आत्मिक लगाव – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

  बेसब्री से किसका रास्ता देख रही हो माधवी, मैं तुमसे कल की पार्टी की बातें करना चाहता हूँ,और तुम हो कि टकटकी लगाए दरवाजे की ओर ही देख रही हो,मेरी बातो का तुम पर कोई असर ही नहीं हो रहा।कल अपने घर पर कितनी शानदार पार्टी रही ।‌ कितने लोगों से मिले,कितने बड़े -बड़े लोग आए थे,ऐसे लोगों के घर आने से हमारी शान बढ़ जाती है। भाई ! मुझपर तो अभी तक पार्टी का खुमार चढ़ा हुआ है। इतने सारे गिफ्ट आए और हमारी ओर से दिया गया रिटर्न गिफ्ट भी सबको बहुत पसंद आया।

‘अब बस भी करो, ऑफिस के लिए तैयार हो,देर हो जायेगी।’ पार्टी की बातों में माधवी को जरा भी मजा नहीं‌ आ रहा था।उसे इन्तजार था सामली का, जिसने पार्टी में बनाए जाने व्यंजन से लगाकर पूरे डेकोरेशन में उसकी मदद की।उसका स्वास्थ ठीक नहीं था, फिर भी उसने पूरी मेहनत से पार्टी की व्यवस्था में उसकी मदद की,माधवी ने बहुत मना किया, मगर वह नहीं मानी। पूरी व्यवस्था करने के बाद वह बिना बताए घर चली गई थी।

माधवी की बात पर रजत नाराज हो गया बोला -‘तुम्हें मेरी खुशी अच्छी ही नहीं लगती, कल इतने लोग आए थे, उनके साथ भी तुम्हारा व्यवहार कुछ रूखा था। तुम उन लोगों के साथ सहज क्यों नहीं रह पाती हो।’

‘रजत  मैंने तुम्हारी खुशी के लिए ही दिनभर तैयारी की, मैं जितना सहज रह सकती थी,मैंने कोशिश भी की, मगर मुझे ये रिश्ते खोखले लगते हैं, मुझे इसमें दिखावे और आडम्बर के सिवा कुछ नहीं दिखता।  रजत! रिश्ते दिल से जोड़े जाते हैं, दिमाग से नहीं। तुम्हारा और मेरा हमेशा इस बात पर मतभेद रहा है,तुम्हारा दिमाग उपरी चकाचौंध देखता है, दिमाग से बने रिश्ते सतही होते हैं। कल की पार्टी की सफलता का श्रेय जिसे दिया जाना चाहिए।उसका तुमने एक बार भी जिक्र नहीं किया। कल सामली का स्वास्थ  ठीक नहीं था,

मेरे लाख मना करने के बावजूद उसने मेरी दया देखी और सारा काम करवाया, हम सबने पार्टी का मजा लिया, और वह बिना कुछ खाए घर से चुपचाप चली गई। मेरा मन उसके लिए बैचेन है,उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ तो नहीं ग‌ई। मैंने फोन लगाया था मगर वह फोन भी नहीं उठा रही।’

‘तुम भी ना माधवी पता नहीं किसकी चिंता करती हो।’

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‘मैंने कहा ना, आप नहीं समझ पाएंगे।आपने सारे रिश्ते नाते दिमाग से जोड़े हैं और मैं दिल की दुनियाँ में जीती हूँ।

आप जाइये, अपने सतही रिश्ते निभाने और मैं सामली के घर जा रही हूँ।’ रजत की समझ में आ गया था,कि माधवी से बहस करना बेकार है,उसके दिल की आवाज के आगे वह हमेशा स्वयं को कमतर समझता था।वह ऑफिस के लिए निकला और माधवी ने मिठाई और नमकीन के पेकेट  लिए और सामली के घर ग‌ई।

वहाँ जाकर उसने देखा कि सामली तेज बुखार में तड़तड़ा रही है, और उसके दो मासूम बच्चे सहमे हुए बैठे हैं।माधवी ने बच्चों को मिठाई और नमकीन खाने को दिया, वे भूखे थे, उन्होंने प्रेम से खा लिया।सामली को देख माधवी की  आँखों में आँसू आ ग‌ए।उसे पछतावा हो रहा था कि कल इतनी मेहनत करने के कारण सामली की तबियत खराब हो गई।सामली भी माधवी से क्षमा मांग रही थी कि ‘मेम साहब  हमें क्षमा करदो हम कल पूरा काम नहीं कर पाए, हम आपसे बिना कहे घर आ गए।’उसकी आँखों में भी   आँसुओं  सैलाब उमड़ रहा था।

माधवी ने कहा पगली बस कर अब जल्दी डॉक्टर के यहाँ चल,अपनी हालत देख रही है।’ माधवी ने उसे डॉक्टर को दिखाया और दवाई लाकर दी।उससे कहा – ‘अब जब तक तेरी तबियत ठीक नहीं हो,घर पर मत आना। और अगर कोई जरूरत हो तो फोन लगाना।’दोनों की आँखों से प्रेम झलक रहा था।यह रिश्ता था आत्मा से आत्मा का। यहाँ न कोई गिफ्ट था और न कोई रिटर्न गिफ्ट। मगर कुछ तो आदान-प्रदान हुआ था,जो आत्मा से आत्मा तक पहुंचा।यही है आत्मीय रिश्ता।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी (एडव्होकेट)

इन्दौर

स्वरचित, मौलिक,

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