एलीमोनी: हक़ या जुरमाना – सुमन पुरोहित : Moral Stories in Hindi

बड़े दिनों बाद मिले देव और उसका दोस्त प्रियांश, देव के घर पर सोफे पर बैठे गप्पे मार रहे थे, तभी टीवी पर एक सेलिब्रिटी कपल के डाइवोर्स की खबर सुनते ही बातों का रुख उस ओर मूड गया…… देव ने कहा “आज कल का तो फैशन ही बन गया हैं, पहले अच्छे खासे पैसे वाले लड़के को फसाओ, शादी करो और फिर डाइवोर्स के नाम पर उस से पैसे लूटो, क्या लड़कियां हैं भाई। “ हामी भरते हुए प्रियांश बोला “बिलकुल सही कहा तुमने, बिज़नेस ही बन्न गया हैं, आदमी लगा रहे पुरे पुरे दिन काम मे और ये सारा दिन बिना कुछ किये पैसे उड़ाए, यहाँ तक तो ठीक हैं छोड़ने के बाद भी एलीमोनी के नाम नाम पर कंगाल कर देती हैं…. ” 

खाना बनतए हुए देव की पत्नी, शैंफ़ाली बस सुने जा रही थी… तभी उसके पास बर्तन धोती हुई गीता जिसके कानो में भी बातें पड़ी , और वह बोल उठी,  “मैडम ये एलीमोनी होता क्या हैं? क्या हम जैसे लोगों को मिलता हैंमैंने कितनी बार सोचा मेरे पति से अलग हो कर थोड़ा शांति से ji सकू पर अलग हो कर भी क्या मिलेगा…… उसका कोई भरोसा ही नहीं हैं अलग होने के बाद भी घर पहुँच गया मुझसे पैसे छीन ने तो?…. ” और उसके चेहरे पर व्यंग्य से भरी हसी आ गयी |

तभी देव ने हॉल से आवाज़ लगायी, ”शैंफ़ाली खाना रेडी हो गया क्या? भूख के मारे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं…. “

हाँ! आ जाओ टेबल पर सब रेडी हैं… ” शैंफ़ाली ने दोनों को बुलाते हुए कहा|

खाना लग गया और तीनो खाने बैठे, खाना खाते हुए एक दूसरे के हाल चाल से शुरू हुई बातों को शैंफ़ाली ने एलीमोनी पर ले जाने की कोशिश ki और बड़ी मासूमियत से अपनी सोच रखने के प्रयास में कहा “ये सेलिब्रिटी कपल्स सक्षम होते हुए भी क्यों कोर्ट में हाथ फ़ैलाने पहुँच जाती हैं? कोई एक्ट्रेस हैं तो कोई इंटीरियर डिज़ाइनर और कोई कुछ और फिर भी क्या ज़रूरत हैं इन्हे करोड़ों रुपयों की एलीमोनी की ? कोर्ट के ऐसे फैसलों से जिन्हे इसकी ज़रूरत हैं …… ” इस से पहले कि शैंफ़ाली  अपनी बात रख पाती देव बोल पड़ा “अरे यार आज कल तो हर लड़की का यही काम हैं, बॉयफ्रेंड, हस्बैंड या फ्रेंडसभी से पैसे ऐठने में लगी रहती हैं !” 

प्रियांश ने भी चुटकी लेते हुए बात बढाई “ऐसे केस देखने के बाद तो कोर्ट को लॉ एंड आर्डर में सुधार करना चाहिए और इस एलीमोनी को ही बैन कर देना चाहिये। “

 फिर क्या था शैंफ़ाली का मन व्यंग्य से भर गया…. “हाँ सही कह रहे हो आप, एलीमोनी को बैनकर ही देना चाहिए, जब हर कोई जॉब करता हैं तो इस की ज़रूरत ही क्या हैं? पर हमारे देश का क़ानून शायद अब भी अँधा ही हैं, अब भी यही समझती हैं कि ऐसी महिलाएँ अब भी हैं जो जॉब नहीं करती हैं या जिन्हे पुरुषों के बराबर पैसे कमाने का मौका नहीं मिलता हैं, या ऐसे कोई अब भी बच गया होगा जिसे घर से बाहर जा कर जॉब करने की इजाज़त नहीं हैं या कोई ऐसा हैं रह गया हैं जिन्हे या तो घर गृहस्थी का हवाला दे कर जॉब छुडवादी गयी हो या उसने खुदने इजाज़त मिलने के बाद भी घर गृहस्ती के बोझ में दब कर, मदद का इंतज़ार करते हुए हार कर जॉब छोड़ दी होगी

ये कोर्ट भी पता नहीं कब तक आँखों पर पट्टी बाँध कर फैसले सुनाता रहेगा? उसे भी आँखें खोल कर देखना चाहिए कि अब ऐसा कोई नहीं रहा जिसका अपने पैसों पर हक़ ना होसभी इंडिपेंडेंट हो गयी हैं, खुद ऐसी जॉब करने लग गयी हैं जो उन्हें अपने और अपने कस्टडी में मिले बच्चो को पालने के लिए काफी हैं?

अब ऐसे सेलिब्रिटी कपल, जो की हमारे देश का बड़ा हिस्सा हैं उन्हें देख कर तो समझ ही जाना चाहिए! खैर, चलो इनकी बदौलत कुछ हमारे जैसे जागरूक लोग एलीमोनी जैसी फ़िजूल चीज़ को बैन करने का सोचते तो हैं बस यही तो शुरुआत चाहिए!!!!” 

क्या शैंफ़ाली का व्यंग्य देव और प्रियांश समझ पाए होंगे ?

आप सभी को क्या लगता हैं, कुछ लड़कियां, जो एलीमोनी के नाम पर अपने पति को लूटती हैं उनकी वजह से क्या असली एलीमोनी के हक़दारों को उनके हक़ से वंचित कर देना चाहिए?

क्या आपको पता हैं की लॉ के मुताबिक पति पत्नी दोनों ही एलीमोनी के हक़दार होते हैं? क्या आपने कभी ऐसा केस सुना हैं जहाँ पति ने एलीमोनी की मांग की हो? क्या ये पितृसत्तात्मकता या Patriarchy कि कुंठित मानसिकता का दुष्प्रभाव तो नहीं, जो पुरुषो को समाज में लायक बने रहने के लिए इस हक़ से वंचित रखती है.?  

नहीं सुना होगा शायद, तो क्या हमें जो गलत हो रह है उसे बंद करने के लिए एक और गलत सोच को बढ़ावा देना चाहिए या लॉ एंड आर्डर को मजबूर करना चाहिए की वह अपने कानून इतने स्ट्रांग बनाये की असली हक़दार को हक़ मिले और गलत मांगो को सज़ा |

  1. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2010 से 2020 के बीच 2,000 से अधिक पुरुष आत्महत्या के मामले पारिवारिक विवादों और तलाक की कार्यवाही के दौरान उत्पीड़न से जुड़े थे।

 

  1. वर्ष 2020 में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत 85,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जो पति या उसके परिवार द्वारा किए गए अत्याचार से जुड़े थे। इनमें से 5,821 मामलों को पुलिस जांच के बाद झूठा पाया गया।
  2. ऊपर दी गई दोनों बातें हमें पता होनी चाहिए, लेकिन मेरा सवाल गीता (घर की नौकरानी) जैसी कई महिलाओं के लिए है, जिन्हें हर दिन घर और काम, दोनों जगह चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। क्या गुजारा भत्ता (Alimony) या धारा 498A का उनके जीवन में कोई महत्व भी है या नहीं?

अपने बच्चों का पेट भरना, उन्हें पढ़ाना-लिखाना ही उनकी पूरी ज़िंदगी का संघर्ष बन जाता है। “तलाक और गुजारा भत्ता” जैसे शब्द भी उनकी दुनिया में किसी ऐलियन से कम नहीं हैं!
लेखिका : सुमन पुरोहित

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