अपने तो अपने होते हैं – चेतना अग्रवाल

क्या शादी के बाद लड़की का अपने माता-पिता पर कोई अधिकार नहीं होता..

आज जब कनिका की सहेली उससे मिलने उसके घर आई और उसे परेशान देखकर कारण पूछा, तो कनिका खुद को रोक ना पाई और उसका दर्द आँसू बनकर बह निकला… रश्मि ने भी उसे रोने दिया। वह उसे हल्का करना चाहती थी।

थोड़ी देर में जब कनिका ने अपने आपको सँभाला तो रश्मि ने सवालिया निगाहों से उसकी आँखों में झाँका।

कनिका बोली, “तुझे तो पता ही है, एक हफ्ते पहले ही मेरा ऑपरेशन हुआ है। सासू माँ और ननद ने आने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि वो मुझे पहले ही पसंद नहीं करती, इसी वजह से तो हम अलग रह रहे हैं…. इसलिए मैंने अपनी मम्मी को बुला लिया था।

बच्चे छोटे हैं, इसलिए कामवाली लगाने के बाद भी बच्चों को देखने के लिए कोई जिम्मेदार औरत चाहिए। लेकिन मम्मी भी चार दिन से ज्यादा नहीं रूकी। और वापस चली गई।  क्या मेरी किस्मत में किसी का भी प्यार नहीं है….

कोई मेरे दर्द में मेरे साथ नहीं है, जबकि मैं किसी को भी जरूरत में अकेला नहीं छोड़ती।”

“लेकिन  तू तो कह रही थी कि आँटी 15 दिन रूकेंगी। फिर वो इतनी जल्दी क्यों चली गई।” रश्मि ने पूछा।

“कभी भाई का फोन आ जाता तो कभी भाभी का….

मम्मी, कब आ रही हो…. हमें आपकी बहुत जरूरत है…. बच्चे आपके बिना परेशान हैं, उनकी पढ़ाई नहीं हो पा रही है… आप ही तो उन्हें पढ़ाती हो। हम दोनों ऑफिस चले जाते हैं तो घर अकेला रह जाता है।




क्या कुछ दिन वो बच्चों को खुद नहीं पढ़ा सकते, क्या भाभी थोड़े दिन एडजस्ट नहीं कर सकती और मम्मी को कौन सा मैंने यहाँ बेमतलब रोका हुआ था, ये तो मम्मी को भी पता था, उन्होंने भी नहीं कहा कि अभी कनिका की तबियत ठीक नहीं… कुछ दिन में आऊँगी, लेकिन उन्हें भी तो अपनी बहू के सामने महान बनना था या फिर ड़रते हैं वो उससे….

क्या मैं उनकी कुछ नहीं लगती…. क्या शादी के बाद लड़की का अपने माता-पिता पर कोई अधिकार नहीं होता… क्या मेरा दुख उनके लिए कुछ नहीं….” कहकर कनिका फिर रोने लगी।

“इस हालत में इतना परेशान होना ठीक नहीं, कनिका…. समस्या का समाधान निकाल, उसे बढ़ावा मत दे… क्या पता आँटी की कोई मजबूरी हो, तू सोच! वो भी तो एक औरत हैं… अगर वो अपनो बेटी की तकलीफ में उसके साथ रहती हैं तो ये समाज और भाभी जैसे लोग यह कहेंगे कि इन्हें तो अपनी बेटी से ही प्यार है, बहू की तकलीफ नहीं दिखती।”

“लेकिन रश्मि; जिंदगी में दुख तकलीफ तो लगी ही रहती है, अगर हम एक-दूसरे के काम नहीं आयेंगे तो कैसे होगा। अपने तो अपने होते हैं, वो यह नहीं सोचते कि उन्हें क्या तकलीफ होगी।

मेरी जैसी लड़कियों की तकलीफ के बारे में सोचो, जिनको शादी के बाद उसके माता-पिता भुला देते हैं और ससुराल में वो सास-ससुर के मन को नहीं सुहाती। हम तो अकेले हो गये। किस के साथ अपनी तकलीफ साझा करें। शादी को 12 साल हो गये, अब तक सभी बातों को नजरअंदाज कर देती थी, लेकिन अब सहन नहीं हो रहा…. बहुत दुख होता है कि हम इस दुनिया में अकेले हैं….”

“कनिका, कह तो तू ठीक रही है…. लेकिन इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता…. तू ज्यादा सोचेगी तो तेरे मन में आँटी और भैया-भाभी के लिए गलत सोच बनी रहेगी, जो तुम्हारे रिश्तों को भी प्रभावित करेगी। इस बात को इग्नोर कर अगर खुश रहने की कोशिश कर…. वरना तेरे साथ तेरे बच्चे भी परेशान होंगे…. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका दुनिया में कोई नहीं होता, वो भी तो मैनेज करते हैं…. हमें जिन्दगी में कुछ करना है तो अपने दम पर ही करना होगा….. जैसे तू अपनी सास को जबरदस्ती नहीं कर सकती, वैसे ही आँटी को भी जबरदस्ती नहीं कर सकती। हाँ ये जरूर है कि वो अपनी मम्मी हैं तो उनसे अपेक्षा ज्यादा होती है और जहाँ ज्यादा अपेक्षा होती है, वहीं मन दुखी होता है…. तू बस अपना ध्यान रख….

“तू सही कह रही है रश्मि, अब मैं ये आँसू नहीं बहाऊँगी… मैं अपने बच्चों के लिए जिऊँगी और खुद का वजूद खड़ा करूँगी। बच्चों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना  है….”

दोनों सहेलियाँ मुस्कुरा कर गले लग गई।

सखियो, किसी-किसी के साथ ऐसा होता है कि वो ना तो अपनी ससुराल वालों की चहेती बन पाती है और मायका तो उसका छूट सा ही जाता है, माँ-बाप चाहकर भी उसके दुख-दर्द में साथ खड़े नही हो पाते।

ये रचना स्वरचित है और मेरी सहेली के व्यक्तिगत अनुभव से लिखी है।

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धन्यवाद

चेतना अग्रवाल

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