आपको बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए” – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“रश्मि मेरे कपड़े क्यों नहीं निकाले अभी तक ।ऑफिस में अक्सर देर से पहुंचता हूं एक तो सड़क पर ट्रैफिक की मारा मारी ऊपर से तुम कोई काम वक्त पर करती नहीं हो”राजेश ने घर सिर पर उठा लिया था ये एक दिन की बात नहीं थी।सुबह की सैर के बाद लाॅन में बैठे सास – ससुर जी को चाय, टोस्ट, गरम पानी, ठंडा पानी और दवाईयां…

फिर जा कर खुद के लिए एक कप चाय बनाना और ऑफिस के लिए तैयार होना।घर में सदस्य चार थे पर मजाल है कोई हिल कर दे… अगर हिलती थी तो सबकी जुबान और संतुष्ट तो कोई कभी था ही नहीं।

रश्मि चकरघिन्नी की तरह यहां से वहां सबके आदेश का पालन करती रहती  मुस्कुराते हुए लेकिन ताने की बौछार कहीं ना कहीं उसके दिल में चुभती थी। ऑफिस से जब लौट कर आती तो सबकी चाय की फरमाइश हो जाती। अरे! “बहू हम तो कबसे इंतजार कर रहे थे तुम्हारे साथ चाय पीने का।” ” जी मां जी” चाय का पानी चढ़ा कर फिर कपड़े बदलने जाती।

” मेरे नसीब में तो ऐसा लिखा ही नहीं की कोई एक कप चाय भी दे दे ” रश्मि बुदबुदाती हुई रसोई घर की तरह गई। बहू! ” खाने में क्या बनना है देख लेना” मां जी तो जैसे बहू नहीं कामवाली का ही इंतजार करती रहती थी। दिनभर में कभी ऐसा नहीं होता कि घर आओ तो कुछ काम खत्म मिले “रश्मि उदास हो गई थी क्योंकि ऑफिस में भी तो

काम होता है वहां आराम करने थोड़े ही जाती है।

कहते हैं ना किसी भी चीज की अति बुरी होती है।  घर में सारी जिम्मेदारी सिर्फ रश्मि की ही थी।मजाल है की कोई मदद कर दे। मशीन बना कर रख दिया था उसे। एक दिन रश्मि के सिर में दर्द था और उसको आज कुछ भी करने का मन नहीं था क्योंकि देर रात तक आफिस के प्रेजेंटेशन की तैयारी कर रही थी।

सुबह मुर्गे की बांग नहीं बल्कि लोगों की फरमाइशों से नीद खुलती थी। किसी तरह उठ कर आई तो मां जी चालू हो गई। अरे!” बहू आज देर तक सोती रह गई। तुम्हारे पापा जी तो गर्म पानी का इंतजार ही कर रहे थे।” मां जी देर रात तक आफिस का काम कर रही थी नींद नहीं खुली” रश्मि ने धैर्य से काम लेते हुए जबाब दिया।

“बहू आफिस का काम आफिस में ही निपटाया करो घर में लाने की जरूरत नहीं है । तुम ही नौकरी नहीं करती हो अकेली और हां घर की ज़िम्मेदारी सबसे पहले नौकरी बाद में, एक साथ दोनों काम नहीं कर पा रही हो तो नौकरी छोड़ दो। आखिर ऐसे पैसे का क्या करना जहां सास – ससुर की सेवा में कमी आ जाए।” रश्मि आपा अब खो चुकी थी क्योंकि एक तो सिर दर्द,उस पर घर का काम साथ में तानाकशी।

मां जी! ” आप ने मुझे बहू बनाकर बहुत बड़ी ग़लती की क्यों कि आपको मैं इंसान नजर ही नहीं आती हूं जैसे कोई मशीन हूं मैं। सुबह उठते ही हर किसी की फरमाइश पूरी करते – करते कितनी बार बिना नाश्ते के आफिस जाती हूं आप सबको पता है। सही मायने में आपको ‘ बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए था ‘ क्यों कि इंसान तो इंसान है उसे भी कभी – कभी आराम करने का दिल करता होगा। उसकी भी

तबियत खराब हो सकती है लेकिन नहीं ये बात आप सभी कभी नहीं समझ सकते हैं। अगर अपने छोटे – छोटे काम की जिम्मेदारी आप सभी उठा लें तो मैं भी सबके साथ वक्त बिता सकतीं हूं। कभी मेरे लिए किसी ने एक कप बनाई है? मैं घर की सदस्य नहीं हूं? सिर्फ काम करने के लिए आई हूं यहां।रही बात नौकरी की तो पैसा रुपया तो जिंदगी के लिए मायने रखता ही है साथ ही मैंने इतनी पढ़ाई लिखाई करके अपनी

मेहनत और बलबूते पर ये नौकरी हासिल की है इसे तो कभी नहीं छोडूंगी…ये बात तो आप लोग अपने दिमाग से निकाल दीजिए। मैंने अपनी जिम्मेदारियों से कभी मुंह नहीं मोड़ा है।इस घर में ‘ वन मैन शो ‘ चलता है। मैं ये नहीं कह रहीं हूं की आप घर का काम करें,पर अपने – अपने काम करके मेरी मदद तो कर सकतीं हैं। आपने ने राजेश को कभी भी कोई काम नहीं सिखाया है।

वो अपना काम खुद भी कर सकते हैं। मैं नौकरी के साथ – साथ जब सब संभाल सकती हूं तो वो क्यों नहीं” रश्मि ने आज मन की सारी भड़ास निकाल दी थी। कहते हैं ना  की झगड़े बड़ी बातों पर नहीं होते हैं, हमेशा छोटी -छोटी बातें ही वजह होती हैं और मन में भरे गुस्से का गुबार बन कर ही फटती हैं।

किसी को अंदाजा नहीं था कि रश्मि ऐसा जबाब देगी और घर में सन्नाटा पसर गया था क्योंकि एक भी बात गलत नहीं थी।

राजेश जल्दी से पानी का गिलास लाया और रश्मि को बिठाते हुए बोला कि,” तुमने बताया नहीं की तुम्हारे सिर में दर्द है।” ” क्या फर्क पड़ता है राजेश…. तुम लोगों के लिए मैं इंसान नहीं रोबोट जो हूं…आप सब ने आदेश दिया और मैं हाज़िर। हर बात बोल कर नहीं समझाई जाती है। तुम नौकरी करते हो तो मैं भी तो करती हूं…

सच बताना की तुमने कभी मदद की मेरी और मां जी अभी स्वस्थ हैं तो छोटे – मोटे अपने काम तो कर ही सकतीं हैं ना…. रश्मि को आज अपनी बात रखने से कोई रोक नहीं पाया था। रश्मि!” मुझे माफ कर दो…

बचपन से सारे काम मां करती थी बाद में तुम तो मेरी आदत ही नहीं थी… लेकिन आज मुझे अहसास हुआ कि हम सब गलत हैं और अब से हम सब मिलकर काम करेंगे और एक और कामवाली रख देता हूं जिससे तुम को भी आराम मिल जाएगा।”

दूसरे दिन आफिस से आई तो चाय बनी मिली… मां जी ने कहा बहू चाय ले लो… मैं भी तुम्हारी गुनहगार हूं क्योंकि हमने भी तुम्हारे आते ही सब कुछ तुम पर छोड़ दिया। हमें समझना चाहिए था की तुम पर ज्यादा काम का भार है। आजकल की लड़कियों को घर – बाहर दोनों देखना पड़ता है। मेरी सोच बहुत गलत थी बेटा…. उम्मीद है कि अपनी मां जी को समझने की कोशिश करोगी।अब से काम की जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी नहीं है हम सबकी भी है।”

रश्मि मां जी के गले लग कर रो पड़ी… मां!”  जी कल मैंने कुछ ज्यादा बोला हो तो माफ कर दीजिएगा…पर मैं गलत नहीं थी।” जिस घर में लोग एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करेंगे वो घर स्वर्ग से कम नहीं होता है। आपसी सूझ – बूझ से घर की गाड़ी चलाई जाती है क्योंकि एक पहिए से गाड़ी नहीं चलती दोनों तरफ बराबर होना जरूरी है तभी गाड़ी अच्छी रफ़्तार से दौड़ती है।

 

                                  प्रतिमा श्रीवास्तव

                                   नोएडा यूपी

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