अरी ओ शन्नो कहाँ मर गई.. जरा छमिया, लैला, रसीली सबको बुलाकर तो ले के आ मेरे पास।
अब कौन सी आफत आ गई ये मौसी को.. जरा सा हंसो बोलो तो बस मौसी को काम याद आने लगते हैं।
लो आ गये.. अब बताओ ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा जो इतनी बेचैन हुई जा रही हो।
पहाड़ अभी तो नहीं टूटा पर अब जरूर टूट पड़ेगा तुम सब पर सुबह जल्दी उठने के नाम पर।
क्यों जल्दी क्यों उठना है??
वो बी- ब्लॉक वाली शर्माइन है न उसके यहाँ नाती हुआ है कल सुबह आठ बजे के पहले ही चलेंगे उसके बच्चे का नेग लेने। सुबह सुबह उसका आदमी और बेटा घर ही मिल जायेंगे तो कुछ अच्छा सा नेग मिल जायेगा वरना वो कंजूसड़ी तो कुछ देने से रही।
ऐ छमिया सुन लिया न..छः बजे उठ जाना तभी तैयार हो पायेगी तू… आधा घंटा तो तुझे लाली लिपिस्टिक लगाने में लगता है.. हा हा हा..
हाँ हाँ अपनी क्यों नहीं कहती लैला जो जागने के बाद भी एक आँख खोलकर देखती रहती है कि सारा काम हो जाये तब उठूँ.. कामचोर कहीं की।
हे भगवान!! कितना बोलती हो तुम लोग.. विधाता ने लगता है काठ की जुबान लगा दी है मांस की जगह जो थकती ही नहीं.. अब जल्दी जल्दी काम निपटा कर सो जाओ जिससे सुबह जल्दी नींद खुल जाये।
सुबह सब सज धज कर पहुँच गईं और नाच गा कर बलैया लेने लगीं बच्चे की, सभी घरवाले खुश थे उनकी दुआओं के असर से उनके बच्चे पर कोई बुरा साया नहीं पड़ेगा।
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कैसी विडम्बना है तकदीर की जिनके औलाद नहीं उनकी दुआएं ही सबसे अधिक असरदार मानी जाती हैं।
मौसी बच्चे को बार बार छाती में भींच लेती उसकी ममता मुद्दतों से इस अहसास के लिए तड़प रही थी तभी बच्चे की दादी उसे लेने के लिए हाथ बढ़ा देती हैं मौसी को ऐसा लग रहा था मानो अचानक मिले खजाने को कोई छीने लिये जा रहा है पर वह उसका कोई नहीं था हकीकत यही थी बेमन से बच्चे को उन्हें देकर मौसी मन मसोसती चली आई।
हम ट्रांसजेंडर को ईश्वर ने बनाया ही क्यों? हमारी शारीरिक बनावट के कारण हम अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं। लोग हमारा मज़ाक बनाते हैं कोई हमारी भावनाओं को नहीं समझता। काश!!! हमारे भी बच्चे होते,, सोचते सोचते मौसी की आँखों में आँसू आ गये जिन्हें शन्नो ने देख लिया।
क्या बात है मौसी आपकी आँखों में आँसू!! अभी तो आप इतनी खुश थी अचानक क्या हो गया कोई बात बुरी लग गई क्या आपको??
नहीं रे.. बुरा लगने का हक कहाँ है हमको.. बस बच्चे का कोमल रुई के फ़ाहे जैसा नर्म अहसास मन को खींचे ले रहा है। पता है शन्नो वह मेरी छाती से कैसे चिपक गया था ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यास तृप्त हो गई हो मेरा बहुत मन करता है काश मेरा भी कोई अपना बच्चा होता।
छमिया, लैला, रसीली अपनी बातों में मस्त चली जा रही थी तभी झाड़ियों के पीछे से किसी बच्चे के रोने का धीमा धीमा स्वर सुनाई देता है।
ऐ करमजलियों जरा तो चुप रहो जब देखो तब ही ही ठी ठी करती रहती हो। यह मेरा भ्रम है कि तुम्हें भी कुछ सुनाई दे रहा है।
हाँ मौसी यह तो किसी नवजात शिशु के रोने की आवाज़ है।
सब उस तरफ बढ़ जाती हैं वहाँ एक शिशु कपड़े में लिपटा रो रहा था कोई अपने पाप को छिपाने के लिए उसे मरने के लिए वहाँ फेंक गया था उसके बदन पर और आँखों में चींटियाँ चिपकी हुई थी।
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मौसी ने तुरंत उसे गोदी में उठाकर सीने से लगा लिया किसी का शाप मौसी के लिए वरदान बन गया था उनकी मनोकामना आज पूरी हो गई थी।
अब तो उनका घर आबाद हो गया था जीने का बहाना मिल गया था उन्हें सूने जीवन में बहार बनकर आया था गौतम। उसको पालते हुए कब पांच साल निकल गये पता ही नहीं चला।
एक दिन मौसी गौतम को छोड़ने स्कूल जा रही थी तभी तेज़ रफ़्तार से एक बाइक सवार उन्हें टक्कर मारता हुआ निकल गया गौतम सड़क पर बेहोश होकर गिर गया उसके सर से खून बह रहा था। मौसी ने मिन्नतें करके एक ऑटो वाले को रोका और तुरंत हॉस्पिटल ले गई।
डॉक्टर ने कहा.. बच्चे के शरीर से खून बहुत बह गया है अगर तुरंत खून की व्यवस्था नहीं हो पाई तो इसे बचाना मुश्किल हो जायेगा आप तुरंत इंतज़ाम कीजिये क्योंकि इसका ब्लड ग्रुप ओ निगेटिव है जो हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
मेरा ब्लड ग्रुप यही है डॉक्टर आप जितना चाहें मेरा खून ले लीजिये पर मेरे बच्चे को बचा लीजिये।
लेकिन शासन के नियमानुसार हम आपका खून नहीं ले सकते ।
मौसी तड़प कर चीखने लगी.. क्यों नहीं ले सकते ..क्या मेरा खून लाल नहीं.. क्या वह अलग तत्वों से बना है.. क्या मेरी शारीरिक बनावट मुझे इंसान होने के रास्ते में रोड़ा है या यह डर है कि मेरा खून किसी के शरीर में जाकर ट्रांसजेंडर पैदा करेगा यदि ऐसा है तो मेरे माता पिता जिन्होंने मुझे जन्म दिया वे तो सामान्य इंसान थे फिर मैं ऐसी क्यों पैदा हुई???
डॉक्टर आपने तो मेडिकल साइंस पढ़ा है क्या सच में हम इंसान नहीं फिर हमारे साथ यह भेदभाव क्यों???
डॉक्टर का मन उसके लिए करुणा से भर गया और आज उसने अपने दिल की आवाज़ सुनते हुए एक कठोर किंतु सटीक फैसला लिया हर हाल में बच्चे को बचाने का।
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अब मौसी का खून बच्चे की रगों में दौड़ रहा था अब वह उसकी अपनी औलाद था मन से भी और तन से भी।
#औलाद
स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर