आवाज उठानी जरूरी है ( भाग 1)- संगीता अग्रवाल

” जाहिल औरत ये क्या किया तूने गँवार है गँवार ही रहियो तू !” शारदा जी पूजा कर रही थी कि उन्हे बेटे कार्तिक के ये शब्द सुनाई दिये जो वो अपनी पत्नी सांची को बोल रहा था।

” माफ़ कीजियेगा वो मुन्ने का हाथ लग गया इसलिए पानी गिर गया थोड़ा !” सहमी आवाज़ मे सांची बोली।

” तुम्हारी माफ़ी क्या मेरी ये कमीज सुखा देगी पहले ही मुझे देर हो रही है ऊपर से ये। किसी चीज की तमीज है तुझे ना घर संभाल सकती ना बच्चे ना ढंग से रहना आता ना बनाना। मेरी किस्मत फूटी थी जो ये जाहिल मेरे पल्ले पड़ गई !” कार्तिक सांची को धक्का सा दे कमीज बदलने चला गया।

ये शारदा जी के घर का रोज का किस्सा हो गया है। असल मे कार्तिक किसी लड़की से प्यार करता था पर उसने कार्तिक को धोखा दिया बाद मे घर वालों के कहने पर कार्तिक ने सांची से शादी तो कर ली पर वो पत्नी सिर्फ उसका घर संभालने , उसकी शारीरिक जरूरत पूरी करने और बच्चे पैदा करने के लिए थी।

पत्नी को मान सम्मान भी दिया जाता है ये तो वो भूल ही चुका था। शारदा जी ने कितनी बार प्यार से , डांट डपट से बेटे को समझाने की कोशिश की पर दो बच्चो का पिता बनने के बाद भी कार्तिक मे कोई बदलाव नही आया उल्टा जब जब शारदा जी उसे समझाती वो सांची से ओर बुरा व्यवहार करता।

सांची मे भी गजब का सब्र था जो कभी कार्तिक को पलट कर जवाब नही देती थी पर शारदा जी को ये सब बुरा लगता उन्होंने सांची से कितनी बार कहा कि अपने लिए बोलना सीखो पर सांची हर बार जवाब देती ” मांजी घर की शांति के लिए चुप रहना ही सही है । पड़ोसी तमाशा देखे इससे अच्छा घर की बात घर मे रहे वक्त के साथ अपने आप सब ठीक हो जायेगा !”

पर शारदा जी को सांची की बात पसंद ना आती। क्योकि वक्त के साथ कार्तिक का रवैया सांची के साथ ओर खराब होता जा रहा था।

” हे देवी माता इस बच्ची की रक्षा करना । जाने इतना सब्र लाती कहाँ से है ये। रोज अपमानित होने के बावजूद भी सबकी सेवा मे जुटी रहती है। आप मेरे नालायक बेटे को थोड़ी सद्बुद्धि दो !” पूजा समाप्त करते हुए शारदा जी बोली। 

” मांजी आपका चाय नाश्ता !” सांची अपने छह माह के बच्चे को गोद मे लिए लिए ही काम निपटा रही थी।

” ला मुन्ने को मुझे दे और तू भी अपना नाश्ता ले आ बच्चे को दूध पिलाती है भूख लगी होगी!” शारदा जी पोते को पकड़ती हुई बोली।

” तुम खाओ माँ इसे तो सारा दिन ठूंसने के अलावा और काम ही क्या है खा लेगी बाद मे ये !” जूते के फीते बांधता कार्तिक व्यंग्य से बोला।

” शर्म कर ले शर्म बीवी है तेरी जो तेरा सारा घर संभाले है तेरे बच्चो को देखती है सारा दिन तेरी माँ की सेवा करती है तेरी हर चीज कहे से पहले हाजिर करती है और तुझे उसकी रोटी अखरती है नालायक कही का !” शारदा जी गुस्से मे बोली पर हर बार की तरह कार्तिक उठकर चलता बना। सांची की आंख में आंसू आ गए।

” मांजी आप खाइये मैं बाद में खा लूंगी !” मुन्ने को सास की गोद से लेते हुए सांची बोली।

” बैठ इधर ..और ये बता कब तक सहती रहेगी तू ये ?” शारदा जी उसका हाथ पकड़ बैठाते हुए बोली।

” मांजी मैं कर ही क्या सकती हूँ । गरीब माँ बाप की बेटी हूँ दो दो बच्चो को लेकर कहाँ जाउंगी !” सांची रोते हुए बोली।

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आवाज उठानी जरूरी है ( भाग 2)- संगीता अग्रवाल


आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

 

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