संजीवनी बूटी सा मायका — डॉ उर्मिला शर्मा

ट्रैन से उतरकर नम्रता ने आंखों में गहरे उतार लेने वाली नजरों से प्लेटफार्म को देखा। मन एकसाथ घोर अपनापन और परायापन दोनों से भर उठा। यह उसका अपना शहर, अपना मायका है। वह यहां एक दिन के लिए एक सेमिनार में आई थी। घर से निकलते समय पड़ोसन शिल्पा ने उसे लगेज के साथ … Read more

वस्तु नहीं हूं मैं – डॉ उर्मिला शर्मा

 नववधु कविता को ससुराल आए तीन-चार दिन ही हुए होंगे । मायके में सबसे छोटी व सबकी लाडली वह दुनियादारी ज्यादा कुछ वाकिफ न थी। किस्सों, कहानियों या चलचित्र की रंगीन सपनीली दुनिया सा ख्याल था उसका विवाहित जीवन को लेकर । मध्यम कद की, मध्यम रंग की छरहरी काया,  लंबे घने काले केश, भोली- … Read more

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