा जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो… फिर थोड़ी देर बाद अपने आप बोली…” दिन भर भूखे रहकर बढ़िया खाना खाने का मजा ही कुछ और है…!”
सुधा और राहुल ने एक दूसरे की आंखों में देखा, और हंस पड़े… ठीक ही कहते हैं… बच्चा बूढ़ा एक समान… कब क्या कहें… क्या करें… समझना मुश्किल…
रश्मि झा मिश्रा