माँ! आपने काजल को भात में जाने के लिए कह दिया ना ?
मैं क्यूँ कहूँगी भला ? तेरे बेटे की शादी है । तुझे ले जाना हो भात नोतने में उसे ….तो कह दे नहीं तो जाने दे ।
चलो , मैं फ़ोन करती हूँ । माँ, कैसी बात कह दी आपने ? आपके पोते की शादी है और भात नोतने में कौन- कौन जाएगा…. मैं आपसे पूछे बिना थोड़े ही ले जाऊँगी?
हाँ- हाँ…. मुझे सब पता है कि अपनी बहनों को तो तूने महीनों पहले चलने के लिए कह दिया होगा ।
माधुरी सास की बात सुनकर चुप रही । वह जानती थी कि कुछ भी कह ले …. माँ को अपनी ही बात ऊपर रखने की आदत है । चाहे गलती उनकी ही क्यों ना हो । सच कहें तो अब उसे बुरा भी नहीं लगता था….. या शायद उसने यह कहना सीख लिया था कि माँ की कोई बात मुझे बुरी नहीं लगती ।
माधुरी के छोटे बेटे की शादी के तक़रीबन 20-25 दिन बचे थे और घर में भात नोतने जाने की तैयारी चल रही थी । उसने अपनी ननद काजल को फ़ोन करके चलने का निमंत्रण दे दिया । जिस दिन माधुरी को भात नोतने के लिए मायके जाना था । उससे एक हफ़्ता पहले ही काजल अपने बच्चों के साथ मायके आ गई ।
बच्चों के स्कूल में स्पोर्ट्स डे की तैयारी चल रही है भाभी , कोई ख़ास पढ़ाई हो नहीं रही …..तो मैंने सोचा कि चलो , शादी की तैयारियों में थोड़ा हाथ बँटवा दूँगी ।
ये तो तुमने बहुत अच्छा किया काजल ।कल भात में ले जाने का सामान ख़रीद लाएँगे ।
भात में क्या लेकर जाएगी? गुड़ की भेली जाती है हमारे बस ….भरत के ब्याह में भी बिना पूछे सामान ले गई थी तू । अबकि बार ना तुझे मनमानी करने दूँगी ।
तुम्हीं बताओ काजल ….. अब कौन ख़ाली गुड़ लेकर जाता है।
गुड़ तो केवल शगुन के लिए रखते हैं । माँ.. भाई- भतीजों के पैंट- क़मीज़ और उनके साथ एक-एक मिठाई का डिब्बा तो दूँगी । गीतों में बाँटने के लिए लड्डू रख लेंगे । इतना तो कम से कम है ।
यहाँ से ले जाते वक़्त तो तुझे कम ही दिखता है । भरत के ब्याह में क्या देकर गए थे तेरे भाई….. इधर से जितना खर्च करके ले गई थी उसका आधा भी नहीं देके गए थे ।
माधुरी चुपचाप वहाँ से चली गई । वह नहीं चाहती थी कि ब्याह वाले घर में कहासुनी हो और कलह बढ़ जाए । उसने सोचा कि पति से अलग बात कर लेगी । ये क्या बात हुई कि लेने- देने में बराबरी देखी जाए । उसके भाई कुछ भी कर लें पर माँ को कभी नहीं भाता । फिर वो कौन सी अकेली बहन है भाइयों की…. चार बहनें हैं , उनका अपना भी खर्च है , भतीजियाँ ब्याहने लायक़ हो रखी है । मुझे भगवान की दया से क्या कमी है । पति अच्छा कमाते हैं, दोनों बेटे और बहू कमा रही है , चार दुकानों और दो मकानों का किराया आता है । गाँव की ज़मीन का भी कुछ ना कुछ आता ही है । और ज़्यादा नहीं तो साल भर के गेहूँ- चावल तो ख़रीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती ।
अगले दिन माधुरी रसोई के स्टोर में खड़ी मसालों और दाल आदि के डिब्बे चैक कर रही थी । तभी उसके कानों में माँ की आवाज़ पड़ी—-
तेरी भाभी की तो मति मारी गई है । पहले ब्याह में देख ली थी इसकी बुद्धि मैंने । पता नहीं…. तुझे याद है कि नहीं, जब भात नोतने गई थी तभी अपनी तीन भतीजियों को साथ ले आई थी । बीसों दिन पहले आके जम गई थी । खावें थी और सारा दिन ही-ही-ही …… मुझे ना सुहाती ख़ाली बैठी जवान लड़कियाँ…. पता नहीं….. कैसे भाई-भाभी है इसके ? कौन जवान लड़कियों को इतने दिन पहले भेजे ?
हाँ…. आई तो थी पर माँ …. उन्होंने रौनक़ बहुत लगाई थी । आप इतनी रोकाटाकी मत लगाओ भाभी पर ….. अरे ! उनके बेटे का ब्याह है । वैसे भरत और दिव्या कब पहुँच रहे हैं बैंगलोर से ?
ये क्या कह रही है…. क्यूँ ना लगाऊँ रोकाटोकी … लुटवा देंगी ये तो सारे घर को । मुझे ही तो पता है , कैसे- कैसे तिनका जोड़ा है । इसे तो कुछ ना दिखता मायके वालों के सामने । अबकि बार तो मैंने सोच लिया कि खाना बनाने वाली दो दिन पहले बुलाऊँगी । वे जो इसकी बहन – भतीजी आएँगी, बनाएँ खुद रोटी …… मेहमान एक दिन का होता है बस ।
देख लो माँ….. मेरे हिसाब से तो ये ठीक नहीं….
तू चुप ही रहना , नहीं तो माधुरी को शय मिलती है । बस चुपचाप देखती रहना ।
सास की बातें सुनकर माधुरी का मन बहुत आहत हुआ । काजल की तरफ़ से भी थोड़ी निराशा हुई कि जितना माँ को समझाना चाहिए था उतना ननद ने नहीं समझाया ।
ख़ैर निश्चित दिन माधुरी भात नोतने गई और जैसा चाहती थी वैसा ही लेकर गई । बस फ़र्क़ इतना रहा कि दुकान से पैक करवा के पति ने सारा सामान वहीं से गाड़ी में उठवाया । सास ने काजल से जानने की बहुत कोशिश की पर काजल ने बस इतना कहा—-
आप तो जानती हो माँ, हम तो यहीं से अपनी अलग गाड़ी में बैठे थे । फिर भाभी तो मेरे बाद निकली थी ना यहाँ से । इन्हें दस मिनट का रास्ता में काम था ….. हम तो भैया की गाड़ी के बाद पहुँचे थे ।
तू तो जन्म से ही बेअक्ली है । लोग तेरे सामने से चीज़ उठाकर ले जाते थे और तुझे पता भी ना चलता था । वो तो पिछली बार कुमुद गई थी…. इस बार उसकी तबीयत ठीक ना चल रही ।
अरे छोड़ो ना माँ, दिव्या आपके लिए कितनी सुंदर साड़ी लाई है । लाओ …. दो मुझे….. फ़ॉल लगा देती हूँ , पहन लेना शादी में। बहू को अच्छा लगेगा ।
अच्छा…. एक बात तो बता , ये माधुरी अपने साथ अपनी भतीजियों को नहीं लाई इस बार ….क्या बात हुई?
माँ, काजल को नहीं पता मैं बताती हूँ । मैं तो उन्हें भरत के ब्याह में इसलिए ज़बरदस्ती अपने साथ लाई थी कि हमारे कोई बेटी नहीं, ननद भी एक है , आगे उसके भी कोई लड़की नहीं…. तो ब्याह का घर बेरौनक़ी सा लगेगा बेटियों के बिना । वे यहाँ रोटियाँ तोड़ने नहीं आई थी । अपने घर में सम्मान की सूखी रोटी नमक के साथ खाई भली , वैसे भी मेहमान तो एक दिन के होते हैं तो इसलिए मैं कह आई कि भात लेकर सब इकट्ठे ही आना । अब ये बताइए कि आपके मायके से दोनों मामाजी परिवार के साथ कल पहुँच रहे हैं तो खाना बनाने वाली को बुलाऊँ या वे सब मिलकर बना लेंगी ?
माधुरी ने देखा कि माँ का चेहरा देखने लायक़ था । आज अपनी आदत के अनुसार अपनी बात ऊपर न रखते हुए उन्होंने कहा——
काजल ! मेरा फ़ोन उठाकर ला , खाना बनाने वाली को कल से बुला लेती हूँ ।
लेखिका : करुणा मलिक