रमा, सूरज की पत्नी, एक सीधी-सादी, घरेलू और पारंपरिक स्त्री थी। उसे रसोई, पूजा-पाठ, और घर की जिम्मेदारियों में ही सुकून मिलता था। वो सबका ख्याल रखती थी, पर बहुत चुपचाप और बिना दिखावे के।
सीमा, चंदन की पत्नी, शहर से पढ़ी-लिखी, तेज़-तर्रार और आत्मविश्वासी लड़की थी। उसने एमए किया था, और कभी-कभी ट्यूशन भी पढ़ा देती थी। वह चाहती थी कि घर के कामों में आधुनिकता आए, जैसे गैस का चूल्हा, वॉशिंग मशीन, मिक्सर आदि।
परंतु जहाँ रमा को ये सब “लापरवाही” लगता, वहीं सीमा को रमा की आदतें “पुरानी और धीमी” लगती थीं।
शुरुआती महीनों में सब ठीक चला, लेकिन धीरे-धीरे रमा और सीमा के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई।
रमा सोचती: “सीमा कभी किसी काम में हाथ नहीं बँटाती, बस मोबाइल और बुक्स में लगी रहती है।”
सीमा सोचती: “रमा बस पुराने ढर्रे की है। उसमें कोई नयापन नहीं, बात भी नहीं करती।”
सास (जानकी देवी) अक्सर दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करतीं, मगर बाबूजी चुप रहते — शायद अंदर ही अंदर सब समझ रहे थे।
एक दिन बाबूजी खेत से लौटे तो उन्हें ज़ोर का बुखार था। जानकी देवी उस समय मंदिर गई थीं, और दोनों बेटे शहर के काम से बाहर थे।
घर में सिर्फ रमा, सीमा और छोटे-छोटे बच्चे थे।
रमा ने तुरंत बाबूजी को लेटाया, ठंडे पानी की पट्टियाँ रखीं।
सीमा बिना देर किए डॉक्टर के पास भागी, साथ में चंदन को भी फोन किया।
डॉक्टर जब आए, तो बोले:
“समय पर पट्टियाँ और दवा मिल गई, वरना हालात बिगड़ सकते थे।”
दोनों बहुएँ थकी हुई थीं, मगर संतुष्ट। बाबूजी की तबीयत अब संभल रही थी।
उस शाम जानकी देवी ने दोनों बहुओं को अपने पास बुलाया। पहली बार रमा और सीमा आमने-सामने बैठीं। बहुत देर चुप्पी रही। फिर:
रमा: “मुझे लगा था तुम सिर्फ ब्यूटी पार्लर और मोबाइल की बहू हो… पर आज देखा कि जब वक़्त आया, तो सबसे पहले तुम भागी डॉक्टर के पास।”
सीमा (हंसते हुए): “और मुझे लगा था आप बस रसोई तक ही सीमित हैं, पर जिस तरह आपने बाबूजी को संभाला… वैसा कोई नर्स भी नहीं कर पाती।”
जानकी देवी की आँखों में आँसू थे। वो बोलीं:
“तुम दोनों तो मेरे घर की दो आँखें हो। अब तक एक-दूसरे को धुंधली नजर से देखती थीं। अब शायद साफ़ देखना शुरू कर दिया है…”
उसी वक़्त बाबूजी धीरे-धीरे उठे, और बोले —
“अब पड़ गई ना तुम्हारे कलेजे को ठंडक, जानकी?”
जानकी देवी मुस्कराईं, “हाँ जी, अब घर फिर से घर लगने लगा है।”
उस दिन के बाद सब कुछ बदला नहीं — लेकिन बदलना शुरू हो गया।
सीमा रसोई में रमा से रोटियाँ बनाना सीखने लगी।
रमा ने स्मार्टफोन से ट्यूशन के लिए नोट्स टाइप करना सीख लिया।
दोनों ने साथ में घर के खर्च और समय-सारणी बना ली।
अब वे बहुएँ नहीं, बहनें लगती थीं।
रिश्तों को नज़र और नीयत से देखो, ग़लती हमेशा सामने वाले की नहीं होती।
प्रीती श्रीवास्तवा