दिल बोलता है – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 आज जब मिस्टर अनिल सुबह की सैर करके पार्क से वापस घर आए तो उन्हें यह देखकर बहुत हैरानी हुई कि उनकी पत्नी शुभ्रा अभी तक सो रही है। वैसे तो वह उसे सोता हुआ देख कर एकदम चिढ़ जाते थे, लेकिन आज उन्होंने सोचा कि चलो थोड़ा सोने देता हूं थोड़ी देर बाद जगा दूंगा। 

 वह स्वयं 75 वर्ष के हो चुके थे और उनकी पत्नी शुभ्रा 66 वर्ष की थी। उनका इकलौता दत्तक पुत्र प्रणव विदेश में नौकरी करता था। प्रणव बहुत ही आज्ञाकारी और लायक बेटा था। 

     अनिल बहुत ही नियम कानून मानने वाले और हुकुम चलाने वाले टाइप के व्यक्ति थे। उन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आता था। सामने वाले का अपमान करने में वह 2 सेकंड भी नहीं लगाते थे। दूसरों की गलतियां निकालना उन्हें अच्छा लगता था और वह अपनी गलती कभी नहीं मानते थे बल्कि कुछ गलत काम हो जाए तो वह उसका दोष भी दूसरों के ऊपर मढ देते थे। जबकि उनकी पत्नी शुभ्रा का व्यवहार विनम्र था। 

      अब अनिल नहा धोकर पूजा कर चुके थे। उन्होंने देखा कि शुभ्रा अभी तक जगी नहीं है। वह उसे जगाने लगे पर वह नहीं जागी। उन्हें बहुत घबराहट होने लगी उन्होंने तुरंत डॉक्टर साहब को बुलाया डॉक्टर साहब ने बताया कि 2 घंटे पहले ही आपकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है। डॉक्टर साहब चले गए। 

   अब अनिल जी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं और क्या नहीं। फिर उन्होंने सोचा की सबसे पहले अपने बेटे को फोन करता हूं। वह अपनी मृत  पत्नी के शरीर के पास से उठने लगे तो उन्हें ऐसा लगा कि कोई बोल रहा है और किसी के रोने और बोलने की आवाज आ रही है। 

   फिर उन्हें लगा कि शायद मेरा भ्रम है क्योंकि इस समय तो घर में सिर्फ मैं हूं। वह इधर-उधर देखने लगे फिर अचानक उन्हें लगा कि यह आवाज तो शुभ्रा के शरीर की तरफ से आ रही है वह वापस उसके पास बैठ गए और ध्यान से कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगे। 

 शुभ्रा के मृत शरीर के दिल से कुछ आवाज़ आ रही थी। कुछ पल के लिए तो अनिल को सिर्फ कुछ अजीब सा शोर महसूस हुआ, फिर जब उन्होंने ध्यान से सुना तो उन्हें एक आवाज सुनाई दी, वह यह सुनकर हैरान रह गए कि यह आवाज तो उनकी खुद की थी जो शुभ्रा के दिल से आ रही थी। उनकी आवाज कह रही थी” तू क्या अपने आप को हूर परी समझती है, मैं तेरे लिए मरता हूं क्या, मैंने तुझे आज तक पाया ही क्या है, आज तक एक औलाद तक तो दे ना सकी। ” 

 दूसरी तरफ शुभ्रा की आवाज- दिल कह रहा था, मैंने जानबूझकर ऐसा तो नहीं किया ना कि औलाद ना हो। किस्मत में यही लिखा था तो मैं क्या करूं। आप तो कहते हो कि आप मुझे प्यार करते हो पर पता नहीं क्यों मुझे आपका प्यार कभी महसूस ही नहीं हुआ। क्या आपने कभी सोचा कि मैं घर पर बिना सजे संवरे बेकार से पुराने कपड़े पहने बैठी रहती हूं,

तो ऐसा क्यों, क्योंकि मेरा मन ही नहीं करता। आपने हमेशा मेरे सफेद बाल और मेरे शरीर की बीमारी या कभी, मोटापा, इन बातों पर ही डिस्कस किया है क्या मेरे अंदर कोई भी खूबी और कोई गुण नहीं है। दूसरे पतियों को देखती हूं तो अपनी पत्नी की जरा सी खूबी होने पर भी बढ़-चढ़कर तारीफ करते हैं, उनकी पत्नियों खुश रहकर सुंदर दिखती हैं, लेकिन जब मन के अंदर खुशी ना हो तो बाहर से इंसान कैसे सुंदर लग सकता है। ”  

 फिर कुछ पल की शांति छा गई, फिर एक और आवाज सुनाई दी। 

 हालांकि यह एक छोटी बात है लेकिन इससे मुझे बहुत धक्का लगा था। एक रक्षाबंधन पर आपने कहा कि मेरी बहन आएगी और तू यहां नहीं होगी तो कैसा लगेगा। मैं यह सोचकर रुक गई कि आप सही कह रहे हो और अपनी राखी मैंने डाक से भिजवा दी। और जब रक्षाबंधन बीत गया तो आपने यह कहा कि मैंने तुझे जाने से कब रोका था, तू अपनी मर्जी से नहीं गई। एक तरीके से आपने मुझे रोका ही था और अब आप अपनी बात से पलट रहे थे इस बात का मुझे बेहद दुख हुआ। ” 

 और आप दूसरों के सामने हो या अकेले में हमेशा मेरा अपमान करते रहते हो छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करते हो गाली देते हो। और फिर कहते हो कि तू बुरा मत मना कर मैं ऐसा ही हूं। मैं यह पूछना चाहती हूं कि अगर आपके साथ कोई ऐसा व्यवहार करें और कहे कि मैं ऐसा ही हूं तो आपको कैसा लगेगा। ” 

 ऐसा लग रहा था कि शुभ्रा की मन की गांठे खुलती जा रही है। जो बातें वह जीते जी ना कह सकी अब वह बातें उसका दिल बोल रहा था। क्या दिल भी कभी बोलता है, जी हां,दिल बोलता है। 

    यह सब बातें सुन सुन कर मिस्टर अनिल परेशान हो गए और अचानक उनकी आंख खुल गई। तब उन्होंने चैन की सांस ली कि यह एक सपना था, दिल सच में थोड़ी ना बोलता है। 

 फिर उन्होंने सोचा कि अभी शुभ्रा को जगा  

कर पूरी बात बताऊंगा और उससे पूछूंगा कि यह बातें क्या सच में उसके दिल में है और जब वह शुभ्रा को जगाने के लिए गए तो देखा कि शुभ्रा सचमुच जा चुकी है। 

 और अबकी बार सचमुच दिल से एक आवाज आई” जुबान से दिए गए जख्म कभी नहीं भरते, और मैं इन जख्मों को लेकर जा रही हूं हमेशा के लिए। मैं जानती हूं आप मेरी चिंता करते हैं लेकिन ऐसी चिंता किस काम की। ” 

 अनिल जी फूट-फूट कर रो रहे थे। 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली 

#मन की गांठ

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