“मीना ओ मीना!अरे बहूजी कब तक सोती पड़ी रहोगी;आज की तारीख में चाय मिलेगी भी या ना?सुनते ही हड़बड़ाकर नमन की बाहों से अपने आप को जबरन छुड़ाती हुई मीना कपड़े और बालों को संभालती हुई कमरे से बाहर निकल आई!
मीना के जाते ही झुंझलाकर नमन ने मन ही मन सोचा आज छुट्टी का दिन था,कितनी अच्छी नींद आ रही थी सुबह सुबह वह सपने में मीना के हाथों में हाथ लेकर काश्मीर की खूबसूरत वादियों की सैर कर रहा था!!अम्मा भी ना खुद सोती हैं ना दूसरों को सोने देती हैं!चाय आधा घंटा देर में पी लेतीं तो कोई पहाड़ तो ना टूट जाता!पर ये सब वह सोच ही सकता था अम्मा के सामने तो उसकी हिम्मत ही नहीं थी एक शब्द निकालने की!
कभी मीता के पक्ष में उसके मुंह से गलती से कुछ निकल भी जाता तो अम्मा जोरू का गुलाम कह कहकर उसका उठना बैठना हराम किये रहतीं!
मीना को देखते ही अम्मा जी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा!मीना पैर छूने को झुकी तो बजाए आशीर्वाद के अम्मा जी मुंह सिकोड़कर बोली”आजकल की बहुओं ने तो लाज सरम घोंट के पी ली हैं सास पहले उठ जाए पर वे कमरे में सोती पड़ी रहैंगी!
अब खड़ी क्या हो?मेरा पूरनमासी का बरत है जाके नहाओ चाय देके प्रसाद बनाओ !और एक बात कान खोल कर सुन लो !पहले चौका अच्छी तरह धो पोंछ लेना कभी ऐसे ही सब पकाने को चल दो!”
पूजा 9बजे होगी उस के बाद पंडित जी भी खाना खाएंगे !
तो पूरी दो सब्जी,रायता खीर सब टाइम से बन जाए!
चरणामृत और कसार तो बनेगा ही!
जैसे ही मीना जाने को .मुड़ी अम्मा जी ने फिर आवाज दी और सुन लो कसार धीमी आंच पर भूनियो जल्दी के मारे तेज आंच पर भून कर ना धर दीजो!
पडोस वाले शर्मा जी और उनके बेटे बहू भी यहीं खा लेवेंगे!
जरा जल्दी जल्दी हाथ चलईयो कहीं घंटों ना लगा दीजो!
अम्मा जी का प्रलाप खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था वे बडबडाऐ जा रही थीं!
हमारे जमाने में तो बहुरियां तो सास के उठने से पहले नहा धोकर संट हो जाया करें थी कोई को कहने का मौका ना देतीं!”
अब खड़ी मुंह क्या देख रही ठंड के मारे ठिठुर रही हूं जल्दी से चाय मिले तो हाथ पैर खुलें!
हां नहाने जाओ तो मैंने अपने कपड़े भिगो दिये जरा सा साबुन रगड़ कर धोके फैला दियो!”
दिसंबर की ठंड!मीना सोच रही थी पहले नहाने का पानी गरम करे,अम्मा जी की चाय बनाए या प्रसाद बनाए!
जब सोकर उठी थी सोचा था अम्मा जी को चाय देकर अपनी और नमन की चाय कमरे में ले जाएगी दोनों आराम से बैठकर चाय पियेंगे!एक छुट्टी का दिन ही तो मिलता है जब दोनों साथ-साथ गर्मा गरम चाय का लुत्फ उठा सकते थे!बाकी दिन तो जल्दी जल्दी भागमभाग में कामवाली से काम कराओ ,नाश्ता बनाओ, नमन और अपना टिफिन तैयार करो अम्मा जी का खाना रखकर जाओ इसी कशमकश में दिन की शुरुआत होती है!
अम्मा जी को पसंद नहीं था कि नमन का ब्याह किसी कामकाजी लड़की से हो पर नमन को मीना बहुत पसंद थी!
मीना पहले से ही स्कूल में पढाया करती!
अम्मा जी भी कम दबंग नहीं थीं!
बहू बनकर मीना नमन के घर तो आ गई पर उसका रिमोट कंट्रोल अम्मा जी ने अपने ही हाथों में रखा!
शुरुआत में तो अम्मा जी ने बहुत कोशिश की कि मीना स्कूल की नौकरी छोड़कर घर बैठे और सारा काम करे!
पर फिर यह सोचकर मान गई कि चलो सारा काम करके जाएगी चार पैसे ही आऐंगे!
मीना सुबह नौ बजे स्कूल जाती और दोपहर को तीन बजे तक वापस आ जाती!
अम्मा जी ने पहले दिन से ही फरमान जारी कर दिया कि मीना घर का सारा काम करके तब ही स्कूल जाएगी !उन्होंने बहुत काम कर लिया अब वे बहू से सेवा कराकर चैन की रोटी खाऐंगी!
ऐसा लगता था उन्हें बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए था!
जिसका बटन अम्मा जी के हाथों में हो जिसे वे जैसे जिधर को चाहें घुमा सकें!
मीना के ब्याह से पहले उन्होंने अपने लिए एक कामवाली लगा रखी थी मीना के आने पर उसे भी हटा दिया यह कहकर कि तीन लोगों का काम ही कितना होता है!स्कूल से आकर दिन भर मीना करेगी क्या?
बड़ी मुश्किल से वे बर्तन धोने और झाड़ू पौंछा के लिए एक कामवाली रखने को राजी हुई!
मीना के मां-बाप ने मीना को घर का सब सामान दिया था !
मीना वाशिंग मशीन में अम्मा जी के कपड़े डालने लगती तो वे मीना को अपने कपड़े हाथ से ही धोने को विवश करती!
बिजली का बिल बढ़ ना जाए इसलिए कूलर भी वे तब चलाने देती जब नमन घर में होता!
अपने लिए अम्मा जी गीजर में पानी गरम करने के बाद गीजर बंद करके मीना को हिदायत देना ना भूलती”मैने तो जरा सा पानी निकाला था गर्म ही होगा अब दूबारा गीजर लगा कर बिजली फूंकने की जरूरत ना है”
खाना बनाने की जिम्मेदारी तो मीना की पर राशन घी दूध फल पर कंट्रोल अम्मा जी का!
हर चीज वे नापकर देती!अगर भूले से भी मीना कुछ ज़्यादा डाल देती तो अम्मा जी की पैनी नज़र से कुछ भी बच नहीं सकता था!वे फिजूलखर्ची का ताना दे मीना के मां-बाप को भी कटघरे में ला खड़ा करने से बाज ना आतीं!
स्कूल से लौटने पर मीना घड़ी दो घड़ी सुस्ताने को लेट जाती तो अम्मा जी अपने व्यंग बाण चलाए बिना ना चूकतीं! “ऐसे कौन से पत्थर तोड़कर आई हो जो दिन दहाड़े पसरने की सूझ गई! दिनभर स्कूल में बैठी ही तो रहती हो !हम तो तब से घड़ी पर आंख टिकाऐ बैठी थी कि कब आओ और चाय मिल जाए. “
मीना चाय बना कर अम्मा जी को दी और अपना कप लेकर बैठी ही थी कप अभी होठों तक पहुंचा भी नहीं था कि अम्मा जी का एक और बुलेटिन जारी हो गया”जल्दी से छत पर से मेरे कपड़े उठा ला नहीं तो सील जायेंगे! भला अम्मा जी से कोई पूछे दोपहर की भरी घूप में कपड़े कैसे सील जाऐंगे!बहू दो घूंट चाय भला कैसे चैन से बैठ कर पी ले ये उन्हें कैसे गवारा हो सकता था!
अम्मा तो अम्मा नमन भी अम्मा के सामने अपनी मर्दानगी दिखाऐ बिना बाज ना आता!सुबह-सुबह जब मीना किचन के कामों में व्यस्त रहती नमन बाथरूम से आवाज लगाता “मीना जल्दी से मेरा तौलिया दे दो या बनियान देदो!फिर गीला तौलिया पलंग पर छोड़कर कभी रुमाल तो कभी घड़ी या पर्स ढूंढने को कह देता!
उधर अम्मा जी राम नाम की माला जपते जपते कभी दरवाजे की घंटी देखने को तो कभी गेट खोलने को मीना को दौड़ाया करतीं!
उस दिन जैसे ही मीना ने तवे पर रोटी डाली कि अम्मा जी का मोबाइल बज उठा!अम्मा जी चिल्लाईं बहुरिया देख किसका फोन है!मीना ने एक हाथ से रोटी सेक दूसरे से मोबाइल कान में लगाया तो उधर से मीना की ननद सिया की आवाज थी!
मीना की आवाज सुन कर ननद रानी बोली”भाभी!शुक्र है आज आपकी आवाज तो सुनी वर्ना आपको तो हमसे बात करने की फुर्सत ही नहीं मिलती!भई !ठाठ हैं आपके सुबह सजधजकर घर से निकलो और दिनभर सखी सहेलियों के साथ मजा कर के घर आ जाओ!
मीना ने कहा अम्मा जी पूजा खत्म कर के आप से बात कर लेंगी तो सिया गुस्सा हो गई बोलली हमसे बात करने से आपका टाइम बर्बाद हो रहा है आपकी मटरगश्ती में खलल पड़ रहा है!
ऐसा लगता है जैसे सारे घर का बोझ आपके ही ऊपर लाद दिया गया हो जो आपको पांच मिनट भी बात करने की फुर्सत नहीं” कहकर फोन पटक दिया!
मीना चकरघिन्नी सी सुबह से शाम मशीन की तरह सबकी फरमाइशें पूरी करती करती थक जाती थी उसे अपने खाने पीने आराम का होश नहीं रहता था!
अम्मा जी और नमन को कभी ख्याल भी नहीं आता कि वे कभी मीना को भी कुछ पूछ लें कि उसने भी कुछ खाया पिया या नहीं!
एक दिन स्कूल से लौटकर मीना बेहोश हो गई! डाक्टर को दिखाया तो उसने बताया कि ढंग से ना खाने पीने की वजह से कमजोरी आ गई है!फिर अम्मा जी को एक तरफ ले जाकर कहा”मिठाई खिलाईये आप दादी बनने वाली हैं”सुनकर अम्मा जी की खुशी का ठिकाना न रहा!
उन्होंने शर्माती हुई मीना को गले से लगाकर कहा”मेरे पोते के आने तक अब तुम कोई काम नहीं करोगी!
मुझे माफ कर दे बेटा मैं भूल गई थी कि तू भी हाड़मांस की जीता जागता इंसान है कोई रोबोट नहीं!”
पहली बार अम्मा जी के सामने नमन की आवाज निकली “अब बहू से सेवा कराकर चैन से रोटी कैसे खाओगी अम्मा “
अम्मा भी हंसकर बोली”अब तो आराम से बैठकर पोता खिलाऊंगी”
“और पोती हुई तब?नमन ने शरारत से कहा!
पोता हो या पोती मेरी बहू और बच्चा स्वस्थ हो और मुझे कुछ नहीं चाहिए “
घर तीनों के ठहाकों से गूंज उठा!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक