अस्तित्व की तलाश ( भाग 1 ) – लतिका श्रीवास्तव 

..मां देखो मेरी ट्रॉफी और ये ढेर सारे पुरस्कार सब में मैं ही फर्स्ट आया हूं मिस ने मेरी बहुत तारीफ की खूब तालियां बजीं बजती ही रही …ये देखो सर ने मुझे ये चॉकलेट का डब्बा भी दिया है …. मानस अभी अभी स्कूल से घर आया था और आज स्कूल में मिले ढेरों इनाम मां को दिखा कर फूला नहीं समा रहा था ..तालियों की गडगड़ाहट तो अभी भी जैसे उसके कानों में जीवंत थी….जल्दी से घर आकर अपनी असीमित खुशी मां पिता के साथ बांटने की अधीरता उसके रोम रोम से जाहिर हो रही थी..!

मां सावित्री देवी भी अपने इकलौते प्यारे पुत्र की उपलब्धियों देख देख कर निहाल हुई जा रहीं थीं…मेरा बेटा बहुत नाम कमाएगा बड़े होकर देखना अपने पिता से भी ज्यादा इसका नाम होगा….चल आज मैं तेरे लिए मेवे वाली खीर बनाती हूं बेटे का लाड करते हुए उन्होंने कहा ही था कि पिताजी आ गए…ये सब मान सम्मान पुरस्कार तुम्हारे पिता के कारण ही तुम्हें मिला  है ये मत भूलना कभी…. सबसे ज्यादा खीर भी हमें ही मिलेगी अरे तुम्हारे पिता के रौब दाब के कारण ही तो स्कूल वाले तुम्हें इतने इनाम  देते हैं …..अचानक अपने पिता की जोरदार भर्त्सना सुन कर नन्हा सा मानस सहम गया .. .. नहीं आपके कारण नहीं है पापा टीचर मेरी ही तारीफ कर रही थीं मैंने इतना अच्छा भाषण बोला था गीत गाया था….क्लास के सभी बच्चों ने भाग लिया था …फिर भी मैं ही फर्स्ट आया क्योंकि मेरा ही सबसे अच्छा था आपके कारण क्यों??

लेकिन फिर भी अपने पिता की जोर जोर से हंसी उड़ाने वाली हंसी सुनकर रोता पैर पटकता मां के पास चला गया था।




फिर तो जैसे सिलसिला ही हो गया ऐसी बातों का घर में….मानस क्लास में फर्स्ट आया तो अपने पापा की प्रतिष्ठा के कारण….क्लास मॉनिटर बना तो पापा के रुतबे के कारण….बेस्ट स्टूडेंट ऑफ स्कूल चयनित हुआ तो भी अपने पापा के ऊंचे पद के कारण…!

उसके पापा राघव राम विधायक निर्वाचित हुए थे ….शहर का प्रतिष्ठित स्कूल था हर साल मोटी ग्रांट विधायक जी के कारण प्राप्त होती थी ….स्कूल के हर काम में उद्घाटन समारोहों वार्षिक उत्सव ….शिक्षक चयन में हर काम बिना विधायक जी की अनुमति और अनुशंसा के नहीं होता था….ऐसे रौबीले दुधारू गाय विधायक जी का इकलौता सुपुत्र उनके स्कूल में पढ़ता है ये  स्कूल प्रबंधन के लिए बहुत फख्र की बात थी…ऐसा नहीं था कि मानस अयोग्य था वो वास्तव में अतीव प्रतिभाशाली बच्चा था परंतु घर और बाहर हर जगह पापा के नाम का टैग उसके साथ लगा होने से उसके मन का असंतोष बढ़ता जा रहा था…जब खुद उसके पापा अपने पुत्र की हर सफलता और उपलब्धि का श्रेय अपने पुत्र की काबिलियत को ना देकर स्वयं के विधायक पद को देते थे तब फिर पास पड़ोस समाज और उसके सहपाठी मित्र भला क्यों पीछे रहते।

बचपन से उसके मासूम दिल में पल रहा ये असंतोष अपने पापा के पद प्रतिष्ठा के प्रति  चिढ़ पैदा करता गया और उम्र बढ़ने के साथ पापा के पद  के इस टैग से मुक्त होकर खुद की काबिलियत साबित करने का जुनून उस पर इस कदर हावी होने लगा कि पिता की छत्रछाया से दूर कहीं भाग जाने की इच्छा प्रबल होती गई।




राघव राम आज बहुत खुश थे परम आनंद से अभिभूत हो रहे थे घर पर आते ही अपनी धर्मपत्नी सावित्री को जोर जोर से आवाज लगाने लगे..अरे ओ सवितारी सवितरी… काऊन कोना मा घुसे हो अरे हियां आवो जल्दी…”उनकी शब्दावली से ही सावित्री ने किसी खुश खबरी का अंदाजा लगा लिया था सो वो खीर भरा कटोरा लेकर उपस्थित हो गई.. लीजिए पहिले खीर खा लेई फेर का खुसी की बात भए है बताइए…!

बस अपनी धर्मपत्नी की इसी अदा पे तो राघव राम फिदा हुए जाते हैं कैसे उनके मन की बात समझ जाती है वही करती है झट से जो वो मन ही मन में सोचते रहते है…आज उनका मन सवितारी के हाथों से बनी खीर खाने का ही हो रहा था

मन का उत्साह दोगुना हो गया स्वादिष्ट खीर खा कर।

अब खुश खबरी का है बताइए…उत्कंठित पत्नी की आतुरता ने राघव राम को एक बार फिर आनंदित कर दिया था..अरे बेटवा कहां है पहिले उसको बुला लाओ तब इकठ्ठा बताएंगे ….सुन कर सावित्री जल्दी से मानस को बुला लाई।मानस को विचारमग्न देख पिता ने कारण पूछ ही लिया तो मानस ने कुछ नहीं पिता जी नौकरी के बारे में सोच रहा था कह दिया

ये सुनते ही राघव जी जोश के मारे खड़े हो गए अरे हमारे होते हुए हमारे इकलौते बेटे को कोई भी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है…बचपन से लेकर अभी जवानी तक पिता की छत्रछाया में पल कर बड़े हुए है अब भी तुम्हारे पिता के रूआब में कोई कमी नहीं आई है  ..तुम्हारी चिंता का इलाज है हमारी खुशखबरी…




सुनो यहां की सबसे बड़ी कंपनी में जनरल मैनेजर पद पर नियुक्ति करवा लाए हैं हम ये लो अपना नियुक्ति पत्र….बहुत  शान से और दर्प पूर्ण हंसी के साथ पत्नी और पुत्र की ओर देखते हुए उन्होंने नियुक्ति पत्र मानस की ओर बढ़ाया तो मानस ने उस नियुक्ति पत्र को लपक कर ग्रहण करने के बजाय एक और नियुक्ति पत्र पिता की ओर बढ़ा दिया था।

ये क्या है ….आश्चर्य चकित पिता के प्रश्न पर मानस ने आप खुद ही पढ़ लीजिए मेरी नौकरी लग चुकी है और मैं जा रहा हूं……!

लतिका श्रीवास्तव

1 thought on “अस्तित्व की तलाश ( भाग 1 ) – लतिका श्रीवास्तव ”

  1. सभी कहानियाँ बहुत सुंदर। मैने सभी पढी।

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