घर मिल गया – गीता वाधवानी  : Moral Stories in Hindi

 आज तो साक्षी ने हद ही कर दी थी। इतनी बेइज्जती इतना अपमान अपनी सास का। कल्याणी तो जार-जार रो रही थी अपने कमरे में। तभी उसके पति गिरधर जी ने कमरे में प्रवेश किया और अपनी पत्नी कल्याणी को रोता हुआ देखकर आश्चर्य चकित रह गए और चिंतित होकर पूछने लगे,” क्या हुआ कल्याणी रो क्यों रही हो तबियत तो ठीक है ना तुम्हारी, क्या बात है? ” 

 कल्याणी ने सोचा बहू की यह हरकत बताने से  कहीं घर में क्लेश ना हो जाए,इसीलिए बोली” आज अजय की बहुत याद आ रही है तो रोना आ गया। ” 

 गिरधर-” बस इतनी सी बात, चल मिलवा कर लाता हूं तुझे तेरे भाई से, इस बहाने मैं भी साले साहब से मिल लूंगा। ” 

 दोनों ने एक बैग में दो-दो जोड़ी कपड़े डाले और निकल पड़े गाजियाबाद के लिए,वैसे भी दिल्ली से गाजियाबाद है ही कितनी दूर। दो-तीन दिन रहकर वापस आ गए। उन्हें ऐसे अचानक देखकर अजय और उसकी पत्नी बच्चे सब बहुत खुश हो गए थे। 

     उन्होंने जब ऐसे अचानक प्रोग्राम बनाया था तो उनकी बहू साक्षी बहुत खुश हो गई थी। सोच रही थी चलो दो-तीन दिन के लिए तो पीछा छूटा बुडढे बुढ़िया से। अब मैं दो-तीन दिन तक फ्री,ना उनके लिए चाय बनानी पड़ेगी और ना खाना। अपनी सहेलियों को घर पर बुलाऊंगी और उनके साथ पार्टी करूंगी। 

    उधर कल्याणी भी अपने भाई भाभी और बच्चों से मिलकर खुश हो गई थी। गिरधर जी की गोलगप्पे, चाट पापड़ी,टिक्की की दुकान थी जो कि बहुत अच्छी चलती थी। वह दुकान अब उनका बेटा आशीष चला रहा था यानी की साक्षी का पति। 

 सचमुच वह विवाह के बाद साक्षी का पति ही बनकर रह गया था,माता-पिता का बेटा नहीं। साक्षी जब सास ससुर का अपमान करती थी तो उसे डांटना तो दूर, रोकता भी नहीं था। न जाने ऐसा क्या हो गया था। 

      कल्याणी भाई के यहां से आने के बाद एकदम नॉर्मल थी मानो पहले वाली बातें भूल गई हो। लेकिन आज जब साक्षी ने गिरधर जी का अपमान किया तो कल्याणी जी सहन न कर सकीं। 

      दरअसल हुआ यूँ कि कल्याणी, गिरधर जी को चाय देकर सब्जी खरीदने चली गई और वहां उन्हें थोड़ा ज्यादा समय लग गया तब गिरधर जी ने बहू से कहा-” बहु समय हो गया है नाश्ता दे दो क्योंकि मुझे दवाई लेनी है। ” 

     साक्षी बुडबुडाने लगी-” मुझे तो नौकरानी समझ रखा है इन दोनों ने, अपने बच्चों को देखूं या इनकी सेवा करूँ,। बुडढा अपनी पत्नी से तो कुछ कहता नहीं मेरे ऊपर ऑर्डर चलता रहता है जान खा गया है मेरी ना जाने कब मरेगा। ” 

 यह सब कुछ कल्याणी ने अपने कानों से सुना क्योंकि वह सब्जी का थैला रखने रसोई में आ गई थी। 

 कल्याणी जोर से चिल्लाई -” साक्षी क्या बोला तुमने अभी, कुछ तो शर्म कर, तेरे पापा के साथ भी ऐसा हो सकता है कल, करणी का फल यहीं पर मिलता है। ” 

    साक्षी बदतमीजी से बोली -” मेरे पापा भाभी पर आर्डर नहीं चलाते। ” 

 कल्याणी-” क्या आर्डर चलाया था तुझ पर, मैं सब्जी लेने गई थी इसीलिए तुझसे नाश्ता मांगा था ना बस, और तू बदले में उनकी मौत की कामना कर रही है। ” 

    तभी आशीष आया-” बस करो माँ जब देखो चिल्लाती रहती हो, हर बात में किटकिट करती हो। ” 

 कल्याणी को गुस्सा आ गया और उसने कहा-” मैं किटकिट करती हूं, तुझे पता है इसने तेरे पापा को क्या बोला है? ” 

 आशीष-” हां हां पता है क्या इसके बोलने से पापा सचमुच मर——। ” 

 कल्याणी ने चिल्ला कर कहा -” हां हां बोल पूरा वाक्य बोल बेशर्म, बहुत सहन कर लिया हमने, अब तुम दोनों के साथ हमारा गुजारा नहीं। तुम दोनों अपना इंतजाम कहीं और कर लो। चार दिन का समय है तुम्हारे पास। ” 

 साक्षी-” हम क्यों जाएं, आप दोनों जाइए यहां से। ” 

 कल्याणी -” यह घर हमारा है याद रखना। ” 

 तब तक साक्षी उसकी आंखों के सामने कागज लहराती हुई बोली -” पढ़ना आता है तो पढ़ लीजिए यह घर हमारा है और हम इसके मालिक हैं क्योंकि आपने हमें यह घर उपहार में दे दिया है।” 

 कल्याणी -” यह क्या बकवास है आशीष। ” 

 आशीष-” मां आप दोनों ने ही तो हस्ताक्षर किए थे, भूल गई हो क्या? ” 

 कल्याणी और गिरधर के पांव तले जमीन खिसक गई। वे दोनों समझ गए कि उन्हें धोखा दिया गया है और धोखे से साइन करवाए गए हैं। 

 अब वह क्या करते। उन्होंने सोच लिया था कि उनके द्वारा किया गया अपमान बिल्कुल सहन नहीं करेंगे और जितनी हो मेहनत हो सकेगी उतनी मेहनत करके सम्मान की सूखी रोटी खाकर गुजारा करेंगे। 

        वे लोग अपने कपड़े और अपनी जमा पूंजी जो उनके पास थी लेकर घर से निकल ग ए,अब समस्या यह थी की जाए कहां,,कहां पर रहे? उनकी जमा पूंजी भी ज्यादा नहीं थी। 

 वहां से कुछ आधे घंटे की दूरी पर एक इलाका था जहांगीरपुरी। वहां गरीब और मध्यम वर्ग के लोग मिलकर रहते थे वहां पर उन्होंने एक कमरा किराए पर ले लिया जो कि बहुत ही  हाथ पैर जोड़ने के बाद के उन्हें मुश्किल से मिला। कुछ दिनों बाद पैसे तेजी से खत्म होने शुरू हो गए। जो लोग किराए के घर में रहते हैं उनके लिए पहली तारीख बहुत जल्दी आ जाती है और किराया देना भारी लगने लगता है। तब कल्याणी ने अपने पति से पूछा-” सुनो जी, अगर मैं घर का खाना जैसे राजमा चावल या कढ़ी चावल छोले चावल वगैरह बनाकर दूं तो क्या आप बेच पाओगे? 

 गिरधर -” हां बेच तो लूंगा लेकिन तू इस उम्र में अब सुबह-सुबह उठकर इतना खाना बन सकेगी? ” 

       कल्याणी -” हां हां क्यों नहीं, आप बस मुझे थोड़े बर्तन और खाने का सामान लाकर दो। हमें कौन सा महल बनाना है सम्मान की सूखी रोटी ही तो खानी है बस। अपने स्कूटर पर जाकर  बेच देना। ” 

    तीन-चार दिन में सारा इंतजाम हो गया। कल्याणी ने कढी चावल बनाए और गिरधर जी निकल गए उन्हें बेचने। 8 10 दिन उनका थोड़ा नुकसान भी हुआ धीरे-धीरे लोगों को पता लगने लगा कि इनका खाना बहुत स्वादिष्ट होता है। 

 फिर उनकी अच्छी कमाई होने लगी। 12:00 से दोपहर के 2:00 तक सारा खान बिक जाता था। फिर एक बार इत्तेफाक से एक वकील साहब उनके यहां खाना खाने आए और बातों बातों में वैसे ही पूछ लिया आप यहां पर खाना क्यों बेच रहे हो अंकल आपकी तो अपनी दुकान थी ना चाट पापड़ी की।” 

     गिरधर जी हैरान हो गए और उनसे पूछने लगे कि “आप कौन हो बेटा मुझे कैसे पहचानते हो?”  

    उस वकील ने कहा-” अंकल लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं आशीष का दोस्त नवल हूं। आशीष कैसा है शादी-वादी हो गई या नहीं। ” 

 तब गिरधर जी की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने नवल को घर ले जाकर पूरी बात बताई। 

       नवल ने कहा-” क्या आपको अपना घर वापस चाहिए? ” 

 गिरधर -” क्या ऐसा हो सकता है पर हमने तो धोखे में आकर साइन कर दी थी। ” 

 नवल-” हां हो सकता है, यदि ऐसी परिस्थिति हो कि बच्चे माता-पिता को अकेला छोड़ देते हैं और उनकी देखभाल नहीं करते तो माता-पिता संपत्ति वापस ले सकते हैं या फिर गिफ्ट डीड मैं निहित शर्तों का पालन बच्चे ना कर रहे हो और उल्लंघन कर रहे हो। लेकिन केस करने के लिए आपको और आंटी जी को मन पक्का और कठोर करना पड़ेगा। आप भावुक होकर फैसला नहीं लेंगे,तभी मैं कुछ कर पाऊंगा। ” 

 दोनों ने कहा ठीक है। नवल ने आशीष पर केस किया और वह माता-पिता की देखभाल नहीं कर रहा है इसके बहुत सारे सबूत भी पेश किया हालांकि साक्षी ने अपनी चतुराई दिखाने और मक्खन बाजी करने की कोशिश की लेकिन उसकी एक न चली। 

        गिरधर और कल्याणी को उनके घर वापस मिल गया और कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया कि आशीष हर महीने माता-पिता को घर खर्च भी देगा। 

    अब आशीष और साक्षी को समझ में आ रहा था कि किराए के घर में रहना क्या होता है, आशीष ने साक्षी को बुरी तरह लताड़ा, और कहा कि आगे से अपनी गंदी जुबान बंद रखना, वरना दुकान भी हाथ से चली जाएगी और हमें भीख मांगनी पड़ेगी। ” 

      अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!