दिन भर की चिक-चिक से परेशान हो गई थी रमा जी….बाप – बेटे में ऐसे झगड़े होते जैसे दो छोटे बच्चों में खिलौने को लेकर। पिता पंचानबे साल के थे लेकिन बहुत फिट फाट। अपने काम स्वयं कर लेते थे और बेटा सत्तर साल का जिसको थोड़ी तकलीफ़ रहती थी सेहत में। पिता जी शारदा प्रसाद और बेटा दुष्यंत जी थे।
कहते हैं ना बूढ़े और बच्चे में कोई फर्क नहीं होता और यहां एक नहीं तीन-तीन बूढ़े लोग थे। दुष्यंत जी की पत्नी रमा जी भी।जो इन दो बूढ़ों के झगडे सुलझाते- सुलझाते थक चुकी थीं ,पैंसठ साल की वो भी थीं।
सुबह उठकर ही दोनों चालू हो जाते।शारदा जी ने दुष्यंत को आवाज लगाई चलो हमारे साथ थोड़ा ठहल के आओ, प्राणायाम भी किया करो और दोनों लड़ते – झगड़ते निकल जाते साथ – साथ। बड़ी अजीब दोस्ती थी दोनों बाप-बेटे में।
दुष्यंत जी को ठहलना, योगासन में बिल्कुल रूचि नहीं थी और शारदा जी बहुत ही नियम पूर्वक जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखते थे, यही वजह थी इतनी उम्र में अपने सारे काम बिना किसी के मदद के कर लिया करते थे।
पिता जी आपको कोई दिक्कत नहीं है, इसलिए आप सब कर पाते हैं लेकिन मुझे शूगर और ब्ल्ड प्रेशर की बीमारी है, मुझसे नहीं होता है। दुष्यंत जी की लाखों दलीलें बेकार जाती थी क्योंकि शारदा जी बहुत पक्के थे अनुशासन के।
एक सुबह दुष्यंत जी ने देखा कि पिता जी आज उठे नहीं तो वो बेचैन हो कर उनके कमरे की तरफ भागे तो देखा कि उनकी तबीयत बिगड़ी हुई थी। उन्होंने भाग के डॉ को फोन करके बुलाया। डॉक्टर ने तुरंत अस्पताल में भर्ती करने को कहा। सारी जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि आपके पिताजी की तबीयत अच्छी नहीं है…” इन के फेफड़ों में पानी भर गया है और ये ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएंगे।”
दुष्यंत जी को कभी भी उम्मीद नहीं थी कि पिता जी को कोई बीमारी हो सकती है,वो तो कितने नियमित तरीके से रहते हैं।
अस्पताल के कमरे में जब रमा और दुष्यंत मिलने गए तो दोनों के चेहरे उदासी से लटके हुए थे। शारदा जी जो बहुत ही हंसमुख स्वभाव के इंसान थे। दुष्यंत से बोले,” ‘अब तो पड़ जाएगी ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक’ की बाप भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़ गया, वरना सुबह से पीछे पड़ा रहता है मेरे।”
दुष्यंत जी की आंखें नम हो गई थी। क्या है “पिताजी यहां भी आपको मजाक सूझा है। आपकी बातों की आदत पड़ गई है मुझे…. उसके बिना तो मेरी सुबह ही नहीं होती है।”
रमा भी उदास थी क्योंकि पति दुष्यंत से ज्यादा पिता जी उसका ख्याल रखते थे। पुराने जमाने के जरूर थे पर बहुत ही खुले विचारों वाले। रमा जब शादी करके आई थी तो बारहवीं पास थी। शारदा जी काॅलेज में प्रोफेसर थे। उन्होंने जमाने की परवाह किए बिना बहू रमा को पढ़ने की पूरी छूट दी थी और रमा ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी।
किसी तरह की ना तो रोक – टोक थी ना ही बंधन। रमा को अपने पिता से भी ज्यादा प्यार शारदा जी से मिला था। दुष्यंत जब छोटे थे तभी मां चल बसी थीं उनकी,तो माता पिता का प्यार शारदा जी ने दिया था। इसीलिए शायद वो बाप – बेटे से ज्यादा दोस्त थे और झगड़े भी दोस्तों जैसे होते थे।
पिता जी को कभी भी बिस्तर पर इस तरह से लेटे नहीं देखा था दुष्यंत ने ,तो वो सहन ही नहीं कर पा रहे थे। रमा उनको समझा रहीं थीं। पिता जी की उम्र हो गई है तो कुछ ना कुछ बीमारी का होना स्वाभाविक है।आप फ़िक्र करेंगे तो पिता जी आपको देखकर टूट जाएंगे। पिता जी से सीखिए कि इस उम्र में बीमारी के बावजूद वो हंसी – मजाक का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कितनी सकारात्मक सोच और ऊर्जा है उनमें।
डॉक्टर ने दूसरे दिन जबाब दे दिया था कि कोई भी इलाज उन पर असर नहीं कर रहा है।आप लोग उनको खुश रखिए बस।वो हमेशा से खुश दिल इंसान थे और आपको भी ऐसे ही देखना चाहते हैं वो। डॉक्टर साहब तो कहकर चले गए थे पर दुष्यंत जी हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे थे।
पिता जी!” कुछ खाने पीने का मन कर रहा है तो बना कर लाती हूं आपके लिए। मैं घर जाकर आती हूं थोड़ी देर में” रमा ने कहा।
रमा बिटिया ” तुम ना आज सूजी का हलवा बना लाना… दुष्यंत को बहुत पसंद हैं। मैं जानता हूं कि वो मेरी चिंता में दो दिन से कुछ भी नहीं खाया है”शारदा जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
पिता जी!” आपको घी नुकसान करेगा” रमा ने चिंता जताई।
” मैं थोड़े ही खाऊंगा… मुझे अपने हाथों से दुष्यंत को खिलाना है। बचपन में जैसे उसको खिलाया करता था। पता है रमा बेटी….वो कितना भी परेशान होता हलवा खा कर खुश हो जाता था।
मैं ना जाने कितने समय तक का मेहमान हूं और मुझे पता है कि हम बाप – बेटे ही नहीं थे बल्कि हर तकलीफ़ में दोस्तों की तरह मिलकर उपाय निकाला करते थे।अब वो अकेला पड़ जाएगा और वो तो मुझसे भी ज्यादा बूढ़ा समझता है खुद को ” बनावटी मुस्कान दिखाई दे रही थी पिता जी के चेहरे पर क्यों कि उनको बहुत तकलीफ़ हो रही थी।
रमा घर जाकर नहा धोकर मंदिर में पूजा की और हलवा बना कर भगवान को भोग लगाया ही था कि अस्पताल से खबर आई कि पिता जी नहीं रहे।सारा माहौल गमगीन हो गया था क्योंकि पिता जी घर की जान थे।इस उम्र में भी वो ना तो किसी से सेवा ली थी ना कभी आर्डर जमाया था उन्होंने।दो पीढ़ी जो बुजुर्ग हो गए थे कितने मेल मिलाप से रहते थे। ये बात सभी को आश्चर्य में डालती थी।
रमा ड्राइवर को बुलाई और तुंरत अस्पताल पहुंची। दुष्यंत जी एकदम गंभीर स्थिति में खड़े थे मानो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। पिता का साया उनके सिर से उठ चुका था।
रमा ने पूछा कि ” आप यहीं थे क्या? जब पिता जी अंतिम सांसें ले रहे थे?”
हां रमा!” पिता जी ने कहा कि मैं कभी भी अपने आप को अकेला ना समझूं क्यों कि तुम मेरे साथ तुम हो और कहा बेटा तुम भी अपने बेटे के साथ ऐसे ही रहना और रमा के साथ – साथ अपना भी ख्याल रखना …और आंखें बंद कर ली उन्होंने…. पता नहीं और कुछ कहना चाह रहे थे नहीं पता” दुष्यंत जी के लिए पिता जी का साथ छूटना मतलब उनको पूरी तरह से तोड़ देना था।
रमा ने उनकी आखिरी इच्छा बताई कि वो अपने हाथों से आपको हलवा खिलाना चाह रहे थे।
पंच तत्वों से बना शरीर एक दिन इसी में मिल जाना है यही जीवन की सच्चाई है।हर इंसान जानता है कि जीवन हुआ है तो मृत्यु भी निश्चित है लेकिन अपनों का वियोग कोई नहीं चाहता है।
मां – बाप तो मां – बाप हैं, उनसे बड़ा रिश्ता दुनिया में दूसरा कहां है। भले ही कितनी भी उम्र हो जाए पर उनका साथ परिवार को बांध कर रखता है। देहरी सूनी हो गई थी ।अब ना तो सुबह सुबह कोई डांटने वाला था और ना ही फ़िक्र करने वाला। बच्चे भले ही बूढ़े हो जाएं पर माता पिता के लिए हमेशा बच्चे ही रहते हैं।
एक पीढ़ी का अंत हो चुका था। सभी क्रियाकर्म विधि विधान से पूरी कर दी गई थी। दुष्यंत जी के बेटे – बेटी भी पहुंच गए थे।
कुछ दिनों के बाद हलवा बना कर पिता जी के फोटो के पास चढ़ा कर सभी ने प्रसाद ग्रहण किया था और दुष्यंत के बेटे कमल ने उनको अपने साथ रहने के लिए मना लिया था।अब दुष्यंत जी का रिश्ता बेटे कमल के साथ वैसा ही दिखाई देने लगा था जैसे शारदा जी और उनका था।
घर एक मंदिर है अगर वहां हर इंसान की भावनाओं की कद्र की जाए और बड़े – छोटे का लिहाज तो वो स्वर्ग से कम नहीं होता है। वहां रिश्ते बोझ नहीं बल्कि बगिया में खिलें उस खूबसूरत फूलों की तरह होते हैं जहां अपनों के प्यार की खुशबू तो बिखरते ही हैं और बागवां की रौनक को बढ़ाते हैं। बस सभी को धैर्यपूर्वक और समझदारी से एक दूसरे का हांथ थाम कर रखना जरूरी है।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी