बेबी चांदनी (भाग 3) – सीमा वर्मा

मेडिकल कॉलेज की ऊंची ईमारत इस समय रात के अंधेरे  में डूबी हुई है।

चित्रा हैरान चांदनी को अकेली न छोड़ उसके हाँथ पकड़ कर बाहर ले आई है।

सच में संसार में मित्रता से बढ़ कर और कोई नाता नहीं होता है।

चांदनी भी कुछ  देर के लिए अपनी अफाट निराशा और चिंता को पीछे छोड़ कर खुली हवा में आ गई।

वहाँ कॉरिडोर में और भी दो लड़कियां खड़ी हैं जो चांदनी से काफी हिली- मिली लग रही हैं।

उनमें से एक जिसका नाम आरती है , चांदनी के रूआंसे चेहरे को देख कर पूछा…

” ओ हल्लो डियर कैसी हो ? “

उसने  चांदनी के हाँथ अपने हांथों में ले लिए।

“मैं हमेशा की तरह ही, तुम बताओ कैसी कट रही है ? “

” अरे हमारी क्या कटेगी चांदनी डियर !

कट तो तुम्हारी रही है। यदि लोग सावधान ना रहें तो पीछे-पीछे एम्बुलेंस बुलानी पड़ेगी “

” ओ माई गॉड! ऐसा क्या ? “

कहती हुई चांदनी मुस्कुरा दी

— चित्रा  ,

” तुम नहीं जानती चांदनी  ,

” इसके पापा की नबाबगंज में मिठाई की दुकान थी।

वहीं इसके पीछे एक छोकड़ा पड़ गया था… आगे की तू सुना कहती हुई चित्रा ने आरती को कुहनी मारी  “

दरअसल चित्रा इस समय हल्की-फुल्की बातें कर के चांदनी का दिल बहलाना चाह रही है।

आरती … ,

‘ हाँ, हाँ … याद आया … वह तो मेरे पीछे ही पड़ गया था एक दिन मैंने उसे पास बुलाया ,

क्यों … मुहब्बत करते हो मुझसे ?

उसने फिल्मी अंदाज में कहा  ,

तुम मुहब्बत की बात करती हो ?

हम तुमपे मरते हैं ‘

— चांदनी  ,

फिर … फिर क्या हुआ ?

होना क्या था ?

सैंडिल उतारी और दे दिया जमा कर एक हाँथ फिर वह चारो खाने चित् लेटा मिला बीच सड़क पर “

इस बार चांदनी खुल कर हँस पड़ी थी।

माहौल हल्का होते देख चित्रा भी खुश हो गई।

 डिनर टाइम हो चला था। वे सब मिल कर मेस की ओर बढ़ गईं।

वहाँ पहले से ही लड़कियां जुटी हैं।

अगले हफ्ते सेमेस्टर ब्रेक होने वाली है।

अतः सबों को घर जाने की जल्दी लग पड़ी है।

इस बार चांदनी थोड़ी व्यग्र

है घर जाने के लिए।

मम्मी से कितनी बातें कहनी और सुननी हैं।

थोड़ी दूर पर एक खाली टेबल देख कर चांदनी ,चित्रा और आरती बैठ गईं।

चित्रा और आरती तो प्लेट लगते ही उस पर टूट पड़ीं।

चांदनी ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई …

वो सोच रही है…

जल्दी से वैकेशन हो और मैं घर मम्मी के पास जाऊँ।

माँ के सीने में मुँह धंसाकर, पेट में दुबककर सोने की स्मृति अब भी उसे एक सुखद उष्मा से भर देती है।

लेकिन मम्मी ने तो उसे अधिकतर इस सुख से वंचित रखा है।

मेस में  हँसी और खिलखिलाहट बदस्तूर जारी है रोज की तरह।

चांदनी कुछ देर चित्रा और आरती देखती रही लेकिन आज और अधिक … खुद को नहीं बहला पा रही है।

ठंडे धुंधलके के पसरते ही वह वापस लौट चली है।

अमलतास का चबूतरा सुनसान पड़ा है।

कुछ देर अमलतास के घेरे के पास बैठी रही।

न चाहते हुए भी उसके सामने फिर वही पेंटिग नाच गयी।

आंख उठा कर कॉरिडॉर के पार तारो से भरे आकाश की ओर देखते हुए

जाने-अनजाने मम्मी के नम्बर पर डाएल कर दिया।

पहली बार तो रिंग पूरी बजती रही मम्मी ने फोन नहीं उठाया।

चांदनी बुदबुदाती,बड़बडा़ती और अधिक गुस्से में फिर फोन लगा दी।

इस बार मम्मी ने फोन उठा लिया है।

उनके फोन उठाते ही

चांदनी अपनी सारी तकलीफ, गुस्सा और दर्द वह भूल गयी।

उस एक सीधी शांत और शीतल आवाज में न जाने ऐसा क्या भरा था।

बचपन से ही ऐसा होता आया है हमेशा ही लचक से भरी मम्मी की आवाज उसके कानों में शहद  घोल देती है।

— ‘ मम्मी ‘

‘हाँ बोल बेटा ‘

‘कुछ नहीं बस आपकी बहुत याद आ रही थी आपको नहीं याद आती मेरी ‘

‘ आ रही है ना बेटा बल्कि मैं तो सोच रही थी … ‘ कह कर चुप हो गईं मम्मी।

इस बार तुम्हारे आने की खुशी में शानदार जश्न रखूं ‘

स्नेह दुलार में भरी आवाज …

‘तुम इतनी चुप क्यों है बेटा कुछ बोल क्यों नहीं रही है ?  ‘

‘ अच्छा चलो तुम्हें हमेशा यह शिकायत रहती है ना कि हमारे घर कोई आता क्यों नहीं है

या हम कहीं और क्यों नहीं जाते हैं ?

अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ घूमने तो इस बार तुम अपनी सहेली चित्रा और आरती को भी बुला लेना ‘

सच ही है,

चांदनी के घर तो उसके निजी मित्रों का भी आना-जाना नहीं हो पाता था।

‘कुछ बोलो चांदनी ऐसे चुप तो नहीं रहो ‘

‘ नहीं ममा चुप नहीं हूँ। आपने कभी ऐसे कभी कहा नहीं है ना इस लिए बस सुन रही हूँ ‘

‘ तुम भी ना!

लेकिन तुम्हारी आवाज इतनी बदली-बदली क्यों लग रही हो जैसे तुम कुछ पूछना चाह रही हो ‘

‘ हूँ… ‘ एक दीर्घ निश्वास छोडा़ चांदनी ने…।

‘क्या हूँ  ?

कुछ समझ नहीं पा रही है चांदनी ,

इस समय वो कैसे रिएक्ट करे  थोड़ा डर भी गयी।

‘ आखिर उन्हें कटघरे में खड़ी कैसे कर पाऊंगी ?

फिर यह सोच कर कि शायद मम्मी के सामने रहने पर इतना भी बोल नहीं पाऊंगी।

बातें धरी की धरी रह जाएंगी।

उसकी आवाज भर्रा चली है…

‘ मम्मी आपने कभी सोचा है कि आप जैसी गायिका की बेटी रहने के बाबजूद मुझे शास्त्रीय संगीत में क्यों नही रुचि रही ‘

‘जिस संगीत को आप मन की शांति , सुकून और शुद्धता से जोड़ कर मुझे और अपने आप को भुलावा देती आई हैं

वह मुझे आपकी उदासी और घनी पीड़ा से निकला हुआ लगता रहा है ‘

आखिर आपको कौन सी चिंता घुन की तरह  खाई जाती है।

ममा कि सुबह-शाम एकांत कमरे में बंद रह कर गाते-बजाते रहना मुझे हमेशा मेरी हीनता का बोध कराता आया है मम्मी ‘

मैं आपसे कभी कुछ बोल  नहीं पाई।

आपकी वीरान आंखों को देख कर कभी कुछ पूछने का साहस नहीं था मुझमें , आपको और परेशान नहीं करना चाहती थी।

अभी भी नहीं पूछती …

‘ मम्मी , मम्मी आप सुन तो रही हैं ना मेरी बातें… अब आप क्यों चुप हो ममा ?’

‘ ओ… हाँ … नहीं… नहीं तू बोलती जा मैं सुन रही हूँ’

स्वभाव के विपरीत ममा की आवाज में भीषण दर्द महसूस करती है चांदनी …

‘ मैं दोहरी जिंदगी नहीं जी सकती ममा दिखावे के लिए खुश रहने का ढ़ोंग भी नहीं किया जाता मुझसे मैं खुल कर हँसना और रोना चाहती हूँ ममा … ‘

‘ मुझे एक ऐसी पेंटिंग … जिसमें आप और … ‘

आगे बोलते हुए उसकी जुबान लड़खड़ा गयी … ममा के हाथ से भी फोन छूट कर गिर गया था

पीछे खड़ी हुई चित्रा सब सुन और देख रही है। इस बात से अंजान लड़खड़ा कर गिर पड़ने को हुई चांदनी को आगे बढ़ कर चित्रा ने संभाल लिया है।

अगला भाग

बेबी चांदनी (भाग 4) – सीमा वर्मा

बेबी चांदनी (भाग 2) – सीमा वर्मा

सीमा वर्मा / नोएडा

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