ऋण चुकाना ! – सुदर्शन सचदेवा : Moral Stories in Hindi

अर्जुन एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था | दिन रात मेहनत करके उसको प्रमोशन  भी मिल गया | उसकी तरक्की देखकर उसके माता पिता  खुश होते और आशीर्वाद देते | माता पिता  अकेले गांव में रहते थे | 

धीरे धीरे अर्जुन काम में इतना व्यस्त हो गया कि मां पापा से बात करना कम कर दिया, कभी फोन उठाता कभी नहीं | मां की तबियत बिगड़ी लेकिन अर्जुन ने कहा – मैं प्रोजेक्ट में इतना बिज़ी था और समय भी नहीं मिल रहा,  मैं बाद में आऊंगा |

मां  दरवाजे पर बैठ गई,  आंखे कमजोर , लेकिन बेटे की आहट पहचान गई  | पापा भी चुपचाप थे अर्जुन को देखते ही चेहरे पर मुस्कान गई,  उनके पैर छुए और कहा ” अब मैं यहां पर ही रहूंगा, जीवन भर तुम्हारा साथ दूगां | आपने मेरा हर तरह से ध्यान रखा अब मेरी बारी है |

अर्जुन ने गांव में ही छोटा सा आफिस खोला और काम करने लगा | अब हर रोज़ मां के हाथ का खाना जो बड़ा ही स्वादिष्ट था , चाट चाट कर खाने लगा | पापा की दिलचस्प कहानी सुनता  | 

मैनें सोचा कि मां पापा मेरी हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ख्वाइशें पूरी करते थे, अब मेरा फर्ज है कि मैं सेवा करके ऋण चुका सकूं 

अब समय आ गया है मैं उन्हे   प्यार,  सम्मान और समय दूं | 

सुदर्शन सचदेवा 

मुहावरा : नमक का हक अदा करना

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