अपने पराए –  रणजीत सिंह भाटिया : Moral stories in hindi

  Moral stories in hindi : ”  देख बेटा जमाना बहुत खराब है , मां-बाप तो यही चाहते हैं कि उनकी बेटियों का घर जल्दी से जल्दी बस जाए,  तूने जितना पढ़ना सो पढ़ लिया, इतना ही काफी है, तूने कौन सी नौकरी करनी है….?

बहुत ही अच्छे  संपन्न परिवार  मैं तेरा रिश्ता तय किया गया है l और तुझे पता है….तेरे पिताजी के जाने के बाद मेरी इस घर में कितनी चलती है…? अब तेरे दोनों भाइयों और भाभियों का भी यही फैसला है, कि तेरी शादी कर दी जाए, इतने अच्छे रिश्ते बार-बार नहीं मिलते… “

          यह   वह जमाना था जब लड़कियों को ज्यादा पढ़ने के बजाय उनके घर वाले उनकी जल्दी से जल्दी शादी करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते थे l ” पर मां मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं हाई स्कूल से आगे पढ़ाई करके मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं ” 19 वर्षीय दीपा अपनी मां से विनती कर रही थी l

          पर  दीपा की एक भी दलील काम ना आई…और कुछ ही महीनों में दीपा अपने ससुराल बिदा हो गई l ससुराल में सास- ससुर,जेठ -जेठानी और उनके दो बच्चे थे,अच्छा संपन्न परिवार था l पति रितेश बहुत ही नेक इंसान थे l दीपा का बहुत ध्यान रखते थे, अच्छा ससुराल पाकर दीपा भी अपनी गृहस्थी में बहुत ही खुश थी l

             कुछ ही वर्षों में दीपा एक बेटी लता और उसके बाद छोटा बेटा विजय की मां बन गई सब कुछ व्यवस्थित चल रहा था, फिर एक दिन अचानक दीपा के पति रितेश का हृदय गति रुक जाने से देहांत हो गया दीपा पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा वह एकदम सुन पड़ गई, रोना भी नहीं निकल रहा था,

दोनों परिवारों व रिश्तेदारों का रो- रो कर बुरा हाल था, दीपा के भाइयों और भाइयों ने बहुत समझाया की फिक्र मत कर हम सब तेरे साथ हैं…! जेठ जेठानी ने भी कहा बेटा तू हमारी बेटी है हिम्मत रख… होनी को कौन टाल सकता है l

सास ससुर का भी बुरा हाल था, फिर दीपा की मां ने थोड़ी हिम्मत की और दीपा के दोनों बच्चों को उसके आगे करके कहा कि ” बेटा इन बच्चों के बारे में सोच ” बच्चों को देखकर दीपा जोर जोर से रोने लगी..!

            तेरहवीं के बाद करीब करीब सारे रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए l पहले तो ससुराल वाले दीपा का बहुत ध्यान रखते रहे पर शेर की खाल में भेड़िया आखिर कब तक छुप पाते,…दीपा उस घर में एक नौकरानी बन कर रह गई थी,

जेठानी भी ताने मारती रहती थी सास-ससुर से कहती तो वह भी कुछ नहीं कहते क्योंकि वह भी अपने बेटे और बहू पर आश्रित थे, दीपा सब कुछ सहती  रही….! लोगों के सामने तो वह यू जताते जैसे दीपा का बहुत ध्यान रखते हैं, और उनके दोहरे नाटकों   को दीपा खूब समझ रही थी…..!

बच्चे छोटी छोटी चीजों के लिए तरसने लगे जेठ जेठानी के बच्चे उन्हें मारने पीटने भी लगे थे l दीपा खुद को और बच्चों को बहुत ज्यादा उपेक्षित महसूस कर रही थी, जहां उन लोगों की कोई कदर नहीं थी, ऐसे भला जिंदगी कब तक गुजरेगी….?

अपना भी जीवन और बच्चों का भी भविष्य है l अब पानी सिर से ऊपर जा चुका था, दीपा ने सोचा ऐसे उपेक्षित होकर और जुल्मों सितम सहकर आखिर कब तक रहा जा सकता है l दीपा ने फैसला कर लिया उसने अपने मायके वालों को सब कुछ साफ-साफ  दिया l

             दो ही दिनों में दीपा के दोनों भाई आए और दीपा और बच्चों को अपने साथ ले गए, अब दीपा ने फैसला कर लिया था,  कि वह आगे पढ़ाई करेगी किसी पर बोझ नहीं बनेगी थोड़ी सी आनाकानी के बाद सब मान गए और दीपा कॉलेज जाने लगी बच्चे भी स्कूल जाने लगी I दीपा और उसके परिवार  वालों ने ससुराल वालों पर मुकदमा भी चलाया और ससुराल वालों से दीपा के हक का हिस्सा भी दिलवाया l

              दीपा के घर से थोड़ी दूरी पर कॉलेज के प्रोफेसर रमाकांत रहते थे, जो उसी कॉलेज में पढ़ाते थे, उन्होंने कई बार दीपा को कहा कि वह उनके साथ स्कूटर पर कॉलेज  चले, पर दीपा ने मना कर दिया,

रामाकांत के घर में उनकी मां सुजाता जी थीं, जो अक्सर दीपा के घर आती जाती रहती थी, धीरे-धीरे मेलजोल दीपा से भी बढ़ने लगा और दीपा भी बच्चों को लेकर उनके घर चली जाती थी, बच्चे भी रमाकांत से बहुत घुलमिल गए थे, और वे उन्हें घुमाने फिराने भी ले जाते थे और दीपा भी उन्हीं के साथ कॉलेज जाने लगी थी l

               अब लोगों को यह बात कहां हजम होने वाली थी लोगों ने तरह-तरह की बातें बनाना शुरू कर दी, यह सब बातें जब रमाकांत की मां  सुजाता जी के कानों में पड़ी तो उन्होंने सबके मुंह पर ताला लगाने के लिए एक फैसला किया और दीपा की  मां माया जी के पास गई और कहा कि “अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं दीपा को अपनी बहू बनाना चाहती हूं…..!

एक विधवा को किन-किन मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है,  मुझसे बेहतर भला कौन जान सकता है…..!! मैंने किन -किन मुश्किलों का सामना करके…. समाज वालों से लड़ -लड़ के अपने बेटे को पाला पोसा और  पढ़ाया लिखाया है, और  ऊपर से बहू भी इतनी नालायक निकली कि 6 महीने में ही तलाक लेकर चली गई….!

वो मुझे साथ नहीं रखना चाहती थी, तब मेरे बेटे ने मेरा साथ दिया…..! उसने साफ-साफ कह दिया कि मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकता…मैंने रमाकांत को इस शादी के लिए   मना लिया  है l और वह दीपा को पसंद भी करता है… अब आपके ऊपर है आप क्या फैसला करती हैं….?

              माया जी ने दीपा से पूछा तो दीपा ने साफ मना कर दिया और भाई भाइयों ने भी कहा कि समाज क्या कहेगा ” दो बच्चों की विधवा मां की दोबारा  शादी…! ” पर जब माया जी ने अच्छी तरह से ऊंच-नीच बताकर समझाया तो सब मान गए, और दीपा ने भी बच्चों के अपने भविष्य के खातिर यह उचित समझा और रमाकांत से शादी के लिए हां कह दी l

 मौलिक एवं स्वरचित

 रणजीत सिंह भाटिया

      U. S. A.

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