औलाद बुढ़ापे में कैसे कैसे दिन देखने पर मजबूर करती हैं – शिनम सिंह 

“बेटा!! ये लोग कौन थे,पिछले कुछ दिनों से तू लगातार अनजान लोगों को घर लाता हैं ये चल क्या रहा है??? क्यों आते हैं ये लोग घर पर??? क्या चल रहा हैं तेरे दिमाग में??”

कविता जी अपने बेटे ध्रुव से बोलीं.

“कुछ नहीं मां.. आप इन सबसे दूर रहो,भजन कीर्तन करने की उम्र हैं आपकी,वही करो.. फालतू के कामों में ध्यान मत दो” इतना बोल धुव्र वहां से चला गया।

लेकिन कविता जी का मन बैचेन था,ध्रुव पिछले एक महीने में कई लोगों को घर ला चुका था,कविता जी को कई बार लगा कि ध्रुव शायद मकान बेचना चाहता है लेकिन उन्हें अपनी परवरिश पर भी भरोसा था,उनका दिल कहता था कि अगर ऐसी कोई बात होती तो ध्रुव उन्हें बताता जरूर और बस यही सोचकर वो अपने बैचेन मन को दिलासा दे लेती लेकिन आज उनका मन शांत होने का नाम नहीं ले रहा था उन्होंने सोचा एक बार बहू से बात करके देखती हूं 

वो अपनी बहू के कमरे में गईं और बोली,” पल्लवी क्या चल रहा है?? ध्रुव कुछ बताता क्यों नहीं और तुम भी कुछ नहीं बोलती,हर दूसरे दिन कोई ना कोई घर देखने आता है,कहीं तुम लोग इस घर को बेचना तो नहीं चाहते??”

“हां मांजी,इसीलिए तो ध्रुव ग्राहकों को घर दिखाने लाते हैं,जैसे ही कोई अच्छा ग्राहक मिलेगा हम ये घर बेच देंगे, हमें लगा था अब तक आप समझ गई होंगी”

“क्या?? तुम दोनों ने इतना बड़ा फैंसला ले लिया और मुझे बताया तक नहीं…. मैं कह देती हूं मेरे रहते ये घर नहीं बिकेगा… ये घर मेरे पति की खून पसीने की कमाई से बना हैं,ऐसे कैसे कोई बेच देगा”

“मां जी ये घर तो आपके बेटे के नाम हैं,घर उनकी तनख्वाह से चलता हैं, वो जब चाहे,जिसे चाहे ये घर बेच सकता हैं”

“और फिर कहां जायेंगे घर बेचकर??ले देकर ये एक घर ही तो हैं हमारे पास,अब ये भी बिक जायेगा तो कहां जायेंगे??ये सोचा हैं तुम लोगों ने??”

“जी बिल्कुल सोचा हैं,हम दूसरा घर ले रहे हैं और आपको वृद्धाश्रम भेजने का फैसला ले लिया है, वैसे भी आपके घुटनों में दर्द रहता हैं और इलाज़ पर भी बहुत पैसे लग चुके हैं, इलाज़ के साथ आपको देखभाल की जरूरत भी हैं जो हमसे अब नहीं होगी,जितनी सेवा करनी थी करली..अब हमसे और सेवा नहीं होती,इसीलिए अब आपको वृद्धाश्रम जाना पड़ेगा,सारा पैसा आपके इलाज़ पर लगा देंगे तो कल को हमारे बच्चों को अच्छा भविष्य कैसे देंगे,आपको क्या पता हमारी जिंदगी में क्या क्या दुख हैं और इस महंगाई के दौर में कैसे हम घर चला रहे हैं ये केवल हम ही जानते हैं”

इतना सुनकर कविता जी के पैरों तले जमीन खिसक गई और वो वही जमीन पर बैठ गई,आंखों से अश्रु धारा बहने लगी,उन्होंने पूरी जिंदगी घर परिवार के नाम कर दी थी और अब बुढ़ापे में उन्हें ऐसा दिन देखना पड़ रहा हैं, उन्हें अभी भी लग रहा था कि वो कोई बुरा सपना देख रही हैं.




जैसे तैसे खुद को संभाल,रोती बिलखती वो अपने कमरे में पहुंची,सामने लगी पति की तस्वीर देख कर बोली,” काश!!! आप होते तो ये दिन ना देखना पड़ता,आपने तो मकान मेरे नाम कर दिया था लेकिन मैं पुत्रमोह में इतनी अंधी हो गई कि बेटा का स्वार्थ देख न पाई और उसके कहने से घर उसके नाम कर दिया,अब वही बेटा मुझे वृद्धाश्रम भेजना चाहता है… माता पिता इतनी उम्मीद से अपने बच्चें को पालते हैं,उनकी खुशी के लिए क्या कुछ नहीं करते… याद हैं आपको जब ध्रुव को बचपन में बुखार आता था तो मैं पूरी रात नहीं सोती थी,उसके कारण नौकरी तक छोड़ दी थी,उसकी एक आवाज़ पर दौड़ी चली आती थी,पूरी जिंदगी उसके नाम कर दी थी… लेकिन मुझे बदले में क्या मिला??दूसरा बच्चा तक नहीं किया,ध्रुव इकलौता मेरे बुढ़ापे की लाठी हैं और आज लग रहा हैं मेरी वो लाठी मुझसे छूट रही हैं “

रोते सुबकते…कब उनकी उनकी आंख लग गई उन्हें पता ही नहीं लगा।

सपने में उन्हें उनके पति कैलाश बाबू दिखाई दिए वो कविता जी से बोले,” देखो कविता… पहले भी कहता था पुत्र मोह में अंधी मत बनो,आज भी यही कहूंगा.. ये घर तुम्हारा हैं और तुम्हें इस घर से कोई नहीं निकाल सकता,रही बात तुम्हारे निजी खर्चों की तो तुम इस घर को किराए पर चढ़ा अपना गुजारा कर सकती हो,जब तुम्हारी औलाद तुम्हें बोझ समझ रही हो तो तुम क्यों ममता की मूरत बनी बैठी हो???”

“लेकिन ये घर बिक जायेगा तो मैं क्या करूंगी??? और बच्चें तो मेरी सुनते ही नहीं,अब तो घर ध्रुव के नाम हैं,कानूनन वो ही इस घर का मालिक हैं”

“तो तुम भी कानून की मदद लो,तुम पुलिस को फोन करो और बोलो कि बहु बेटे ने गलत तरीके से घर अपने नाम करवा लिया और अब ये लोग घर बेचना चाहते हैं,ये घर बिकना नहीं चाहिए कविता… इसमें मेरे जीवन भर की कमाई लगी है… ये घर बिकना नहीं चाहिए” इतना बोल कैलाश बाबू आलोप हो गए।

“सुनिए सुनिए…. रुकिए… कहां गए आप!!! ” कविता जी सपने में इतनी ज़ोर से चिल्लाई की उनकी नींद टूट गई।

वो उठी और उन्होंने खुद को संभाला

तभी कमरे में ध्रुव आया और बोला,” मां पल्लवी ने आपको सब कुछ बता ही दिया हैं,आप अपना सामान बांध लो,कल आपको जाना हैं,आप फिक्र मत करो..हम आपसे मिलने आते रहेंगे।”

एक बार के लिए तो कविता जी अपने बेटे को देखती रह गई, उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक जो ध्रुव उनके आगे पीछे घूमता रहता था और कहता था मां तुम ही मेरी दुनिया हो,वही ध्रुव आज उन्हें वृद्धाश्रम भेजना चाहता हैं, अंदर ही अंदर वो टूटती जा रही थी,जैसे तैसे खुद को संभाला।

और फिर बोली,” ये मेरा घर हैं, तुम्हें जाना हैं तो इस घर से जा सकते हो ,जब तक जिंदा हूं मैं इस घर से नहीं जाऊंगी”




कविता जी की आवाज़ में गुस्सा था।

“आपका खर्चा नहीं उठा पा रहा हूं,इसीलिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं हैं,आपको जाना ही होगा और वहां आपको आपकी उम्र के लोग भी मिल जायेंगे,आपको अच्छा लगेगा वहां जाकर।”

“मैं कहीं नहीं जाऊंगी समझा तू… ये घर मेरा हैं। “

तभी ध्रुव के फ़ोन की घंटी बजी और वो फ़ोन पर बात करता कमरे से बाहर चला गया।

इसके बाद कविता जी ने पुलिस स्टेशन फोन लगाया और सारी बात बता दी।

कुछ ही देर में पुलिस वहां आ गई

पुलिस को घर में देख ध्रुव और पल्लवी दोनों डर गए और मां ने चरणों में गिरकर माफ़ी मांगने लगे

कविता जी बोली”बेटा माफ़ी गलती के लिए मिलती हैं गुनाह के लिए नहीं,जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया, पाला पोसा… तुमने उसी के साथ धोखे किया… कोई माफ़ी नहीं मिलेगी”

पुलिस ध्रुव को ले गई

पल्लवी ने सास के समझाने की कोशिश की और उनसे पुलिस कंप्लेन वापिस लेने की गुजारिश भी की, तो कविता जी घर अपने नाम करवाने की शर्त पर अड़ गई

“कैसी मां हैं आप?? अपने ही बच्चों की दुश्मन बनी हुई हैं,क्या करेंगी इस घर का जब बच्चें ही नहीं रहेंगे”




“तुम ये बड़ी बड़ी बातें ना करो बहु!!!!तुम्हारे मुंह को शोभा नहीं देती, मैं तो दया और त्याग की मूर्ति थी तुम्हें लोगों ने मेरे अंदर की ज्वाला को जगा दिया और क्या कहा था तुमने कि तुम्हारे जीवन में बहुत दुख हैं…हम सभी के जीवन में कोई ना कोई दुख तो होता ही हैं जीवन में कभी धूप तो कभी छांव होती हैं लेकिन उसका ये मतलब नहीं कि दुख कम करने के लिए आपने बूढ़े माता पिता को घर से निकल दिया जाएं, अरे माता पिता तो पेड़ की ठंडी शीतल छांव जैसे होते हैं जो हमेशा बच्चों को दुनिया की धूप से बचाते हैं लेकिन तुम तो उस छांव को ही खत्म करना चाहते हो”

इतना सुन पल्लवी को जैसे सांप सूंघ गया उससे कुछ बोलते ना बना

कविता जी ने बेटे से बात कर घर अपने नाम करवा लिया और दर्ज करवाई पुलिस कंप्लेन वापिस ले ली।

ध्रुव घर वापिस आया तो बिल्कुल बदल चुका था,उसे अपने किए का पछतावा था,उसने मां के चरणों में गिर माफ़ी मांग ली, मां का नाज़ुक दिल औलाद को रोता देख नरम पड़ गया और उन्होंने बेटे को माफ़ कर दिया।

दोनों मां बेटा खूब रोए और सारे अपराधबोध आंसुओं के साथ बह गए।

दोस्तों कुछ समय पहले मुझे वृद्धाश्रम जाने का मौका मिला,वहां बुजुर्ग लोगों की कहानी सुन मेरा दिल रो दिया,लगभग सभी की यही कहानी थी कि जब तक हाथ पैर चल रहे थे तब तक सही था,जैसे ही दुख तकलीफों ने घेरा बच्चों ने मुंह मोड़ लिया,कुछ बच्चों ने तो धोखे से घर व जमीन अपने नाम करवा ली और फिर माता पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आए,ये कहां तक सही हैं??

जिन माता-पिता ने अपना जीवन हमारे नाम कर दिया,खुद सारी मुसीबतें झेलते रहे लेकिन औलाद पर आंच तक नहीं आने दी, जरा सी चोट लगने पर जो दौड़ कर हमारे पास आते थे और बुखार आने पर पूरी रात जग कर माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां किया करते थे, उन माता पिता के लिए हमारा दिल इतना कठोर कैसे बन जाता हैं कि हम उन्हें घर से निकाल देते हैं।

ऐसा नहीं होना चाहिए

माता-पिता ने बचपन से अब तक हमें संभाला,अब हमारी बारी हैं,उन्होंने माता पिता होने के सारे फर्ज़ निभा दिए,अब औलाद होने का फर्ज़ निभाने की जिम्मेदारी हमारी हैं,अच्छी औलाद होने का फर्ज़ जरूर निभाएं 

हम प्रगति के नाम पर जिस दिशा की ओर भाग रहे हैं वो राह हमें सच में कहीं का नहीं छोड़ेगी,अपना परिवार हर हाल में संभाल कर रखें,यही सच्चा सुख और सच्ची दौलत है।

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शिनम सिंह 

 

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