अमेरिका वाले चाचा चाची – गीतू महाजन : Moral Stories in Hindi

तरुण जब दफ्तर से घर आया तो कविता उसके लिए पानी ले आई और चाय बनाने रसोई में चली गई।जब तक कविता अपने और तरूण के लिए चाय बना कर लाई तब तक वह हाथ मुंह धो कर और कपड़े बदल कर फ्रेश हो चुका था।तरूण ने चाय पीते हुए बच्चों के बारे में पूछा तो कविता ने बताया कि दोनों अपना होमवर्क करने के बाद पार्क में खेलने गए हैंं। 

कविता को चाय पीते हुए तरूण के चेहरे पर तनाव नज़र आया।कविता के पूछने पर पहले तो तरूण टाल गया और बोला,”कुछ नहीं,ऐसे ही बस थोड़ा थक गया हूं”।

रात को खाना खाते वक्त भी तरूण थोड़ा चुप था और आज वह बच्चों से भी ज़्यादा बातचीत नहीं कर रहा था। कविता और तरुण की 2 बेटियां थी।बड़ी बेटी समीक्षा अभी सातवीं कक्षा में थी और छोटी बेटी रिया पांचवी कक्षा में पढ़ रही थी।तरुण को अपनी दोनों बेटियों से बहुत प्यार था और वह उनकी पढ़ाई-लिखाई और स्कूल में हो रही अन्य प्रतियोगिताओं के बारे में भी उनसे पूछता रहता और उन्हें उन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित करता रहता।

आज कविता को थोड़ा अजीब सा लगा पर उसने सोचा कि शायद दफ्तर के काम की वजह से तनाव हो।इसलिए उसने बच्चों को भी खाना खाकर जल्दी सोने के लिए भेज दिया।अगले दिन सुबह  फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई।शाम को तरूण आया तो उसे वैसे ही तनाव में देखकर कविता चिंता में पड़ गई और रात को सोने के समय पूछ बैठी,” क्या आजकल दफ्तर में कुछ ज़्यादा ही काम है या कोई और बात है जो तुम्हें परेशान किए जा रही है। मुझे तो बता ही सकते हो”।

“वह अमेरिका वाले चाचा चाची का फोन आया था”।

“कौन..सुदर्शन चाचा जी और निर्मला चाची जी का”? कविता ने पूछा।

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“हां उन्हीं का”।

“पर…इतने सालों बाद अचानक से अमेरिका से उन्होंने फोन क्यों किया और ऐसा क्या कह दिया उन्होंने फोन पर जो तुम इतना तनाव में आ गए हो”।

“अमेरिका से नहीं चंडीगढ़ से फोन किया है उन्होंने और  वे 15 दिन पहले भारत आए हैं”।

“तो”।

“तो वह चाह रहे हैं कि हम इस बार होली का त्यौहार उनके पास आकर मनाएं।अभी वे तीन चार महीने के लिए चंडीगढ़ में ही हैं”।

कविता जान गई थी कि तरुण के तनाव का क्या कारण था।तरुण के एक ही चाचा थे सुदर्शन जी।जब कविता की शादी हुई थी तो वह यहीं भारत में ही रहते थे।कविता के ससुर सुधाकर जी अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते थे और चाचा जी अपने परिवार के साथ चंडीगढ़ में। उनका एक ही बेटा था विद्युत जो कि उस समय कॉलेज में पढ़ रहा था।कविता की एक बड़ी ननद थी जो कि दिल्ली में ही ब्याही थी। 

शादी के समय दोनों परिवारों में खूब प्यार था।कविता की शादी के वक्त विद्युत जैसे उसका सबसे अच्छा दोस्त बन गया था।हर 15 दिन बाद वह चंडीगढ़ से दिल्ली दो-तीन दिन के लिए आ जाता और कविता को अपने कॉलेज के किस्से सुनाकर हंसाता।कभी-कभी सुदर्शन चाचा जी और निर्मला चाची जी भी उसके साथ आ जाते ।तब तो वो कुछ दिन हंसी खुशी से ऐसे बीतते कि पूछो मत।

निर्मला चाची जी अक्सर कहती,” कविता,मेरे विद्युत को भी तेरे जैसी सुंदर और सुशील बहू मिल जाए तो मेरे भाग्य भी भाभी की तरह चमक जाए”।

कविता विद्युत के किस्से अपने मायके में भी सुनाती पर शायद दोनों परिवारों के प्यार को किसी की नज़र लग गई थी।कविता को याद है कि वो घटनाक्रम इतनी तेज़ी से हुआ कि किसी को पता ही नहीं चला कि भाग्य ने उनके साथ इतना बड़ा मज़ाक कैैैसे कर दिया था।एक शाम सुदर्शन चाचा जी अकेले ही आए और उसके ससुर जी से गांव में पड़ी ज़मीनों का हिसाब मांगने लगे। 

“सुदर्शन, गांव की ज़मीन और खेतों से जो भी आय होती है मैं बरसों से उसे आपस में बराबर ही बांटता आया हूं पर फिर भी तुम्हारा हिसाब तुम्हें समझा देता हूं”।

“आप क्या हिसाब समझाएंगे…वही हिसाब ना जो आपने अपनी मर्ज़ी से बनाया हुआ है”, सुदर्शन जी गुस्से से बोले। 

“तुम यह कैसी बातें कर रहे हो सुदर्शन”? 

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“और क्या…सारी ज़मीन और खेत तो आप ही तो देखते आए हो…जाने क्या-क्या घोटाले किए बैठे हो”।

सुदर्शन जी के तर्क वितर्क और सुधाकर जी की बातें इतनी बढ़ गई कि दर्शना जी को अंदर से बीच बचाव के लिए बाहर आना पड़ा।कविता और तरुण दोनों अपने-अपने दफ्तर में थे।कविता उस समय नौकरी करती थी। दर्शना जी के बीच बचाव करने पर सुदर्शन जी सुधाकर जी को धोखेबाज़ और मक्कार कहते हुए चले गए।

कविता और तरुण शाम को जब घर आए तो उन्हें सब पता चला।तरुण ने जब अपने चाचा को फोन किया तो चाचा जी ने उससे भी बड़ी बदतमीजी से बात की।रात आते-आते सुधाकर जी की तबीयत बहुत खराब होने लगी और ज़ल्दबाज़ी में उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उन्हें हृदयाघात हुआ है।डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।

तरूण ने अपने पिता की मौत की खबर चाचा जी के परिवार को देने से मना कर दिया और बात बिगड़ती चली गई।विद्युत ने बहुत बार तरुण से संपर्क कर अपने पिता के व्यवहार के लिए माफी मांगी और निर्मला जी के साथ दिल्ली भी आया पर तरुण ने उनसे मिलने से मना कर दिया।जाते-जाते विद्युत ने कविता से कहा,” भाभी, जो हुआ अच्छा नहीं हुआ और मैं अपने परिवार को ऐसे नहीं देख सकता इसलिए मैं अमेरिका जा रहा हूं पर आप यह बात हमेशा याद रखना कि आपका एक भाई जैसा देवर है जो आपकी एक आवाज़ देने पर उसी समय आ जाएगा”। 

कविता को तरूण के तनाव का पता चल गया था कि जिन चाचा को वह अपने पिता की मौत का ज़िम्मेदार मानता था उनके साथ वह होली कैसे मना सकता था।कविता की सास जब तक रही यह सोचती रही कि सुदर्शन ने ऐसा क्यों किया।गांव की ज़मीनों और खेतों में से उन्होंने चाचा जी उनका हिस्सा दे दिया था।फिर पता चला कि चाचा चाची भी विद्युत के पास अमेरिका चले गए थे।  

अगले दिन किसी अनजान नंबर से कविता को फोन आया।फोन उठाने पर उधर से निर्मला चाची जी की आवाज़ आई,”कविता बेटी, फोन मत काटना…हम लोग पहले से ही बहुत शर्मिंदा हैं।विद्युत ने भी हमें माफ नहीं किया है।मैं बाकी का जीवन इस बोझ के साथ नहीं जी सकती मैं और…मैं तुम से हाथ जोड़ कर कहती हूं कि तुम लोग होली पर चंडीगढ़ आ जाओ।मरने से पहले एक बार फिर से परिवार को इकट्ठा देखना चाहती हूं…विद्युत भी आने वाला है। जानती हूं मन में पड़ी गांठो का खुलना इतना आसान नहीं है पर फिर भी एक कोशिश तो कर सकते हैं ना।उम्मीद करती हूं कि तुम अपनी इस बूढ़ी चाची के बुलावे का मान रखोगी”।

यह सुनकर कविता असमंजस में पड़ गई।सारा दिन सोच विचार करने के बाद शाम को जब तरुण आया और बच्चे पार्क में खेलने चले गए  तो मौका देखकर कविता बोली,” मुझे लगता है कि हमें होली पर चाचाजी के घर जाना चाहिए”। 

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“यह क्या कह रही हो तुम”।

“मेरी बात आराम से सुन लो..मैं मानती हूं कि सुदर्शन चाचाजी जी ने जो किया वह ठीक नहीं था पर उनकी सज़ा हम कब तक चाची जी और विद्युत को देते रहेंगे। देखो होली के अवसर पर तो सारे गिले शिकवे भुला दिए जाते हैं।इतने सारे रंग बिरंगे रंगों में मनों का मैल धुल जाता है”पर कविता की बात सुनकर भी तरुण जाने को तैयार नहीं हुआ। कविता जानती थी अपने चाचा के प्रति तरुण के मन में जो गांठ पड़ गई है उसे निकालना आसान नहीं है।

2 दिन बाद चाची जी का फिर से कविता का फोन आया।वह फिर से उन सबको वहां पर आने के लिए गुहार लगा रही थी..बोलते समय उनका गला भी रुंध गया था।कविता ने सोच लिया था कि अब वह तरुण को मना कर ही रहेगी इसीलिए वह तरुण को लगातार समझाती रही।

“कविता, में कैसे भूल सकता हूं कि चाचा जी की वजह से ही मैंने अपने पिता को खो दिया था”, एक दिन तरुण उखड़ा सा बोला। 

“तरुण मैं मानती हूं कि उनकी उस वक्त बहुत भारी गलती थी पर सोचो इस उम्र में वह बार-बार माफी मांग रहे हैं और हम एक कोशिश तो कर सकते हैं ना.. हमारे बच्चों को भी एक भरा पूरा परिवार मिलेगा।एक बार सोच कर तो देखो” और उसकी बात सुनकर तरुण आखिर मान ही गया।

 बच्चों के लिए  यह पहला अवसर था जब वो अमेरिका वाले दादा दादी और विद्युत चाचा से मिलने का। होली की सुबह तड़के ही वे दिल्ली से निकल गए और लगभग 10:00 के करीब वहां पहुंच गए।सुदर्शन चाचा जी ने दौड़कर तरुण को गले लगा लिया और हाथ जोड़कर उससे माफी मांगते रहे,”मैं लोगों की बहकावे में आ गया था तरुण और अपने देवता समान भाई पर शक कर बैठा…हो सके तो अपने इस नालायक चाचा को माफ कर देना”।

“कैसी बातें कर रहे हैं चाचा जी”, तरूण ने देखा कि वह बहुत कमज़ोर हो गए थे।

थोड़ी देर बाद उनकी बड़ी दीदी भी वहां आ गई थी।चाची जी ने उसको भी बुला लिया था और तरुण को कुछ भी बताने से मना किया था। विद्युत ने भी आकर तरुण और कविता के पांव पकड़ लिए।तरुण ने उसे कसकर गले लगा लिया। समीक्षा और  रिया यह सब देख कर हैरान हो रही थी।

तभी निर्मला चाची आई और सब के ऊपर रंग उड़ेल दिए। बस फिर क्या था..सबने खूब मस्ती की।होली के रंगों में मनों का मैल कब बह गया पता ही नहीं चला। मन की गांठे खुल गई थी एक भरा पूरा और खुशहाल परिवार त्योहार के जश्न में डूबा हुआ खिलखिला रहा था और वह होली खुशियों की सौगात लाने वाली एक यादगार  होली बन गई थी।

दोस्तों,कई बार छोटी सी गलतफहमी से परिवार में इतने गिले-शिकवे पैदा हो जाते हैं जो कि बरसों तक चलते रहते हैं।ज़रूरत है आपस में बैठकर इन गलतफहमियों का आराम से निपटारा कर लिया जाए ताकि बच्चे इन गलतफहमियों का शिकार होने से बच सकें।

 

#स्वरचितएवंमौलिक

 

गीतू महाजन,

नई दिल्ली।

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