औरतों को इतना सर पे नहीं चढ़ाना चाहिए – डॉ उर्मिला शर्मा

 अजय  और नीतीश गहरे दोस्त थे। वह गर्मी की छुट्टियों में महानगर से अपने होमटाउन आया था। जैसा कि वह हर साल आया करता था। प्रायः रोज ही वो दोनों मिलते थे। फोन पर भी अक्सर उनकी बातें होती रहती थीं। एक सप्ताह अभी आये हुए थे। और हर बार  की तरह इस बार नीतीश की पत्नी दिव्या महसूस करने लगी थी कि नीतीश कुछ रूखा व्यवहार करने लगा था। जो वह कहती, वह जानबूझकर उसका उल्टा करने लगा था। कड़ियों को जोड़कर सोचने पर दिव्या  लगा कि जब भी नीतीश गृहनगर आता था तो ऐसा ही होता था। कारण उसे समझ नहीं आता था। फिर जब वो लोग वापस अपने शहर जाते तो धीरे- धीरे नीतीश नॉर्मल एक केयरिंग पति के रूप में बदल जाता था।

        गर्मियों में ही दिव्या  व नीतीश की शादी हुई थी। आज उनका सालगिरह था। डिनर पर अजय  और उसकी पत्नी मधुरिमा आमंत्रित थे। दिव्या ने स्वयं मेंगो केक बनाई थी। चिकेन बिरयानी, रायता, सलाद व कचौरियों के साथ उसने मीठे में फ्रूट कस्टर्ड भी बनाये थे। शाम को ही अजय  और मधुरिमा आ गए थे। पनीर चिली व कॉफी पीने के बाद अभी डिनर में काफी वक्त था। तो दिव्या  मधुरिमा को अपने बेडरूम में ले आयी। अजय  व नीतीश ड्राइंग रूम में थे। पहले भी निहारिक अजय की पत्नी से मिली थी और वो उसे बहुत ही प्यारी एवम सोबर नेचर की लगी थी।  बातों- बातों में पता चला कि मधुरिमा इंग्लिश में मास्टर डिग्री है। किन्तु इच्छा होने के बावजूद अजय  उसे कोई नौकरी नहीं करने देता। अकेले उसे कहीं बाहर आने-जाने की इजाजत नहीं देता। दिव्या  को मधुरिमा बड़ी सहमी-सहमी सी लगी। डाइनिंग टेबल पर भी वह बहुत कम बोल रही थी। वही मधुरिमा उसके साथ कितना खुलकर बात कर रही थी।

            डिनर के बाद दिव्या  व मधुरिमा किचेन में गपशप करते हुए काम निपटाते जा रही थीं। तभी नीतीश ने आवाज़ लगाई-“नेहु! एक कप चाय और हो जाए।”



“अच्छा जी…।”

दिव्या  पहले ही गैस पर चाय चढ़ा चुकी थी क्योंकि उसे पता था कि इस तरह की फरमाइश उसके पतिदेव की तरफ से जरूर आएगी। चाय तैयार ही थी वह दो कप चाय लेकर ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ गयी। तभी उसके कानों में अजय  धीमी आवाज़ पड़ी-“यार! तूने भाभी जी को बहुत छूट दे रखी है। औरतों को इतना सर पे नहीं चढ़ाना चाहिए। चल ना यार! कल कुणाल के फार्म हाउस में बैचलर पार्टी रखी है। दूसरे तरह का भी इंतजाम  कर रखा है उसने “

“नहीं अजय ! ….कल मैंने दिव्या  को मूवी दिखाने और शॉपिंग कराने का प्रॉमिस किया है। वो नाराज हो जाएगी।”- अजय  ने बेबसी जताई।

“किसी और दिन दिखा देना। इतनी अहमियत क्यों देता है तू भाभी को। देख… मेरी पत्नी को मेरी हर बात में हाँ में हाँ मिलाती है। हिम्मत नहीं होती मुझसे जुबान लड़ाने की।”

        अब दिव्या  के सामने नीतीश के रूखे व्यवहार की गुत्थी सुलझने लगी थी। चाय लेकर वह सामने खड़ी हो गयी। बड़े प्यार से बोली-“अजय जी ! ठीक कहते हैं। आपकी पत्नी कितनी सुशील हैं। जरा भी किसी बात में आवाज़ नहीं उठाती। पर जरा ये अपने जानने की कोशिश की है कि ऐसा वो दिल से या डर से करती हैं। पत्नी की भावना को नहीं समझतें। किस युग में जी रहे हैं आप? आज भी आप सामंती सोच रखते हैं। कम से कम इनको तो मत बहकाईये।” एक सांस में दिव्या  यह सब बोल गई।

    अजय  भक्क रह गया। “सॉरी भाभी जी।”- बस इतना ही बोल पाया।

“इट्स ओके अजय  जी। मैंने ही कुछ ज्यादा बोल दिया।” बेमन से मुस्कुराते हुए कहा।

         क्योंकि दिव्या  घर आए मेहमान को अपमानित व नाराज नहीं करना चाहती थी।

 

  –डॉ उर्मिला शर्मा

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