अपनों का अहसान कैसा- मंजू ओमर: moral stories in hindi

moral stories in hindi : गरिमा की सास ने महिमा को गले से लगा लिया बहुत बड़ा काम किया है तुमने आज महिमा गरिमा की सांस बोली तुम्हारा बड़ा अहसान है , महिमा बोली नहीं आंटी अहसान कैसा मैंने तो अपना फर्ज समझ कर किया है ।

                गरिमा और महिमा दोनों बहनें थीं और एक ही शहर में दोनों की ससुराल थी ।यों कहिए कि महिमा ने ही गरिमा की शादी करवाई थी । गरिमा की ससुराल अच्छी थी दो देवर और सांस ससुर के साथ भरा पूरा परिवार था। पैसों की भी कोई कमी नहीं थी बहुत तो नहीं था लेकिन ठीक ठाक था । दोनों देवर की भी शादी हो गई थी दोनों अपने परिवार के साथ अलग अलग शहर में रहते थे। गरिमा सास ससुर के साथ रहती थी।

गरिमा का पति ज्यादा कुछ कमाता नहीं था गरिमा की सांस गरिमा को ही दोषी मानती थी कि उनका लड़का ज्यादा कुछ काम नहीं करता था ।घर का खर्च सांस ही उठाती थी ।दो बच्चे थे गरिमा के एक 10 साल का और एक 14 साल का ।सांस हर छोटी-बड़ी बात में गरिमा को ताने मारती रहती थी। यदि रसोई में बच्चों के लिए कुछ बनाने लगती या कपड़े धोने लगती मशीन में तो टोंक देती कि पति की कमाई तो है नहीं ये नहीं है कि खुद भी कुछ करें और खाने बनाने को सबकुछ चाहिए ।

अभी थोड़े दिन पहले रसोई का सामान मंगवाया है सब खत्म हो गया । गरिमा मन मसोस कर रह जाती । चूंकि घर का खर्चा सांस ही चलाती थी तो ताने मारती रहती थी।उनका लड़का ज्यादा कुछ कमाता नहीं है तो गरिमा क्या करें उसने थोड़ी मना किया है कि काम न करें । गरिमा पढ़ी लिखी तो थी सो घर में कुछ बच्चों की ट्यूशन लेती थी ।

               एक दिन गरिमा के पति का मोटरसाइकिल से एक्सीडेंट हुआ और गिरने की वजह से सिर में चोट आई और बेहोश हो गया अस्पताल में भर्ती कराया गया महीना भर करीब इलाज चला लेकिन सिर में चोट लगी थी इसलिए कंट्रोल में नहीं आ पाया और कोमा में चला गया फिर चालीस दिन बाद उसकी मौत हो गई। कच्ची गृहस्थी थी गरिमा की और गरिमा की भी अभी उम्र कम थी । मुसीबतों का पहाड़ जब आ जाए सामने तो सामना करना ही पड़ता है । गरिमा ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली जैसे तैसे समय कट रहा था।

                     लेकिन गरिमा को धीरे धीरे बीमारियों ने घेर लिया । डिलिवरी के समय उचित देखभाल और खान-पान न होने की वजह से गरिमा को तमाम तरह की दिक्कतें पेश आने लगी।अब इतना पैसा तो था नहीं कि अपना इलाज ढंग से करा सके ।सांस कुछ मदद करती नहीं थी छोटी सी नौकरी थी उसकी।सो गरिमा अपनी बीमारी को नजरंदाज करती रही । इधर सांस का रवैया अभी तक वैसा ही था , बेटे के जाने का ग़म तो था लेकिन उसका परिवार है बच्चे हैं घर में चलो उनकी ही देखभाल कर दो ढंग से या थोड़ी मदद कर दो लेकिन वो नहीं करती थी । खाना पीना दे देती थी उसी का अहसान जताते थी ।

                 गरिमा का मासिक धर्म कुछ समय से अनियमित चल रहा था ज्यादा परेशानी की वजह से गरिमा बिल्कुल सूखती जा रही थी।रंग बिल्कुल सफेद पड़ गया था आंखें ऐसी लगती थी जैसे बाहर को निकली आ रही हो । महिमा ने गरिमा से कहा तुम कैसी होती जा रही हो जरा अपना ख्याल करो तो गरिमा बोलती ठीक है दीदी बच्चों का ख्याल करूं कि अपना करूं ।

ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि एक दिन गरिमा स्कूल में बच्चों को पढ़ाते समय गिर पड़ी स्कूल की सह अध्यापिकाओं ने गरिमा को घर तक पहुंचाया। महिमा को जब पता चला तो वो शाम को गरिमा के घर गाई तो गरिमा की हालत देखकर चिंतित हो गई । महिमा जबरदस्ती गरिमा को डाक्टर के पास ले गई वहां चेकअप के बाद पता चला कि गरिमा के यूटेस में गांठें है जिसकी वजह से प्राब्लम आ रही है । इसका आपरेशन कराना पड़ेगा डाक्टर बोली अभी के लिए तो दवा दे दे रही हूं लेकिन इसका इलाज आपरेशन ही है ।

                    अब समस्या ये थी कि कौन आपरेशन करायें गरिमा के पास तो पैसा नहीं था महिमा कहती आपरेशन कराने को तो गरिमा कहती दीदी मेरे पास तो पैसा नहीं है ।मरती हूं तो मर जाऊं । अरे कैसी बात कर रही हो बच्चों का क्या होगा उनका ख्याल करों।सांस जी हाथ नहीं धर रही थी । महिमा के पास भी इतना पैसा नहीं था कि वो भी कुछ कर सकें।

                           महिमा के बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की अभी उसको नौकरी मिली है । बेटे ने अपनी पहली सैलरी से पच्चीस हजार रूपए महिमा के पास भेजें तो महिमा बहुत खुश हुई । पैसे मिलते ही महिमा को गरिमा का ख्याल आया बेचारी इतनी परेशान हैं चलों उसकी कुछ मदद कर दे । थोड़ा गरिमा मिलाएं और थोड़ा हम मिला दें तो काम बन जाए ।

महिमा गरिमा को लेकर अस्पताल गई लेकिन वहां जांच वगैरह कराने में ही काफी पैसे खर्च हो गए और पता चला कि गांठें एक कि बजाय तीन है और आपरेशन के बाद गांठें दिल्ली भेजी जायेगी कैंसर के जांच के लिए उसमें भी खर्चा आयेगा । महिमा गरिमा को लेकर घर आ गई अब गरिमा के पास तो पैसे थे नहीं सांस ससुर मदद कर नहीं रहे थे ।

कुल साठ सत्तर हजार का खर्चा था । अगले महीने जब महिमा के बेटे ने फिर पच्चीस हजार भेजे तो महिमा के मन में एक खुशी की लहर दौड़ गई । इस तरह सब मिलाकर जुलाकर महिमा के पास सत्तर हजार रूपए इकट्ठे हो गए तीन बार का बेटे का पैसा मिलाकर । बेटे की पहली कमाई के पैसे थे तो किसी नेक काम में ही लगा दे किसी की जिंदगी बच जाए।

                          आज महिमा ने गरिमा को अस्पताल में भर्ती कराया और उसका आपरेशन हो गया । कैंसर का डर था वो भी नेगेटिव आया । बच्चों की किस्मत से गरिमा ठीक होकर घर आ गई । महिमा जब गरिमा को घर लेकर पहुंची तभी गरिमा की सांस ने महिमा को गले लगा लिया । किया तो कुछ नहीं चलों किसी का अहसान मान लिया यही बहुत था।सांस बोली तुमने बहुत बड़ा अहसान किया है गरिमा के ऊपर महिमा को बुरा लगा मदद करने को तो आगे नहीं आई चलो ठीक है मैंने कर दिया तो ठीक है।

               महिमा बोली नहीं आंटी इसमें अहसान की क्या बात है छोटी बहन थी अपने ही अपनों के काम आते हैं ।अब गरिमा ठीक है थोड़ी देखभाल की जरूरत है बस कुछ दिन में स्वस्थ हो जायेगी। कोई किसी की मदद करके एहसान थोड़ी करता है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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