जीने की कला – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

मैं ज़रा दो घड़ी कल्याणी के पास जाने की सोच रही हूँ । चाय पीनी हो तो बना दूँ ? , मंगला ने अपने पति से कहा ।

अभी तो चाय की इच्छा नहीं…. बहुएँ तो घर में ही है ना ? पीनी होगी तो कह दूँगा चाय बनाने को …. तुम जाओ । कब तक आ जाओगी? 

आऊँगी तो तब ना , जब निकलूँगी यहाँ से । चाय तो क्या मिलेगी तुम्हें …. आज तो  लगता कि रोटी भी मुझे ही बनानी पड़ेगी । दोनों मुँह फुलाए पड़ी है । ऐसा करो , तुम भी मेरे साथ चले चलो । मुझे भी तुम्हारी चाय की चिंता ना रहेगी । 

पत्नी की बात सुनकर हीरालाल का चेहरा उतर गया । वे बोले —

बता , ये तो हर तीसरे दिन का काम हो गया । साहबजादों को कुछ कहें तो वे उल्टा हमें ही ताना मारते हैं कि उन्होंने कौन सी अपनी मर्ज़ी से शादी की थी , जैसी लाए हम लाए ।

यही तो मरना हो गया जी !  अच्छा…. चलो , उठो । दो घड़ी कल्याणी के चलते हैं, कुछ ओर सा दिल हो जाएगा । 

मंगला के ज़ोर देने पर हीरालाल जाने के लिए तैयार हो गया । मंगला को पति के साथ आती देखकर उसकी बचपन की सहेली कल्याणी चिल्लाई ——

आज तो पक्का बारिश आएगी । आज इस जोड़े को हमारी याद कैसे आई ? रघु के पापा ! कहाँ हो ….. मंगला के साथ भाईसाहब आए हैं । 

कल्याणी के पति यह सुनकर बाहर आए और दुआ- सलाम के बाद कल्याणी और मंगला अंदर कमरे में चली गई । अंदर जाते- जाते कल्याणी ने अपनी दोनों बहुओं को आवाज़ लगाते हुए कहा—-

शिवानी…. अंजलि…. देखो , तुम्हारे मौसा- मौसी आएँ हैं । चाय- वाय बनाओ ।

तभी मंगला ने देखा कि सास की आवाज़ सुनते ही दोनों बहुएँ बाहर आई । उन दोनों  ने मंगला और हीरालाल के  पैर छूकर आशीर्वाद लिया और कुछ औपचारिक बातें की । जब भी  मंगला अपनी सहेली के घर आती और दोनों बहुओं का ऐसा प्रेमपूर्ण व्यवहार देखती तो मन ही मन सोचती कि काश ! उसकी बहुएँ भी ऐसी होती । 

कमरे में पहुँचते ही मंगला बोली —-

कल्याणी! आज तो सुबह से ही मन कर रहा था तुझसे मिलने का … तुझे तो कभी टाइम मिलता नहीं कि मेरा हाल-चाल पूछ ले ।

हाँ भई … अपनी गलती मानती हूँ । कई बार सोचती हूँ तेरे पास आने की…. पर घर- परिवार में कुछ न कुछ लगा ही रहता है । अभी इनके बच्चे छोटे हैं तो दिन का पता ही नहीं चलता …..कब निकला और कब छिप गया । इस साल सोचा था कि शिवानी मयंक के साथ नोएडा चली जाएगी….और गुड़िया का नर्सरी में एडमिशन वहीं करवा देंगे….मयंक को भी  हर हफ़्ते दौड़कर आना पड़ता है पर जाने के नाम पर दोनों देवरानी- जेठानी एक हो गई ।

 शिवानी बोली —

मम्मी! यहाँ भी तो कितने अच्छे स्कूल हैं । परिवार से दूर जाकर अकेले रहने से बच्चों में लगाव नहीं रहेगा । 

उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए अंजलि भी बोली—-

हाँ मम्मी ! अब तो मयंक भैया हर हफ़्ते आ जाते हैं । फिर तो तरस ज़ाया करेगी आप ….और कौन सा बड़ी दूर  है मेरठ से नोएडा । 

मंगला ने गौर किया कि बात करते समय कल्याणी के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी । उसने कल्याणी से पूछा—

क्या कभी भी इन दोनों में किसी बात को लेकर दो राय नहीं होती ? 

क्यों नहीं होती ? जहाँ दो बर्तन होते हैं, कभी न कभी खटक ही जाते हैं पर मेरी दोनों बहु आपस में बहन जैसी रहती है । 

ये क्या बात हुई? खटर-पटर भी बता रही हो और बहनों जैसा बर्ताव भी कह रही हो ।

मंगला , एक बात बता …. हम दोनों बचपन की सहेलियाँ है । क्या हम दोनों के स्वभाव और पसंद एक जैसे हैं… नहीं ना … क्या कभी तेरी बहन के साथ कहासुनी नहीं हुई? और तो और जन्म देने वाली माँ के साथ भी विचार नहीं मिलते कभी-कभी…. बस ऐसा ही देवरानी- जेठानी का रिश्ता है ।  अरे , ये सब सामान्य बात है । लेकिन  छोटों को कई बार समझाना भी पड़ता है, कई बार थोड़ी  उनसे नाराज़गी भी ज़ाहिर करनी पड़ती है । 

कल्याणी, कहना आसान होता है । ज़रूरी नहीं कि सबकी समझ में ये बात आए । 

हाँ…. ये तो है पर बहू- बेटी को समझाने या अपनी बात मनवाने के लिए उनके साथ लगाव रखना , उनकी ज़रूरतों पर ध्यान देना , उनके मायके वालों को सम्मान देना बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है । और छोटी- छोटी कहासुनी को ज़्यादा खींचना भी नहीं चाहिए । अगर किसी बात पर बहस हो जाए तो उसे वहीं यह सोचकर ख़त्म करने की कोशिश करनी चाहिए कि हर आदमी को अपने विचार रखने की आज़ादी है । 

कल्याणी की बात सुनते- सुनते मंगला के दिमाग़ में ऐसी कई बातें घूम रही थी । जो उसकी गलती के कारण बड़ी बन गई थी । आज भी तो ऐसा ही हुआ था सुबह …. बड़ी बहू की कमर में कई दिन से दर्द चल रहा था और छोटी बहू को अपनी भाभी की बहन की मँगनी में जाना था । छोटी बहू ने बड़ी बहू से कहा था—

दीदी! भाभी बहुत ज़ोर दे रही है मँगनी में आने के लिए…. मैं ऐसा करती हूँ कि सब्ज़ियाँ बनाकर रख देती हूँ, कुछ चावल या पुलाव बना देती हूँ, आटा लगा दूँगी तो आप बस दो- दो रोटियाँ मम्मीजी और पापा जी के लिए बना देना । 

मंगला खुद नहीं चाहती थी कि छोटी बहू इस मँगनी में जाए इसलिए उसने बड़ी बहू का पक्ष लेते हुए कहा—-

नीना ! तुझे मँगनी में जाने की पड़ी है । जेठानी का दर्द नहीं दिखता कि वो बेचारी कैसे खड़ी हो पाएगी? 

यह सुनकर नीना को भी ग़ुस्सा आ गया और वह बोली —-

आप इनकी कब से सगी हो गई मम्मी जी ? कल शाम तो खुद कह रही थी कि तमाशे कर रही है तेरी जेठानी  । और चार रोटियाँ तो आप भी बना सकती हैं । पिछले साल मेरी भी टाँगों में दर्द था पर आपने दीदी को उनकी सहेली की शादी में जाने से तो नहीं रोका था । 

मंगला को इस वक़्त शर्म आ रही थी कि चार रोटियाँ बनाने की छोटी सी बात थी पर उसने बात को सँभालना तो दूर , दोनों के बीच कलह बढ़ा दी थी । कितनी समझदार है कल्याणी,  खूब जानती है कि रिश्तों को कैसे सहेजना चाहिए । 

चाय पीते ही मंगला ने पति से घर चलने के लिए कहा ।और घर आते ही छोटी बहू से बोली —-

नीना ! तूने अभी तक मँगनी में जाने की तैयारी नहीं की? 

आप जाने देती , तो तैयारी करती ना …. 

अरे बेटा , ऐसे तो छोटी- मोटी कहासुनी होती रहती है । जा तैयार हो जा । वैभव को मत ले जाना मैं रख लूँगी , रात बिरात को देर से पहुँचोगे तुम लोग …. बच्चा दुखी हो जाएगा । और हाँ…. सुनंदा के कमर दर्द की फ़िक्र मत करना …. चार रोटियाँ ही तो सेंकनी है…. मैं बना लूँगी । 

नहीं- नहीं मम्मी जी ! इतनी सी देर में क्या फ़र्क़ पड़ेगा । मैं सेंक दूँगी आपकी और पापाजी की रोटियाँ । 

आज पहली बार मंगला को अहसास हुआ कि जीने की कला सीखने में उसने बहुत देर कर दी ।

करुणा मलिक 

# मेरी दोनों बहु आपस में बहन जैसी रहती हैं ।

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