स्नेह का बंधन – शीतल भार्गव : Moral Stories in Hindi

“ अरी ओ मनहूस कहाँ मर गई , बहरी हो गई क्या, इतना सारा काम पड़ा है ये काम तेरा बाप आकर करेगा । शुभी अपने कमरे में सब सुन रही थी अपनी सास के ताने, ये सब उसके लिए कोई नई बात नहीं थी वह आंसू बहाकर रह जाती थी यह सोचकर की कभी तो सासू माँ का दिल पिघल जाएगा ।

आज शुभी की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब थी इसलिये वह बिस्तर से उठ ही नहीं पा रही थी , बुखार की दवा लेकर वह लेट गई और अपने अतीत के बारे में सोचने लगी । अपने माँ – पापा की लाड़ली थी वह और पढ़ाई के साथ- साथ खेलकूद में भी आगे रहती थी, एक बार उसके कॉलेज में प्रोग्राम था तो उसने भी हिस्सा लिया ।

उस प्रोग्राम में आकाश के पिता भी आये थे उनको शुभी अपने आकाश के लिए बहुत पसंद आई , उन्होंने उसके माता- पिता से मिलने पहुँच गए और उसका हाथ माँग लिया , शुभी के माता- पिता ने भी आकाश और उसके परिवार के बारे में जानकारी लेकर ये रिश्ता पक्का कर दिया । “ चट मँगनी और पट ब्याह “ हो गया , बड़ी धूमधाम से शुभी का गृह प्रवेश हुआ ।

शुभी के ससुर जी बहुत समझदार थे , और उसकी सास तो इस शादी से पहले ही नाखुश थी वह अपने बेटे का विवाह एक मॉडर्न लड़की से करवाना चाहती थी लेकिन आकाश के पापा के सामने उनकी एक ना चली । आकाश बहुत ही समझदार और सुलझा हुआ इंसान था ।उसे भी शुभी पसंद थी ,

उसने शुभी को हर हाल में साथ देने का वचन दिया था , उनकी गृहस्थी अच्छी चल रही थी , बस उसकी सास हमेशा उसे परेशान करती रहती थी । समय निकलता रहा और एक दिन आकाश के पिताजी को हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया , समय बीतता गया , शुभी अभी तक माँ नहीं बन पाई वह अंदर ही अंदर घुट रही थी

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लेकिन आकाश उसे हमेशा हिम्मत देता रहता था हमेशा उसका ख़याल रखता था और दूसरी तरफ़ उसकी सास ने उसका जीना मुश्किल कर दिया था । अब तो हर कोई उसे ताना देता रहता था । उसके मोहल्ले में एक औरत हर रोज सब्जी बेचने आती थी उसके तीन बेटियाँ थी एक सबसे छोटी बेटी थी जिसको वह अपने साथ लाती थी ,

शुभी रोज उसी से सब्ज़ियाँ लेती थी तो थोड़ी बहुत बात हो जाती थी उसके लिए खास था तो बस सब्ज़ी वाली की बेटी शालू से बात करना उससे बात करके उसे एक अजीब सा सुकून मिलता था उसकी तोतली भाषा में प्यारी प्यारी बातें उसे बहुत अच्छी लगती थी ,

साल भर गुजर गया शुभी का शालू से एक प्यारा सा “ स्नेह का बंधन “ बन गया , एक दिन भी वो ना दिखती तो शुभी परेशान हो जाती शालू की माँ को भी कोई एतराज नहीं था शुभी अपनी सास से छुप-छुपकर शालू को खिलौने और खाने के लिए सामान देती रहती थी । आकाश को भी शालू के साथ खेलना अच्छा लगता था ।

एक दो दिन तक शालू नज़र नहीं आई तो शुभी ने उसकी माँ से पूछ ही लिया कि शालू कैसे नहीं आ रही तो उसकी माँ ने बताया कि उसे बुखार है , इतना सुनते ही वो बहुत परेशान हो गई और शाम को आकाश के ऑफिस से आते ही शालू से मिलने चली गई शालू भी उनको देखते ही चहक गई । घर आते ही शुभी की सास चिल्लाने लगी

और शुभी को भला- बुरा कहने लगी और उसे मनहूस कहते हुए उसे ताने देने लगी । रात भर उसे नींद नहीं आई सुबह उठकर उसने एक फैसला लिया और नहा कर भगवान की पूजा करने लगी उसके बाद उसने आकाश और अपनी सासू माँ को एक साथ बुलाया और अपना फैसला बताया , उसकी सास बहुत नाराज हुई लेकिन आकाश ने उसका पूरा साथ दिया

फिर वो दोनों दवा और फल लेकर शालू के घर पहुँच गए और उसके माता- पिता से कहा कि हम शालू को गोद लेना चाहते हैं , पहले तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया फिर शुभी और आकाश ने समझाया कि वो उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते है और उसके उज्जवल भबिष्य के लिये भी सही है

और शालू के साथ उसकी दोनों बड़ी बेटियों की भी सही ढंग से परवरिश हो पाएगी और कौन सा हम उसे तुमसे दूर ले जा रहे है यहीं रहेगी वो तुम जब चाहो उससे मिलने आ सकते हो , तुम्हारी एक हाँ से मेरी सूनी गोद भर जाएगी …. ये कहते कहते उसकी आँखों से अविरल आँसू वहे जा रहे थे

मानो कह रहे होंकि शालू को हमारी झोली में डाल दो । शालू की माँ के भले ही तीन लड़कियाँ थी फिर भी वो उन पर जान छिड़कती थी , लेकिन वो शुभी और आकाश को बरसों से जानती थी और उसके सुनहरे भविष्य की ख़ातिर वो मान गई । आख़िर शुभी और शालू के “ स्नेह का बंधन “ और भी मजबूत बंधन बन गया और उसके आँगन में भी हरियाली हो गई उसके सूने जीवन में जो कमी थी वो शालू के आने से पूरी हो गई ॥॥ 

 

शीतल भार्गव 

छबड़ा जिला बारा राजस्थान

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