अरे सुनते हो तुम्हारी बहन अभी तक घर नहीं आई कुछ ध्यान है आपको या नहीं ।सुमन हाथ हिलाते हुए अपने पति धीरज से बोल रही थी।धीरज ने भी उसी के अंदाज में जवाब देते हुए कहा हां हां ध्यान है मुझे आ जाएगी प्राइवेट कंपनियां हैं ये खून चूसती है तब जाकर एक लाख रुपए महीने के देती है। यूं नहीं मिल जाते हैं रूपए तुम्हें तो कुछ काम-धाम है नहीं बस मौका मिला नहीं मेरी बहन के बारे में बोलना शुरू कर देती हो।शर्म नहीं आती उसकी कमाई से ही घर चल रहा है।
और जो तुम्हारे बच्चे बीटेक, और सीए की तैयारी कर रहे हैं।उसी की कमाई की बदौलत ही है।समझी धीरज कुछ झुंझला कर बोला। हां हां मालूम है। ज्यादा जताने की जरूरत नहीं है। कहकर सुमन हाथ हिलाते हुए अंदर चली गई।तभी दरवाजे की घंटी बजी धीरज जल्दी से दरवाज़े की तरफ बड़ा। उसने दरवाजा खोला माफ़ करना भाई आज बहुत देर हो गई।आज मार्केटिंग के लिए जाना पड़ा था।धीरज की बहन रानू अंदर आते आते बोल रही थी।चार साल पहले ही उसने एमबीए किया था।
अब एक कंपनी में काम करती है। कोई बात नहीं धीरज बोला बस अपना ख्याल रखा कर पता है हम लोगों को तुम्हारी बहुत चिंता होती है बहन। हां भाई मालूम है मुझे मां-पापा के जाने के बाद से आप और भाभी ही तो है जो मेरी फ़िक्र करते हैं, मेरा ख्याल रखते हैं।रानू हाथ मुंह धुलते हुए कह रही थी,चल खाना खा ले। नहीं भाई अब तो थकान के कारण शरीर में बहुत दर्द हो रहा है।मन नहीं कर रहा। तभी उसकी भाभी अपने कमरे से बाहर निकलते हुए बोली मालकिन को अपने हाथों से खिलाना पड़ेगा।
तभी खाएंगी महारानी।तुम्हारा बोलना जरूरी था।जब बोलोगी कड़वा ही बोलोगी धीरज तुरन्त बोला। अरे भाई आप दोनों आपस में मत लड़ाई खरो मैं खाती हूं खाना आप जाकर सो जाइए रात बहुत हो गई है।रानू डायनिंग टेबल पर बैठी पर उसका खाना खाने का बिल्कुल मन नहीं था। तभी कमरे से आवाज़ सुनाई दी भाभी भाई से कह रही थी। देखो जी अपनी बहन के लिए ऐसा लड़का देखना जिसे घर जमाई बना सका समझ रहे हो ना मैं क्या कहना चाहती हूं।
अरे चुप भी करो रानू अभी बाहर ही हैं सो जाओ चुपचाप तुम्हारी ज़ुबान कुछ ज्यादा ही चलती है हर रोज उसे कोसती हो और चाहती हो कि वो सारी जिंदगी हमारे घर की जिम्मेदारी निभाती रहे।धीरज ने सुमन को डांटते हुए कहां।रानू उनकी बातें सुनते सुनते वही सो गई पता ही नहीं चला कब सुबह हो गई।भाई ने जब सिर पर प्यार से हाथ रखकर उसे जगाया तब उसकी नींद खुली रानू तूं तो यही सो गई और खाना भी नहीं खाया रानू हड़बड़ा कर उठी अरे भाई पता नहीं कैसे आंख लग गई उफ़ आठ बज गए आज तो पक्का लेट हो जाउंगी।
तभी भाभी की आवाज आई उठ गई महारानी चलो अब फटा फट नास्ता तैयार करो नहीं तो चल दोगी बिना नाश्ता बनाए फिर मुझे ही सारा दिन काम में लगे रहना होता है।सुमन ने अपनी जुबान से कड़वाहट भरे शब्दों को बाहर निकालते हुए कहा। तभी धीरज वहां आकर बोला तुमने फिर से शुरू कर दिया।कितनी बार कहा जाते समय उससे इस तरह मत बोला करो पता नहीं कब क्या हो जाए लेकिन तुम्हारी समझ में नहीं आती।
अरे भाई रहने दो नाश्ता तैयार हो गया अब निकलती हूं लेट हो गई हूं आज तो बॉस की डांट पड़ने वाली है।रानू ने हड़बड़ाहट में स्कूटी निकाली वह गिरते-गिरते बची अरे सम्हलकर रानू धीरज ने स्कूटी को पकड़ते हुए कहा संभलकर जाना। हां भाई कहते हुए रानू ऑफिस के लिए निकल गई। रानू स्कूटी चलाते समय भी कल रात भाभी की बातें सोचने लगी उसे बुरा लग रहा था भाभी के इस स्वार्थी स्वाभाव से पर भाई के प्यार के कारण वह खामोश रहती।
यही सब सोचते हुए पता नहीं कब स्कूटी सामने से आ रही कार से टकरा गई।उसे जब होश आया तो देखा भाई-भाभी सामने खड़े थे भाई भाभी से बोल रहे थे कि अब तो पड़ जायेगी न तुम्हारे कलेजे में ठंडक और भाभी रोय जा रही थी लगता था भाभी को अपनी ग़लती का एहसास हो गया था। रानू की हालात कुछ कहने की नहीं थी।धीरज ने देखा कि रानू को होश आ गया खुशी से वह भी रोने लगा रानू ने दोनों को देखा और मुस्कुरा दी।अब उसकी भाभी को अपनी ग़लती का एहसास था उसने रानू से माफ़ी मांगी और उसे गले से लगा लिया आज धीरज भी बहुत खुश था।
निमीषा गोस्वामी