आवाज उठानी जरूरी है – संगीता अग्रवाल

” जाहिल औरत ये क्या किया तूने गँवार है गँवार ही रहियो तू !” शारदा जी पूजा कर रही थी कि उन्हे बेटे कार्तिक के ये शब्द सुनाई दिये जो वो अपनी पत्नी सांची को बोल रहा था।

” माफ़ कीजियेगा वो मुन्ने का हाथ लग गया इसलिए पानी गिर गया थोड़ा !” सहमी आवाज़ मे सांची बोली।

” तुम्हारी माफ़ी क्या मेरी ये कमीज सुखा देगी पहले ही मुझे देर हो रही है ऊपर से ये। किसी चीज की तमीज है तुझे ना घर संभाल सकती ना बच्चे ना ढंग से रहना आता ना बनाना। मेरी किस्मत फूटी थी जो ये जाहिल मेरे पल्ले पड़ गई !” कार्तिक सांची को धक्का सा दे कमीज बदलने चला गया।

ये शारदा जी के घर का रोज का किस्सा हो गया है। असल मे कार्तिक किसी लड़की से प्यार करता था पर उसने कार्तिक को धोखा दिया बाद मे घर वालों के कहने पर कार्तिक ने सांची से शादी तो कर ली पर वो पत्नी सिर्फ उसका घर संभालने , उसकी शारीरिक जरूरत पूरी करने और बच्चे पैदा करने के लिए थी। पत्नी को मान सम्मान भी दिया जाता है ये तो वो भूल ही चुका था। शारदा जी ने कितनी बार प्यार से , डांट डपट से बेटे को समझाने की कोशिश की पर दो बच्चो का पिता बनने के बाद भी कार्तिक मे कोई बदलाव नही आया उल्टा जब जब शारदा जी उसे समझाती वो सांची से ओर बुरा व्यवहार करता। सांची मे भी गजब का सब्र था जो कभी कार्तिक को पलट कर जवाब नही देती थी पर शारदा जी को ये सब बुरा लगता उन्होंने सांची से कितनी बार कहा कि अपने लिए बोलना सीखो पर सांची हर बार जवाब देती ” मांजी घर की शांति के लिए चुप रहना ही सही है । पड़ोसी तमाशा देखे इससे अच्छा घर की बात घर मे रहे वक्त के साथ अपने आप सब ठीक हो जायेगा !”

पर शारदा जी को सांची की बात पसंद ना आती। क्योकि वक्त के साथ कार्तिक का रवैया सांची के साथ ओर खराब होता जा रहा था।




” हे देवी माता इस बच्ची की रक्षा करना । जाने इतना सब्र लाती कहाँ से है ये। रोज अपमानित होने के बावजूद भी सबकी सेवा मे जुटी रहती है। आप मेरे नालायक बेटे को थोड़ी सद्बुद्धि दो !” पूजा समाप्त करते हुए शारदा जी बोली। 

” मांजी आपका चाय नाश्ता !” सांची अपने छह माह के बच्चे को गोद मे लिए लिए ही काम निपटा रही थी।

” ला मुन्ने को मुझे दे और तू भी अपना नाश्ता ले आ बच्चे को दूध पिलाती है भूख लगी होगी!” शारदा जी पोते को पकड़ती हुई बोली।

” तुम खाओ माँ इसे तो सारा दिन ठूंसने के अलावा और काम ही क्या है खा लेगी बाद मे ये !” जूते के फीते बांधता कार्तिक व्यंग्य से बोला।

” शर्म कर ले शर्म बीवी है तेरी जो तेरा सारा घर संभाले है तेरे बच्चो को देखती है सारा दिन तेरी माँ की सेवा करती है तेरी हर चीज कहे से पहले हाजिर करती है और तुझे उसकी रोटी अखरती है नालायक कही का !” शारदा जी गुस्से मे बोली पर हर बार की तरह कार्तिक उठकर चलता बना। सांची की आंख में आंसू आ गए।

” मांजी आप खाइये मैं बाद में खा लूंगी !” मुन्ने को सास की गोद से लेते हुए सांची बोली।

” बैठ इधर ..और ये बता कब तक सहती रहेगी तू ये ?” शारदा जी उसका हाथ पकड़ बैठाते हुए बोली।

” मांजी मैं कर ही क्या सकती हूँ । गरीब माँ बाप की बेटी हूँ दो दो बच्चो को लेकर कहाँ जाउंगी !” सांची रोते हुए बोली।

” माँ बाप गरीब है तो क्या गलत बात भी सहेगी पति है वो तेरा और तू उसकी पत्नी। उसकी हिम्मत इसलिए ही बढ़ी है क्योकि तू चुपचाप सब सहती आई है। पर तूने सोचा है इससे तेरे बच्चो पर क्या असर होगा। वो जो तेरी बेटी है वो कल को दूसरी सांची बनेगी और तेरी तरह खामोशी से पति का हर जुल्म सहेगी। और ये जो मुन्ना है ना ये कार्तिक बनेगा और अपनी बीवी पर ऐसे ही जुल्म करेगा क्योकि ये यही सब देख बड़े हो रहे है समझी तू। तेरी एक चुप्पी भविष्य के लिए कितनी घातक होगी तू सोच भी नही सकती !” शारदा जी बोली। उनकी बात सुन सांची सोच मे पड़ गई क्योकि सास कुछ भी गलत तो नही कह रही थी।

” मांजी मुझे क्या करना चाहिए तो ? मै तो ये घर छोड़ कर भी नहीं जा सकती !” सांची रोते हुए बोली।

” तू ये घर छोड़कर जाएगी भी क्यो ..ये घर तेरा भी उतना ही है जितना बाकी सबका !” शारदा जी बोली।

” तो मैं क्या करूँ मांजी !” बेबस सांची बोली।




” उसे सबक सिखा , उसे अपनी एहमियत बता , उसे ये बता कि इस घर मे , उसकी और हम सबकी जिंदगी मे तेरा क्या महत्व है तू गँवार नहीं है ना ही जाहिल है समझी । तेरी ये माँ तेरे साथ है !” ये बोल शारदा जी ने सांची के कान मे कुछ कहा।

” ओये सांची कहाँ मर गई पानी लेकर आ जल्दी से !” शाम को ऑफिस से आते ही कार्तिक चिल्लाया।

” फ्रीज़ मे रखा है पानी ले लीजिये !” सांची ने अंदर से आवाज दी !

” ये कौन सी तमीज है जाहिल औरत पति घर मे आया तुझसे पानी भी नहीं दिया जा रहा !” वो गुस्से मे चिल्लाया।

” जाहिल हूँ तभी तो बोल रही हूँ खुद ले लो क्योकि मुझे तो देना आता नहीं पानी बेमतलब सुबह की तरह आपके कपड़े खराब हो जाएंगे !” सांची वहीं से बोली।

” तेरी ये मजाल !” ये बोल गुस्से मे कार्तिक अंदर आया तो बेड पर सजी धजी सांची नेल पेंट लगा रही थी। उसने कार्तिक की तरफ देखा भी नहीं कार्तिक गुस्से के घूंट पीता खुद पानी लेने चला गया।

” बेटा ले जरा तू मुन्ने को पकड़ मेरे हाथ दुख गये सुबह से लिए लिए !” जैसे ही कार्तिक वापिस आकर बैठा शारदा जी बोली।

” ठीक है माँ आप खाना लगा दो इतने बहुत भूख लगी है !” कार्तिक बच्चे को लेता हुआ बोला।

” बेटा खाना तो सांची ने बनाया नही बोलती है मेरे हाथ का खाना तब भी पसंद नही आता तो क्यो मेहनत करूँ !” शारदा जी बोली।

” आज कुछ ज्यादा ही नही बोल रही ये इसे अभी सीधा करता हूँ मैं !” कार्तिक उठता हुआ बोला।

” ना …ना बेटा ऐसा गजब मत करियो वरना तुझे मुझे दोनो को जेल हो जानी है । आज ही बहू अपनी सहेली से बात कर रही थी कि वो इस घर मे तंग आ चुकी है सोचती है पंखे से लटक मर जाये।  अगर कल को मुझे खरोंच भी आई तो इसके जिम्मेदार मेरे पति होंगे साथ मे सास भी। बेटा उसने कुछ उल्टा सीधा कर लिया तो बेवजह लेने के देने पड़ जाने है तू ऐसा कर बाज़ार से मंगा ले खाना फिर गुड़िया को स्कूल का काम भी कराना है !” शारदा जी बेचारगी से बोली।

” क्या अभी उसको काम भी नही कराया सांची ने । और ऐसे कैसे वो कुछ कर लेगी माँ आप बेकार डर रहे हो !” कार्तिक बोला।

” बेटा वो कहती है मैं गँवार कहा जानू अंग्रेजी की पढ़ाई इसलिए नही कराया काम और मेरा डर गलत नही बेटा आजकल औरतों की सुनी जाती है सोच मैं इस उम्र मे जेल जाती कैसी लगूंगी !” शारदा जी बोली। अब कार्तिक खामोश हो गया थोड़ा देर सोचने के बाद उसने खाना ऑर्डर किया और बेटी को काम कराने लगा लेकिन उसे कुछ समझ नही आ रहा था कैसे पढ़ाये उसे आज तक पढ़ाया जो नही !

अगले दिन कार्तिक को अपना कोई सामान निकला नही मिला । सांची भी उसे कही नज़र नही आई।

” माँ सांची कहाँ है ?” उसने बाहर आकर पूछा।

” बेटा वो तो वॉक पर गई है और देख मुन्ने ने पोट्टी कर ली अब मेरे से तो धोई जाएगी नही तू ही धो !” शारदा जी बोली।

” क्या वॉक पर ! पर क्यो ?” कार्तिक झुंझला कर बोला।

” उसकी कोई सहेली आई है इस शहर मे नई नई । इंस्पेक्टर है वो उसने कहा सांची से अपनी सेहत पर ध्यान देने को बस उसी के साथ गई है !” शारदा जी बोली।

” उसने तो कभी बताया नही उसकी कोई दोस्त पुलिस मे है !” कार्तिक उत्सुकता से बोला।




” अरे मुझे तो बताया था पर तब वो दूसरे शहर मे थी। मुझे लगता है उसी की शह पर बहू आजकल अपने मन की करने लगी है। कन्ही ऐसा ना हो वो उसे सारी बात बता दे और सांची हमारे खिलाफ रिपोर्ट कर दे। तुझे पता है ना शर्मा जी की बहू ने उनके खिलाफ झूठी रिपोर्ट की थी तब भी उन सबको जेल हो गई जबकि यहां तो सांची सही है। तुझे कितना कहा था ना मैने बहू की इज़्ज़त किया कर पर नही तू उसे रोज जलील करता रहा । अब अगर उसने ऐसा कुछ किया तो मैं तो बहू की तरफ हो जाऊँगी और बोल दूंगी मैं नही बस मेरा बेटा उसे जलील करता था क्योंकि इस उम्र मे मैं तो जेल जाने से रही !” शारदा जी डरने का नाटक करते बोली। अब वाकई मे कार्तिक भी सोच मे पड़ गया उसने मुन्ने को उठाया और बाथरूम मे चल दिया।

” अरे आप क्यो ये कर रहे है लाओ मुझे दो मैं करती हूँ !” तभी सांची वहाँ आकर बोली।

” नही कोई बात नही तुम थकी होंगी वैसे भी मुन्ना मेरा भी तो बेटा है !” अपने स्वभाव के विपरीत कार्तिक शांत स्वभाव मे बोला जिससे सांची हैरान रह गई। वो रसोई मे गई और सास के कहे अनुसार बस ब्रेड चाय बनाई । हालाँकि सांची को लगा था कार्तिक गुस्सा करेगा पर वो चुपचाप खाकर चला गया।

” सुनो यार अरुण बीवी को मानसिक कष्ट पहुँचाने पर कितनी सजा हो सकती है ?” ऑफिस मे उसने अपने सहकर्मी दोस्त से पूछा।

” अब ये तो जज के और कितना कष्ट पहुँचाया गया उसके ऊपर है । पर तू ये क्यो पूछ रहा है भाभीजी ने केस वेस कर दिया क्या !” अरुण चुटकी लेता हुआ बोला।

” कैसी बात करता है तू वो क्यो मुझपर केस करेगी ..चल काम करने दे !” झेपता हुआ कार्तिक बोला उसका मन काम मे नही लग रहा था वो यही सोच रहा था अगर सांची ने केस किया तो क्या इल्जाम लगा सकती है । यही सोचते सोचते वो उसके प्रति किया अपना व्यवहार याद करने लगा। घर आकर भी वो किसी से नही बोला चुपचाप अपने कमरे मे आ गया।

” लीजिये पानी !” सांची पानी लेकर आई तो दो बूँद छलक गई। ” माफ़ कीजियेगा वो …!” सांची डरते हुए बोली।

” नही नही कोई बात नही पानी ही तो है सूख जायेगा !” कार्तिक बोला। बाहर आ जब उसने सास को बताया तो दोनो हँसने लगी।

” नही मुझे जेल नही जाना …इंस्पेक्टर साहिबा छोड़ दो मुझे !” रात को अचानक कार्तिक नींद मे चिल्ला उठा ।

” क्या हुआ आपको !” सांची उसे झकझोरते हुए बोली।

” सांची प्लीज मुझे माफ़ कर दो आज के बाद मैं तुम्हारे साथ कभी गलत व्यवहार नही करूंगा पर प्लीज तुम अपनी दोस्त से मेरी शिकायत मत करना । मुझे जेल नही जाना !” कार्तिक उठकर सांची के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला।

” अरे अरे आप क्या कर रहे है मैं कोई शिकायत नही कर रही आप बेफिक्र रहिये और शांति से सो जाइये !” सांची उसका हाथ पकड़ कर बोली। उसने देखा दरवाजे के बाहर शारदा जी खड़ी है जो शायद कार्तिक की आवाज़ सुनकर आई होगी। सांची से नज़र मिलते ही वो मुस्कुरा दी और सांची का मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया आज शादी के छह साल बाद उसकी सास के कारण सम्मान मिल ही गया था।

दोस्तों ये सच है कि जमाना कितना बदल गया हो पर कुछ घरो मे आज भी औरत की स्थिति नही बदली। मन पसंद शादी ना होना , व्यापार मे कोई नुकसान हो या कोई परेशानी कुछ पति बहुत आराम से इसका दोषी पत्नी को मान उन्हे जलील करते है यहाँ तो सांची की सास ने उसका साथ दिया वरना ज्यादातर घरो मे सास भी बेटे के साथ मिल जाती है ऐसे मे उस औरत को या तो खुद कदम उठाना पड़ता है या घुट घुट कर जीना पड़ता है। यहाँ मेरे कुछ दोस्त कहेंगे ऐसे पति को छोड़ देना चाहिए था पर दोस्तों कुछ औरतों के लिए ये भी आसान नही होता क्योकि समाज तो क्या परिवार भी साथ नही होता । किन्तु मैं ऐसी औरतों को यही कहूँगी पति पति है कोई परमेश्वर नही कि उसकी हर अनुचित बात भी सहन करते रहो जब तक आप खुद अपने लिए आवाज़ नही उठाएंगी कोई कुछ नही कर सकता। यहां ऐसी स्थिति मे मै शारदा जी को नमन करना चाहूंगी जो उन्होंने बेटे को सही रास्ते पर लाने के लिए ना केवल बहू को प्रोत्साहित किया वरन उसका साथ भी दिया।

#माफी कहानी को ले आपके क्या विचार है बताइयेगा जरूर
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

Ser

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