अपने तो अपने होते है” – कुमुद मोहन

“रमा! सुनो ग्रीन लेबल टी तो मंगा ली ना, जीजी वही पीती हैं!”

“क्यूँ परेशान हो रहे हो? मैंने जीजी की पसंद की हर चीज़ जो जो तुमने बताई सब मंगा ली हैं” रमा ने हंसते हुए विनय से कहा?

विनय की बड़ी बहन आज बरसों बाद एक हफ़्ते के लिए रहने को आ रही थी,अलका के पति सुरेश बड़े बिज़नेसमैन थे,उनकी माँ बहुत दबंग थी,उनके लिए प्यार से ज्यादा पैसे की अहमियत थी।

अलका की शादी में दिये गए सामान से उनकी माँ  खुश नहीं थीं,इसलिए उन्होंनें सुरेश बाबू को ताकीद कर रखी थी कि अलका को दबा कर रखना,जब तक बहुत जरूरी ना हो अलका को मायके नहीं भेजना,सुरेश को तो वे ससुराल जाने ही नहीं देती कि कहीं वहीं का ना हो जाऐं शुरू से उनका नारा था“ससुराल जावत जावत मान घटे”।

 

शादी के बाद पहली राखी पर विनय अलका से राखी बंधवाने आया, तब भी उसकी सास ने लाऐ हुए सामान

को लेकर खूब हंगामा किया।

विनय के ब्याह में बहुत चिरौरी करने पर सुरेश बाबू एक दिन के लिए अलका को लेकर आए ,अलका एक दिन भी भाभी के साथ नहीं रह पाई।

सुरेश बाबू को बिदाई में अलका के माता-पिता ने अपनी हैसियत से भी बढ़ कर दिया,फ़िर भी अलका की सास ने कोई ना कोई कमी निकाल कर उसे खूब सुनाया।



 

अलका के पिता बहुत बीमार हो गए,वो अलका को देखना चाहते थे बहुत विनती करने पर जब अलका को भेजा उसके पिता चल बसे थे,सुरेश बाबू आए ,क्रीमेशन के बाद अलका को साथ ले गए, अलका अपनी माँ का दुःख भी बांट न पाई।माँ ने बस इतना पूछा “फिर कब आओगी?बेबस अलका क्या कहती?

फिर एक दिन माँ भी चली गईं,अलका का वही एक दिन का आना जाना।

छः महीने पहले अलका की सास चल बसी,उनके जाने

के बाद सुरेश थोड़ा बहुत बदलने लगे।

 

सुरेश बाबू को बिज़नेस के काम से एक हफ़्ते के लिए पेरिस जाना था,बहुत डरते हुए अलका ने मायके जाने की इजाज़त मांगी,जाने कैसे वो राज़ी हो गए।

बरसों बाद अलका अपने घर कुछ दिन रहने को जा रही थी,बहुत एक्साइटेड थी।

हवाई जहाज की खिड़की से अलका झांक कर अपने शहर को ऐसे देख रही थी जैसे कोई बच्चा अपने पसंदीदा खिलौनों को देखता है।उसे जहाज़ की रफ़्तार कम लग रही थी।

एयरपोर्ट के बाहर विनय,रमा और छुटकी को देखकर उसकी आँखों में खुशी के आँसू बह निकले।

 

घर में माता-पिता की फोटो देखकर उसके मन में आया अगर कभी इनके जीते जी आकर रहती तो ये दोनों कितने खुश होते।

रमा ने अलका के लिए माँ का कमरा और उनकी अलमारी खोल दी ,माँ का सामान वैसे ही रखा था,अलका को लगा जैसे माँ आसपास हो।



छुटकी अलका का हाथ खींचकर ले गई “देखो बुआ आपका कमरा!”!”मेरा कमरा?अलका सोचने लगी इतने बरसों बाद वो मेरा कहां रहा!अब तो वो छुटकी का या गेस्ट रूम हो गया होगा!जाकर देखा दीवार पर अलका की कोनवोकेशन के गाऊन वाली फोटो अभी तक लगी थी।

उसके कढ़ाई किये कुशन,तरतीब से लगे अलका के इकट्ठे किये शिवानी के नाॅवेल,अलका के स्टैम्प अलबम सबकुछ उसकी पुरानी अलमारी में लगा देखकर अलका की आँखों में आँसू आ गए!

पीछे से आकर रमा ने अलका के गले में बाहें डालते हुए कहा” आपका ये कमरा बरसों से आपकी राह देख रहा था,बहुत देर कर दी आपने आने में!”

घूम घूम कर पूरा देखते हुए वो बिल्कुल शादी के पहले वाली अलका बन गई,वो और विनय अपनी पुरानी बातों को याद करके जोर जोर से हंस रहे थे ठहाके लगा रहे थें,अलका को लगा जैसे इस तरह खुलकर हंसना तो वह भूल ही गयी थी।

दोपहर को घर के पिछवाड़े में मलाई कुल्फी वाले की आवाज़ सुनते ही विनय नेअलका को देखा तो दोनों की आंखों मे चमक आ गई विनय जल्दी से कुल्फी ले आया ,गर्मियों में वे दोनों मां पापा के सो जाने पर चुपचाप कुल्फी जरूर खाते थे।

अलका तरस गयी थी इन छोटी छोटी खुशियों के लिए।विनय ने चकोतरे की चाट बनाई,कुल्हड़ की लस्सी,सिंधी की जलेबी कचौड़ी,गुलाब जामुन जो जो अलका को पसंद था ले आया।

रात को रमा अलका के लिए बिस्तर ठीक कर रही थी,अलका बोली ” छत पर सोयें?विनय तो तैयार ही बैठा था झट से छत पर जाकर पानी का छिड़काव कर दरी बिछा कर सफ़ेद चादरें लगा दी,दोनों भाई बहन रात भर तारों को गिनते उनमें अपने माता-पिता को ढूंढते रहे।बरसों का दबा गुब़ार रात भर में निकल गया।



 

छुटकी ने तो बुआ को एक पल को भी नहीं छोड़ा ,दोनों खूब बतियाती,खेलतीं।अलका के पिता ने उसे कार चलाना सिखाया था, सुरेश बाबू के घर में उसे ड्राइवर होने के कारण ड्राइव करने इजाज़त नहीं थी,विनय कार अलका के लिए छोड़ कर ऑटो से ऑफ़िस चला जाता तो रमा और छुटकी को लेकर अलका पूरे शहर में खूब घूमती, तीनों कहीं चाट तो कहीं आइसक्रीम खातीं, उस ने रमा और छुटकी ने मिलकर खूब शाॅपिंग करी।

 

पता नहीं चला एक हफ़्ता कैसे बीत गया?

जाते वक्त रमा ने अलका का टीका किया, विनय एक लिफ़ाफ़ा देने लगा, तो अलका उसके हाथ पकड़कर बोली,”भैया! माँ पापा ने मुझे हमेशा बहुत दिया है,अब मैं तुम से कुछ नहीं लूंगी, इस एक हफ़्ते में तुमने मुझे जो खुशी दी है उसके आगे दुनिया की हर दौलत फ़ीकी है।

 

तभी छुटकी अलका से लिपट कर बोली “फिर कब आओगी बुआ?

  अलका को लगा जैसे माँ पूछ रही हो।रमा, विनय और छुटकी के प्यार की दौलत अपने आँचल में समेटे अलका सुरेश बाबू के घर लौट गई।

 

दोस्तों! काश: सुरेश बाबू और उनकी माँ अपनी आखों से दौलत की पट्टी उतार कर कभी अलका के दिल में भी झांकते| माता-पिता के चले जाने के बाद बहन की शादी के बरसों बाद भी जब भाई-भाभी मान सम्मान और प्यार देते हैं, एक लड़की के लिए इससे ज़्यादा सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है।

अपने तो अपने होते हैं!

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कुमुद मोहन

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