अब है संघर्ष – गुरविंदर टूटेजा 

दिव्या दादी की गोद में सिर रखकर बैठी है उसके आँसू लगातार बह रहें हैं…दादी पापा हमें छोड़कर क्यूँ चले गये मैं क्या करूँगी दादी…पापा दोनों  भाईयों (सनी व वंश ) को हमेशा कहते थे कि मेरी बेटी को कुछ मत कहा करों इसने तो एक दिन विदा होकर चलें जाना हैं…पर पापा पहले ही दुनिया से चलें गए…!!!!

  दादी तो खुद ही निशब्द थी बच्ची को क्या समझाती जिस माँ का जवान बेटा चला जाये वो शब्द कहाँ से लाये बस फर्क ये था कि अब आँसू सूख गये थे बस सवा महीना ही तो हुआ था…और आँसू सूख गये…!!

  दिव्या की मम्मी (सीमा) आ गई कमरे में उसने बेटी को प्यार किया और कहा कि सो जा बेटा…मम्मी जी आप भी सो जाईये…दिव्या की आँख लग गई तो सीमा अपने कमरे में आ गई…थोड़ी देर बाद जब दादी वॉशरूम गई और वापस आई तो एक पल को लगा कि उनका बेटा लेटा है पर ध्यान से देखा तो उनकी रूलाई फूट गई…क्योंकि पोती ने अपना एक हाथ अपने पापा की शर्ट में डाला था और उसको अपने पास में बिछाया हुआ था तो दादी ने जैसे ही शर्ट को हाथ लगाया तो दिव्या चौंक कर उठ गई…बोली क्या कर रहें हो दादी..??

बेटा तू क्या कर रही है ये क्या हैं..??

मैं तो अपने पापा के साथ सो रही थी आपने हमकों डिस्टर्ब कर दिया और शर्ट अपने सीने से लगाकर वो सोने की कोशिश करने लगी…!!!!




रीता जी(दादी)भी पास में लेट गई और पुरानी बातें याद आने लगी…जब वो संयुक्त परिवार में रहतें थे सास-ससुर तीन भाई व एक बहन…बहन की शादी हो गई..और तीनों भाईयों के सात बच्चें…सबसे बड़े जेठ-जेठानी के दो लड़के व दो लड़कियाँ…फिर वो दोनों 

और उनके एक लड़की एक लड़का….सबसे छोटें देवर-देवरानी के एक बेटी थी…भरा-पूरा संपन्न परिवार था पर जब वक्त पलटता है तो बहुत कुछ ले जाता हैं पता नहीं क्या था कि चालीस से पचास के बीच के बहुत से सदस्यों को ले गया..पहले जेठ जी…फिर देवर-देवरानी…फिर जेठ जी का बेटा महज उन्तीस की उम्र में गुज़र गया…पता नहीं कैसा समय था लगता था हर पल जीवन एक संघर्ष है…!!!!

रीता जी के पास सो रही पोती नींद में भी सुबक रही थी वो उसकी पीठ सहलानें लगी व फिर सोच में डूब गई कि उस वक्त जब भी कही जाना होता बच्चों के साथ तो वो और उनके पति ही जातें थे क्योंकि बड़ी जेठानी सीधी थी व छोटे तो दोनों थे ही नहीं तो उन्हें लगता कि हम हमेशा इनमें ही लगें रहेगे तो अपने लिए कब जीयेंगे….पर करना तो था ही…!!!!

  जेठानी जी के बच्चें बडें हो गए एक 

बेटी व बेटें की शादी हो गई तो…फिर उन्होंने अपनी सास से बात की और जल्द ही अलग हो गए पर 

देवर की बेटी उनके साथ ही थी उसकी भी शादी की फिर उन्होंने उसकों भी बुुलाना बंद कर दिया कि मेरा बेटा क्यूँ करेगा किसी के लिए भी..हमने संघर्ष किया है वो नहीं करेगा…अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जियेगा…!!!!

  आज मेरा बेटा कहाँ हैं..शायद ज़िन्दगी ने ही अपना हिसाब किया है…कल जिस संघर्ष को मैं अपना समझ रही थी वो तो उनका था जिन्होंने अपनों को खोया था हमने तो साथ दिया था…मेरा संघर्ष तो अब है जब मेरे पति के बाद मैंने अपने जवान बेटे को खोया है उसके परिवार के लिए मुझे जीना हैं कैसे मुझे पता नहीं पर जीना तो हैं….!!!!

संघर्षों का एक मापदंड रखों….

ये जीवन हैं….यहाँ…

वक्त का चक्र चलता रहता है…!!!!

#संघर्ष 

मौलिक व स्वरचित ©®

गुरविंदर टूटेजा 

उज्जैन (म.प्र.)

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