सम्मान किसी पद या विभाग का मोहताज नहीं होता – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’ : Moral Stories in Hindi

सुबह की ठंडी हवा चल रही थी; कैलाश नाथ जी छत पर बैठकर सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे और अखबार पढ़ते जा रहे थे कि तभी अखबार के एक पृष्ठ की हैड लाइन पर उनकी नजर पड़ी ‘प्रधानाचार्य कक्ष में बोर्ड परीक्षाएं देते विद्यार्थी पकड़े, कार्यवाही’ जब उन्होंने पूरी खबर पढ़ना शुरू किया तो कॉलेज का नाम पढ़कर वह आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि यह विद्यालय कोई और नहीं बल्कि वही था जिसमें उनका ही बेटा प्रकाश प्रधानाचार्य है।

खबर पढ़ कैलाश नाथ जी बीते दिनों में पहुंच गए; कैलाशनाथ जी पुलिस विभाग में तैनात थे, और एक सहृदय व सरल स्वभाव के व्यक्ति थे जिस कारण उनका हर कोई सम्मान करता था यह उनके माता पिता द्वारा दिए हुए संस्कारों का ही परिणाम था कि पुलिस विभाग में होकर भी वह अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लेते थे,

चाहे कोई दुकानवाला हो या रिक्शाचालक जो लोग पुलिस वालों को देखते ही इसलिए डरते हैं कि यह अपने मनमर्जी पैसे थमा देंगे या कभी कभी देंगे ही नहीं, इनके सामने सम्मान से पेश आते थे क्योंकि सबको पता था कि यह खुद्दार आदमी हैं, सबका हिसाब पूरा करते हैं…..गरीबों को सताते नहीं और अपराधियों को छोड़ते नहीं यह इनके बारे में उस समय की प्रसिद्ध पंक्ति थी

जो हर व्यक्ति की जुबान पर होती थी।..चूंकि उनका ट्रांसफर होता रहता था इसलिए वह सरकारी आवास में ही रहते थे लेकिन उनकी पत्नी सरला और 2 बेटियां व बेटा प्रकाश गांव में ही उनके माता पिता के साथ पुश्तैनी मकान में रहते थे; गांव भी शहर से लगा हुआ था इसलिए ज्यादातर सुविधाएं भी थी और बच्चे भी वहीं रहकर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे….

लेकिन कहते हैं न कि जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उनकी सोच और समझ बदलती जाती है वह अपने अनुरूप सोच को ही सही मानने लगते हैं जैसे ही प्रकाश थोड़ा बड़ा हुआ उसने देखा कि उसके साथ के बच्चों के अच्छे मकान हैं और बहुत सी सुविधाएं हैं जिनका जिक्र वह अक्सर अपने पिता से कर देता था कि पापा हमारे पास बड़ा मकान भी नहीं हैं और ज्यादा कुछ सामान भी नहीं है तब कैलाशनाथ जी या तो हंसकर टाल देते थे कि तुम पढ़–लिख लो, कमाने लग जाओ तब सब ले लेना, या कभी कभी समझा देते थे कि बेटा सब लोगों की स्थिति एक समान नहीं होती,

तुमने अपने दोस्तों को तो देखा है कभी उन लोगों को भी देख लो जिनके पास अपना मकान तक नहीं है,….अब तुम लोग अच्छे से रह रहे हो, पढ़ रहे हो जबकि बहुत से लोगों को तो ठीक से खाना भी नहीं मिलता….।

समय इसी तरह व्यतीत होता जा रहा था तीनों बच्चे बड़े हो गए, दोनों बेटियों का विवाह भी अच्छे परिवारों में कर दिया और प्रकाश का भी चयन भी इंटर कॉलेज में अध्यापक के पद पर हो गया….एक दिन कैलाशनाथ ने जब एक लड़की का जिक्र करते हुए प्रकाश से उसके विवाह की इच्छा जाननी चाही…..

“बेटा, कांता प्रसाद जी को तो तुम जानते ही हो और उनकी बेटी सौम्या को भी तुमने देखा है, अगर तुम राजी हो तो वह अपनी बेटी के विवाह के लिए कह रहे थे ..”

“क्या आप भी नौकरी लगी नहीं कि पड़ गए शादी के पीछे….. मैंने आपसे पहले भी कहा था कि मुझे नहीं करनी अभी शादी….मुझे जिंदगी में अभी बहुत कुछ करना है…”

“तो बेटा, मना किसने किया है, वो तो शादी के बाद भी कर सकते हो जो तुम्हें करना है ….वैसे भी जिंदगी में कुछ न कुछ करने को तो हमेशा ही लगा रहता है पर शादी की तो एक उम्र भी तो होती है…..अब नहीं करोगे तो क्या बुढ़ापे में करोगे….”

“मैंने आपसे बोला न कि अभी नहीं….मुझे नहीं जीनी आपकी तरह जिन्दगी….अरे अपने अपनी नौकरी में किया ही क्या? ….अपने साथ के लोगों को देखो आपके साथ ही नौकरी करने वाले बड़ी बड़ी कोठियों में रहते हैं, बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, ऐश की जिंदगी जी रहे हैं ऐश की और आप….” कहकर प्रकाश चुप हो गया। लेकिन कैलाशनाथ जी के दिल को बहुत चोट पहुंची थी।

“बेटा, सही कह रहे हो तुम मैंने इस विभाग में ज्यादा पैसा तो नहीं कमाया लेकिन ये भी सच है कि जो कुछ मैंने कमाया  वो पैसे कमाने वालों ने नहीं कमाया, मान सम्मान, दो काबिल और संस्कारी बेटियां और एक काबिल तुम…. जब मेरे साथ के लोग तुम लोगों का उदाहरण अपने बच्चों को देते हैं तब मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है…. ” कैलाश नाथ दुखी मन से बोलते रहे लेकिन यह सुनने को प्रकाश वहां रुका ही नहीं था वह तो अपनी बात कहकर वहां से जा चुका था…..उन्हें उनकी पत्नी ने यह कहकर संभाला कि क्यों दुखी हो रहे हो सब सही हो जायेगा।

कुछ समय बाद कैलाशनाथ जी ने सेवानिवृत्त होने पर जो धनराशि मिली उसे प्रकाश को देते हुए कहा कि इसमें कुछ और जोड़कर तुम अपना मन पसंद घर ले लेना वैसे भी मै तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया। 

प्रकाश ने शहर की एक पोश कॉलोनी में घर ले लिया और फिर कुछ साल बाद प्रमोशन होते ही अपनी पसंद की लड़की से माता पिता को राजी कर विवाह कर लिया। जब तक मां थीं तब तक तो मां बाबूजी कभी कभी ही उसके यहां आते थे लेकिन अभी 6 महीने पहले जब मां का देहांत हो गया तब वह जिद करके अपने बाबूजी को अपने साथ ले आया था जिससे अपने पोतों के साथ बाबूजी को अकेलापन महसूस न हो। प्रकाश के 2 बेटे एक 8 साल और दूसरा 12 साल।

आज उसके यहां सारी सुख सुविधाएं थीं, जिन्हें देखकर और इस्तेमाल कर वह फूले नहीं समाता था।

लेकिन आज अखबार में यह खबर उसके पद के गौरव की धज्जियां उड़ा रही थी।

” दादू….दादू नीचे नहीं आ रहे….अब तो धूप भी आ गई….” छोटे पोते की आवाज सुन कैलाशनाथ अपने ख्यालों से बाहर आए।

“आ रहा हूं बेटा….और तुम्हारे डैडी कहां हैं …..

“डैडी तो घर ही हैं अभी आज संडे है न इसलिए….”

“अरे हां, मैं तो भूल ही गया था कि संडे है ….जरा बुला तो….”

प्रकाश के आने के बाद

“बेटा, मुझे आज गांव छोड़ आना….मैं वहीं रह लुंगा….वैसे भी मेरा मन नहीं लगता यहां….”

“क्यों कुछ बात हुई क्या या किसी ने कुछ कहा….और फिर गांव में अकेले….”

“बेटा, कोई मुझसे क्या कहेगा….जो कह रहा है अखबार कह रहा है तुम्हारे पास जो कुछ है वो कहां से आ रहा है वो भी मुझे पता चल गया है अब इसलिए अब मैं नहीं रह सकता …..जब मैने आज तक अपनी नौकरी में रिश्वत की कमाई नहीं खाई, पैसों के लिए किसी का दिल नहीं दुखाया तो अब बुढ़ापे में ऐसी कमाई की रोटी से क्यों अपना पेट भरूं…. बेटा मेरी एक बात याद रखना सम्मान किसी पद या विभाग का मोहताज नहीं होता….

तुम एक सम्माननीय पद पर हो लेकिन तुमने न तो अपने पद की गरिमा का ध्यान रखा और न ही अपनी और अपने परिवार के मान सम्मान का…..इज्जत से कमाई रोटी पेट भी भरती है और आत्मिक शांति भी देती है लेकिन जिस तरह तुम कमा रहे हो उससे न तो शांति मिलती है और न संतुष्टि….इसलिए मुझे तो मेरे गांव ही छोड़ आना रही बात अकेलेपन की तो यहां घुटनभरी जिंदगी से वहां अकेलापन अच्छा है….”

“मुझे माफ कर दो बाबूजी….मै आपको हमेशा गलत समझता रहा….न जाने कितनी बार आपको भला बुरा कहा लेकिन आज अहसास हो गया है कि गलत तरीके से कमाई गई दौलत कभी सुख शांति नहीं देती, वह तुम्हारा मान सम्मान सब कुछ छीन लेती है….”

“अच्छा है तुम्हें यह बात जल्दी समझ आ गई, काश सभी लोगों को समझ आ जाए कि सम्मान की रोटी चाहे रूखी हो क्यों न हो आत्मिक संतुष्टि प्रदान करती है…..”

प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

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