रीना और मीना दोनो बचपन की सहेलियां थी। साथ पढ़ती, साथ खेलती, खाना भी साथ ही होता। दोनों का ससुराल भी एक ही शहर में था। मैत्री का झरना अविरल बहता रहा।
रीना के पति रूचित गंभीर स्वभाव के थे। कर्मठ और इमानदार। आमदनी ठीक-ठाक थी। फुरसत के पलों में लिखना, पढना, दूरदर्शन पर कोई अच्छा सा धारावाहिक देखना उनकी दिनचर्या थी।मीना के पति वाचाल, मजाकिया, हंसमुख थे। बेइमानी रग-रग में बसी थी। उपर की कमाई का पैसा आता रहता। वे मानते,
“काला या गोरा… क्या ही फर्क पडता है। पैसा तो पैसा होता है। मेरी मीनू, तुम ऐश करो। खूब मजे करो।”
वे हमेशा अपनी मस्ती में जीते। दोस्तों के साथ घुमना-फिरना बहुत पसंद था उन्हें। कभी कभी पीना पिलाना भी।
रीना अपने पति के ऊबाऊ जीवन चर्या से ताल-मेल न बिठा पाती। मीना की खिलखिलाती छवियां फेसबुक पर देख खिझती रहती थी।
धीरे-धीरे रीना को मीना के सौभाग्य से जलन होने लगी।
“कितना आनंद ले रही है जीवन का। काश, मैं भी मनचली तितली सी घुमती। मजे करती।”
” ये इमानदार संत हृदय साथी मेरे ही पल्ले क्यों पडा है।” मन ही मन बुदबुदाती।
रीना का उदास चेहरा देख मीना को आनंद मिलता। रीना के पति उच्च पदस्थ थे। मीना के पति की साधारण नौकरी थी। उपर की कमाई न हो तो निभाना भी मुश्किल था।
मीना के मन में यह बात हमेशा चुभती रहती। रीना के पति का रुतबा, सम्मान देख उसे ईर्ष्या होती।
आज यह सुनहरा मौका मिलते ही उसने रीना को भरमाया, पट्टी पढ़ाई।
” कह देना अपने पति से, इतने में मेरा कुछ न होगा। थोडा बहुत इधर-उधर से भी कमाना सीखो।”
” जिद कर खरीद लेना आभूषण, बडा सा घर। लोन ले लेंगे। चुकाते रहेंगे।”
अब रीना कोई मौका न छोडती पति महाशय से लडने झगड़ने का। पैसे के लिए जोर देती रहती।
पैसा… पैसा… पैसा… लालच बढ़ता गया और आज रीना के पति रूचित पर कंपनी की कारवाई पूरी होगी। रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गये है वे।
मीना ने पट्टी पढाई, लेकिन मुझे तो अपने दिमाग से सोचना चाहिए था न। मेरी तो मति मारी गयी थी, जो देवता से जीवन साथी पर कलंक लगवा दिया। दिशा भूल कैसे हो गयी मेरी….
रो-रोकर बुरा हाल था रीना का। मीना मन ही मन खुश हो रही थी।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र
# पट्टी पढ़ाना