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बात एक रात की – स्नेह ज्योति

घनी बरसात की रात थी,बस की धीमी रफ़्तार थी,ड्राइवर भी बेहाल था बारिश में मुसाफ़िरों को सही पहुँचाना जान जोखिम का काम था।धीरें-धीरें यात्री अपनी मंजिल पे उतरने लगे..…अचानक मेरी नज़र पीछे बैठी महिला पे पड़ी जो सोच में डूबी बेचैन दिखी,शायद घर जाने का सोच रही थी,अगले ही पल बस ख़राब हो गयी ड्राइवर ने बोला-“आप लोग उतर जाओ,बस आगे नहीं जा पाएगी”

मैंने कहाँ-क्यों नहीं भाई ?”बाहर देखो कितनी तेज बारिश हो रही है हम कैसे जाएगे?”

कंडेक्टर ने कहा-हम क्या करे सर! इतनी तेज़ बारिश में हम कुछ नहीं कर सकते,आपको ज़्यादा परेशानी है तो आप लोग बस में बैठे रहे।जब बारिश बंद हो जाए तो चलें जाना…ये बोल वो छाता उठाए चला गया।

हर तरफ अंधेरा,सन्नाटा छाया था ,भूख ने भी पेट में कोहराम मचाया था तभी दिमाग़ में घंटी बजी शायद दोपहर का थोड़ा खाना रखा है फटाफट बैग खोलकर टिफ़िन से खाना खाने लगा।भूख में सब भूल गया पानी भी गट-गट पी गया।

एकाएक बिजली की खड़खड़ाहट में पीछे बैठीं महिला पे नज़र पड़ी,अरे ! मैंने इनसे तो खाने का पूछा ही नही,क्या पता इन्हें भी भूख लगी हो,पर अब क्या करूँ ?

दोनों ही दुनियावी तकल्लुफ़ में जकड़े,कुछ सहमे कुछ परेशान से लगे।कैसे उससे बात करूँ यही सोच- सोच के,कुछ पल यूँ ही बीत गए,तभी हौले से ख़ासी की आवाज़ आयी,मैंने इधर-उधर देखा कुछ समझ नहीं पाया फिर एक सीट के नीचे बोतल दिखी,मैंने उनसे कहा ये लीजिए-पानी पी लीजिए….

वो गटक-गटक कर सारा पानी पी गई,उसे यूँ देख मैं यादो में भीग गया अरे! ये तो वहीं लड़की है जो हमारे मोहल्ले में कुछ दिनों के लिए आई थी।लाखों भाव छुपाए ख़ुशी के,भगवान का शुक्रिया करने लगा…..

क़िस्मत भी आज हम पे कुछ मेहरबान हो गयी, ढूँढते थे जिन्हें किस्से-यादो में वो आज हमसे रूबरू हो गयी,वक़्त भी है,वो भी है पर आज भी खामोशी है…..




हिम्मत करके बोल दिया,दिल पे रखा पत्थर उड़ेल दिया…….

हैलो! मैं जय हूँ,आप श्रेया है ना“घबराके उसने अपने आपको ढाक लिया”

देखिए घबराइए नहीं,आपको याद है,आप पाँच साल पहले दिल्ली में कुछ दिनो के लिए शर्मा जी के घर आयी थी,मैं आपके सामने वाली बिल्डिंग में रहता था ….

श्रेया- माथे पे अचरज बल लिए आँखो को टेरते हुए…..

जय-हमेशा से दिल में एक मलाल था,कि काश मैं तुमसे अपने दिल की बात कह पाता……और देखो !आज वो दिन आ ही गया।देखो सुनो ! कुछ तो बोलो ! क्या तुमने एक बार भी मुझे नोटिस नहीं किया ?

उसने मेरी बात को अनसुना कर अपना फ़ोन उठाया और कुछ लिखने लगी,उसकी इस हड़बड़ाहट में मैं उसके चेहरे पर जवाब ढूँढने लगा”क्या मैं सही कर रहा हूँ “? क्या ऐसे बात करना उचित है?

बाहर बारिश मंद हो चुकी थी पर अंदर तूफ़ान उठा था।कुछ देर बाद बारिश बंद होते ही आनन-फ़ानन वो बैग उठाए चल दी।

मैंने कहा-प्लीज़ रुकिए,मेरी बात तो सुनिए आज मिलें है तो मेरी बात का जवाब दे दो,आगे बढ़ मैंने उसका हाथ पकड़ लिया,सुनो! मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ बस यही बताना चाहता हूँ ,तभी अपना हाथ झड़क बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे घूरने लगी,

मैंने कहा बस तुम से एक जवाब चाहता हूँ”हाँ या ना”और कुछ नही

थोड़ी देर बाद वो अपने हाथ से इशारे कर मुझे कुछ समझाने लगी,मैंने कहा-अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो बोलो! कुछ देर वो चुप रही,फिर अपने कान और मुँह की तरफ इशारा कर हाथ हिलाने लगी।

बहुत देर तक वो ऐसे ही करती रही एक शब्द भी नही बोली,तब मैं समझा की वो ना तो बोल सकती है,ना ही सुन सकती है……

फिर भी मन की शंका को दूर करने के लिए मैं फोन पे लिख के उसे दिखाने लगा।उस ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा के गर्दन हिलाई हाँ, फिर मैंने लिख के पूछा-क्या तुम मुझे जानती हो ? उसने फिर हाँ के लिए सिर हिलाया,अब मुझे थोड़ी सी ख़ुशी का एहसास होने लगा।चलो पहचाना तो सही,और अब तो मैं इसके इशारे भी समझ सकता हूँ,क्या हुआ अगर ये बोल सुन नही सकती? पर प्यारी बहुत है,यही सोच मन में ख्याली पुलाव बनाने लगा।

मैंने फिर लिख के पूछा-“तो फिर तुम भाग क्यों रही थी “? उसने लिख के बताया,कि वो पहले कुछ असमंजस में थी,पर अब याद आ गया कि तुम तो–मेरी मासी के घर के सामने रहते थे।जो हमेशा ही बालकनी पे लटकें रहते थे।




ये पढ़ शर्म सी आ गयी,नही,ऐसा तो नही था,तुम मज़ाक़ कर रही हो ना…..मुझे ऐसे देख, मुस्कुराते हुए वो आगे बढ़ने लगीl

कुछ दूरी तक ही सही,पर हम हम कदम बन साथ चलते रहें,एक दूसरे की खामोशी में सवाल ढूँढते रहे….

इतने में एक युवक बाईक पे आकर रुका,उसे देख वो फटाफट भागी,मैं सोच ही रहा था.. कि अचानक वो मुड़ी और भाग कर मेरे पास आई और मेरा फ़ोन ले उसमें कुछ लिखने लगी,मैं यूँही उसे तकता रहा…..वो फ़ोन थमा बाईक पे बैठ चली गयी।

ख़ुशी से लिप्त सब भूल गया, फोन उछाल सब लिखा …हवा में बिखेर दिया और खुद को अनगिनत सवालों के घेरें में फेंक दिया।

ये बात एक रात की थी,सब पाकर हाथ से फिसल गया,बारिश में भीग कर भी मैं सूखा रह गया। कुछ देर बाद लौट के बुद्धू घर को आए,अपनी करनी पे मुस्कुरा कर भी क़िस्मत चमका नहीं पाए।

#5वाँ_जन्मोत्सव

स्वरचित

स्नेह ज्योति

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