अजनबी – प्रीती सक्सेना

#जादुई_दुनिया

       एमबीए,, पूरा होते होते,, देहरादून में एक अच्छी कंपनी में मेरा जॉब लग गया,,, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं,,, पर मम्मी पापा,, बहुत चिंतित हैं,, कारण ये कि मैं दुबली पतली,, बिल्कुल नाजुक सी,, अपनी उमर से बहुत छोटी दिखने वाली एक ख़ूबसूरत लड़की हूं,, एक अजनबी शहर में बेटी अकेले रहेगी,, ये विचार उन्हें बहुत परेशान कर रहा है।

 

   ऑफिस का पहला दिन,, लिफ्ट में एक लड़की मिली,,, मेरी ही कंपनी की है,,, जैसे ही लिफ्ट ऑफिस की फ्लोर पर रुकी,,, मैं लिफ्ट से बाहर आ गई,, लड़की बोली,,, तुम जाओ,, मैं आती हूं,, मैं जोर से बोली,,, जल्दी आना,,, मेरे साथ ही रहना।

 

      पूरा दिन निकल गया,,, वो लड़की दिखी नहीं कहीं भी,,, मैने भी,, ज्यादा ध्यान नहीं दिया । पापा ऑफिस के पास के होस्टल में मेरे रहने का इंतजाम कर गए थे,,, रूम अच्छा था,, ऑफिस से आकर,,, मम्मी पापा से बात की,, ऑफिस की सारी बातें बताई,, उसके बाद फ्रेश हॉकर नीचे डाइनिंग हॉल में गई,,, डिनर किया,, और अपने कमरे में आ गईं,,, अलमारी से पिंक सूट,, कल ऑफिस में पहनने के लिए निकालकर चेयर पर टांग दिया,,, मोबाइल देखते देखते नींद आने लगी,,, पर यूं अहसास हुआ,, मानो,, बेड पर मेरे साथ कोई और भी है,, घबराहट सी होने लगी,,, पर,,, नींद आ गई।

 

सुबह सोकर उठी,, फ्रेश होकर,, ब्रेकफास्ट लेकर,,, जैसे नहाने जाने लगी,, सूट उठाया तो,,, देखा लाल रंग का सूट रखा है,,, घबरा गई बहुत,,, मैने  तो पिंक सूट निकाला था,,, ये लाल कैसे हो गया,, दिमाग को झटका,,, शायद मैं ही भूल रही हूं,, पिंक सूट पहनकर ऑफिस आ गई,,, आज भी जैसे वो लड़की मेरा ही जैसे,, इन्तजार कर रही थी,,,, आज भी ऑफिस में वो नहीं दिखी,,, मुझे बैचेनी होने लगी,,, साथ ही डर भी लगने लगा,,, सूट भी रोज बदल जाते थे,, निकालती दूसरा सूट थी,,,, पर वो अलमारी के अंदर मिलता,, दूसरा सूट बाहर मिलता।


 

     हारकर पापा को फोन किया,, वो डर गए,,, मुझे लेकर घर आ गए,,, मम्मी बोली, लड़का देखो,, शादी करते हैं,, बेटी की,,, अपने घर जाए,,, और अच्छे से रहे,,,,,,,।

 

    जोर शोर से रिश्ता ढूंढा जाने लगा,,, जल्दी ही मेरा रिश्ता तय हो गया,,, दुल्हन बनकर मैं ससुराल आ गई,, जब तक मैं घर वालो के साथ रहती ,,, तब तक तो नहीं,, पर जैसे ही मैं,,अकेली होती,, किसी के होने का अहसास होता रहता,,, ऐसा लगता जैसे,,, कोई मेरे बिल्कुल नजदीक,,, गहरी गहरी सांसें ले रहा हो,,,, मम्मी देवी मां की भक्त थी,, पंडित जी को भी पूछा,, पर कोई कुछ बता नहीं पाया।

 

शादी हुई,,, शादी के दूसरे दिन ही सासू मां ने वैष्णो देवी,,दर्शन के लिए हमें भेज दिया,,, मैने महसूस किया,, जब भी पती ,,,मेरे पास होते ,, मुझे गहरी सांसें, सुनाई देतीं,,, मैं नजर अंदाज करने की कोशिश करती,,,, ये सब मुझे वहम ही लगता,।

 

     वैष्णो देवी के मन्दिर की,,, सीढियां चढ़ते समय एक वृद्धा,,, हमारे पास आई,,, मूझसे पूछा,,, नई, नई, शादी हुई है,,, मेरे हां कहने पर बोली,, मेरा बेटा सेना में था,, मारा गया,,, उसकी आत्मा,, दुखी है,,, उसे शांत करने के लिए,, प्रसाद चढ़ाने,,, मन्दिर जा रहीं हूं,,, थोडी देर बाद बोली,,,, मैं एक कदम भी नहीं चल सकती,,, कृपया,,, तुम मेरा प्रसाद,, मातारानी,, तक पहुंचा देना,, मैं वापस जाती हूं,,, हमारे  मना करते, करते वो फुर्ती से वापस चली गई,,,, जैसे ही प्रसाद का पैकेट,,, मेरे हाथ में आया,,, मेरी हालत खराब होने लगी,,, गहरी गहरी सांसे लेने लगी,, मुंह से गुर्राने की आवाजें आने लगीं,,, पतिदेव ने दूसरो की सहायता से डोली करके मुझे वापस नीचे ले आए,,

हम देवी दर्शन नहीं कर पाए,,, मुश्किल से,, हम, घर तक आए,,, सभी मेरी हालत देखकर घबरा रहे थे,, आंखे लाल हो गई थी चढ़ी हुई,,, जानवरों की तरह गुर्रा रही थी,,, पति,,, मेरे पास आ भी नहीं पा रहे थे,,, उन्हें काटने को दौड़ती थी,,, फिर शुरु हुआ सिलसिला,,, ओझा,, तांत्रिको का,, न जाने क्या क्या,,,, तंत्र मंत्र किया जा रहा था,,,,, मेरे मुंह से पुरुष स्वर,,, निकल रहा था,, जो कह रहा था,,, मुझे ये बहुत अच्छी लगी,,,, इसने मुझे आवाज देकर,,, बुलाया था,,, इसके साथ मेरी शादी हुई है मैं नहीं छोडूंगा इसे,,,, मैं इसके साथ,,, बहुत समय से हूं,,,, ये मेरे साथ रहेंगी,,, मैं इसे अपने साथ ले जाऊंगा,,,,, अब तो मेरे घर में सबका रोना,, शुरु हो गया,,,, इलाज भी हो रहा था,, तांत्रिक भी पूजा पाठ कर रही थे,,,,, बहुत प्रयासों के बाद,,, मुझे उस शक्ति, जिसे हम भूत कहते हैं,,, से छुटकारा मिला।

 

    अभी भी बहुत डरकर रहती हूं,, मेरे घर में पूजा पाठ बहुत होता है,,, ज्यादा बाहर नहीं जाती,,, बहुत बदल गया जीवन मेरा।

 

      भूत प्रेत भी हैं इस दुनिया में,,, हमारी तरह उनकी भी एक दुनियां है,, जिसमें वो किसी का दख़ल नहीं चाहते।

 

ये सत्य कथा है, पूर्णतः मौलिक है।

 

प्रीती सक्सेना

इंदौर

मौलिक रचना

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