गाँव के एक छोटे से घर में राधा अपने बेटे रवि के साथ रहती थी। पति का देहांत कई साल पहले हो चुका था, और अब रवि ही उसकी दुनिया था। राधा ने खेतों में काम करके, दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करके उसे पढ़ाया-लिखाया।
रवि होशियार था, पर किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। इंटर में अच्छे नंबर आए, लेकिन नौकरी की तलाश में हर जगह रिजेक्शन मिला। माँ हर बार कहती, “कोई बात नहीं बेटा, मेहनत करने वालों की किस्मत एक दिन जरूर चमकती है।”
एक दिन रवि ने थककर कह दिया, “माँ, लगता है मेरी किस्मत ही फूटी है। चाहे जितना पढ़ूं, कुछ नहीं बदलता।”
राधा ने उसकी ओर देखा, हाथ में रोटी का टुकड़ा था जो उसने अपने लिए रखा था। वह टुकड़ा रवि की थाली में रखते हुए बोली, “जब तेरा बाप गया था, तो लोग बोले – इस औरत की किस्मत फूटी है। पर मैंने हार नहीं मानी। किस्मत फूटी नहीं होती बेटा, बस देर से खुलती है।”
उस रात रवि ने फिर से तैयारी शुरू की। कुछ महीनों बाद एक सरकारी नौकरी का रिजल्ट आया – रवि का नाम सूची में था।
घर के बाहर मिठाई बांटी गई, गाँव भर में राधा की तारीफ हुई। राधा मुस्कराते हुए बोली, “किस्मत कभी फूटती नहीं, बस धैर्य की परीक्षा लेती है।”
मेहनत और माँ का आशीर्वाद, दोनों मिल जाएँ तो किस्मत को भी रास्ता बदलना पड़ता है।
प्रीती श्रीवास्तव