बुरा वक्त – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

हमारा बुरा वक्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है देखो ना आज ही स्कूल से प्रिंसिपल का फोन आया था मुझसे पूछ रही थी कि निशि अब तुम कब ज्वाइन करोगी? अच्छा! हंसते हुए विनय ने पूछा फिर तुमने क्या कहा? अरे कैसे ज्वाइन कर सकती हूं? अब तो मेरा यही काम कितना ज्यादा बढ़ चुका है। हां मेरे ऑफिस ज्वाइन करने से अब सारा काम तुमको अकेले ही करना पड़ता है ना ?अरे नहीं, रात वाला सिक्योरिटी गार्ड सवेरे मेरे टिफिन को हर जगह पहुंचा देता है। अब तो सोसाइटी में कामवालियां भी आने लगी है शांताबाई की बेटी को मैंने सवेरे से शाम तक के लिए बुला लिया है। तुम निश्चिंत रहो  कहते हुए निशि ने विनय को चाय का प्याला पकड़ाया।

      वास्तव में ही कितना बुरा समय था वह कोरोना वाला टाइम। निशि और विनय दोनों दिल्ली में ही रहते थे। हालांकि दोनों का घर करोल बाग में ही था परंतु इन दोनों की जाति अलग होने के कारण दोनों के माता-पिता उनके विवाह को सहमति नहीं दे रहे थे। विनय का ख्याल था कि उनके गांव के जाट परिवार में पंजाबी दिल्ली की लड़की एडजस्ट नहीं कर पाएगी और ऐसा ही ख्याल निशि की मम्मी का भी था परंतु दोनों अपनी ज़िद पर अड़े थे और विवाह करने के उपरांत विनय को बैंगलोर में नौकरी मिल गई थी और उसने वहां ही एक छोटा सा अपार्टमेंट लेकर अपनी गृहस्थी बसा ली थी। हालांकि दोनों के माता-पिता ने उनकी आर्थिक रूप से कोई सहायता नहीं करी थी। ना तो निशि को कोई दहेज मिला और ना ही विनय बैंगलोर आते हुए घर का कोई सामान लेकर आया। 

     उनके अपार्टमेंट के पास ही विनय की कंपनी थी जहां पर वह कंप्यूटर ऑपरेटर लगा हुआ था और नजदीक ही एक प्राइमरी स्कूल में निशि ने भी नर्सरी क्लास को संभालने की स्कूल में नौकरी कर ली थी। धीरे-धीरे वह घर में जरूरत का सामान भी लाते जा रहे थे। निशि बेहद सुघड़ थी और विनय प्रत्येक काम में निशि की सहायता किया करता था। 

       अचानक एक अनहोनी हुई। कोरोना के केसेस बढ़ने लगे स्कूल, कार्यालय सब बंद हो गए। कंपनियों के मालिकों ने  बहुत से स्टाफ को निकाल दिया। निशि और विनय भी अब घर में बैठे यही सोच रहे थे कि बिना तनख्वाह के कैसे अपना काम चलाएंगे? घर का किराया भी देना है। निशि के पास केवल एक चेन ही थी जो कि उसकी माताजी ने दी थी। एक दो टॉप्स और अंगूठियों को यदि बेच भी दे तो भी कितने दिन चला पाएंगे? मंगलसूत्र तो नहीं बेचा जा सकता था।

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इस समय तो कोई नई नौकरी मिलने की उम्मीद भी नहीं थी। वह दोनों परेशान बैठे ही थे कि तभी इस सोसाइटी में पीछे रहने वाले विनय की कंपनी के मैनेजर बत्रा जी का का फोन आया कि हमारे बच्चे तो मुंबई में रहते हैं और वहां से उनका अभी आना संभव न हो सकेगा हम दोनों को कोरोना हो गया है अगर तुम्हें परेशानी ना हो तो तुम दवाइयां और हमारे लिए खाना भिजवा सकते हो? मैंने कुछ पैसे तुमको ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिए हैं? अंधा क्या चाहे दो आंखें? विनय ने जब उनको सुबह शाम खाना भिजवाना शुरू करा

तो बैंगलोर में ही रहने वाले इस सोसाइटी में कुछ आईटी के बच्चे जो कि ऑनलाइन खाना मंगवाते थे या कि अपनी कंपनी में खाते थे उन्होंने भी विनय से घर का खाना भेजने का अनुरोध किया। निशि और विनय दोनों ने ऐसे ही सबको टिफिन देने का काम शुरू करा। सोसायटी के ग्रुप में भी उसने लिखवा दिया था कि वह खाना सप्लाई कर सकता है और उसके पास प्रत्येक दिन बहुत से फोन आने लगे।  दोनों टाइम विनय ही सबको सोसाइटी में खाना पहुंचा देता था।

निशि का खाना ही इतना अच्छा होता था की डिमांड बढ़ती गई। इनका आर्थिक संकट तो दूर हुआ ही इसके विपरीत सबने इन्हें दुआएं भी बहुत दी इन दोनों का मानना था कि शायद सब की दुआओं के परिणाम स्वरूप ही हमें कोरोना नहीं हुआ। 

     समय बदला अब सब कार्यालय खुलने लगे और विनय को भी इस कार्यालय में वापस कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर बुला लिया गया। निशि अब भी टिफिन का ही काम करती है। हालांकि उसे स्कूल में दोबारा से ज्वाइन करने का ऑफर तो मिला था परंतु उसने ज्वाइन नहीं किया। आज उनकी टिफिन सर्विस बहुत अच्छी चल रही है और अब निशि ने  डिलीवरी बॉय भी रख रखे हैं। इन दोनों का प्रेम और सहयोग देखकर दोनों के घर वाले भी अब उनसे इतने नाराज नहीं है अब वह अपने घर दिल्ली में  भी गए थे। सच है कई बार हमारा बुरा वक्त भी जीवन को नई दिशा दे जाता है।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

कई बार हमारा बुरा वक्त भी जीवन को नई दिशा दे जाता है। प्रतियोगिता के अंतर्गत।

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