दीदी , आप इतनी देर से क्या ढूँढ रही है इस अलमारी में?
पूरा घंटा बर्बाद हो गया…. मैंने पूरी अलमारी तीन-तीन बार छान डाली पर साड़ी नहीं मिली । माँ की एक पिंक साड़ी ढूँढ रही हूँ , नानी की निशानी है ।
पिंक साड़ी? सफ़ेद मोतियों वाली ? जो माँ के पास नानी की याद स्वरुप रखी थी….पर आप उस साड़ी को क्यूँ ढूँढ रही है?
ये कैसा सवाल है कि मैं उस साड़ी को क्यूँ ढूँढ रही हूँ?
नहीं-नहीं दीदी, मेरे कहने का कोई ऐसा- वैसा मतलब नहीं था । मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था । दरअसल आज सुबह माँ ने वह अपनी पिंक साड़ी मुझे दी है, जो उनकी माँ की निशानी थी ।
देवरानी की बात सुनकर देविका सन्न रह गई क्योंकि दो दिन पहले ही सास ने उससे कहा था —-
देवी , मेरी अलमारी में एक पिंक साड़ी है …. सफ़ेद मोतियों के महीन काम की …. चाबी लेकर वो साड़ी अलमारी से निकाल लेना , तेरी नानी की निशानी है । उस साड़ी की असली हक़दार तुम ही हो …. मैं तो इंतज़ार कर रही थी कि जब दोनों भाइयों की शादी हो जाएगी …. उसके बाद ही यह साड़ी दूँगी । बेटा , यह केवल साड़ी नहीं, माँ का आशीर्वाद बसा है इसमें ।
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अंजलि की बात सुनकर देविका बिना कुछ कहे वहाँ से चली गई । जब से देवर की शादी हुई थी तभी से ही उसने महसूस किया था कि सासूमाँ उसके मुँह पर उसकी बड़ाई करती और देवरानी की बुराई । पहले माँ चाची , मामी इत्यादि की बुराइयाँ करती थी । पर अब तो घर की घर में दोनों बहुओं में लड़ाई करवाकर छोड़ेंगी ।
देविका का दिल चाह रहा था कि अजय को बता दे पर उसे ख़्याल आया कि अजय को बताकर होगा भी क्या ? उसे ग़ुस्सा आएगा और फिर देविका को पति की मिन्नत करनी पड़ेगी कि ग़ुस्सा थूक दे ।
उसे याद आया कि जिस दिन अखिल की सगाई अंजलि के साथ हुई थी और वह अंजलि के साथ स्टेज पर बैठी आराम से गपशप कर रही थी, उसे रिश्तेदारों से मिलवाकर हँसी- मज़ाक़ कर रही थी, माँ ने इशारे से उसे बुलाकर कहा था—-
देविका, अगर अभी से इसके इतने क़रीब जाओगी तो सिर पर बैठ जाएगी । ज़्यादा रास्ता मत दो नई बहू को…..
पर माँ…. हम दोनों बहनों की तरह भी तो रह सकती हैं ना ?
रह लेना , कौन मना करता है पर इसको भी तो परख लो कि यह बहन बनकर रहना चाहती है कि देवरानी ।
सास की यह बात देविका के गले से नीचे नहीं उतरी कि परखने के चक्कर में पहले दूरियाँ बढ़ा दो और फिर नज़दीक लाने की कोशिश करो । पर देविका ने कुछ नहीं कहा क्योंकि शादी के पाँच-छह सालों में वह अच्छी तरह समझ चुकी थी कि माँ अपना पलड़ा ही ऊपर रखेंगी ।
कई बार चाची सास के साथ घुलते-मिलते देख भी अक्सर सास देविका को कहती थी —-
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देवी ! क्या कह रही थी तेरी चाची ….. इसकी बातों में मत आ जाना । मीठी छुरी है , सारी बात उगलवाकर तुझे फँसा देंगी । ज़्यादा बात करने की ज़रूरत नहीं है ।
जबकि सच्चाई यह थी कि चाची सास जब भी बात करती थी तो हमेशा घरेलू राजनीति से दूर रहने का प्रयास करती …. उनकी हल्की-फुल्की बातों से देविका फ़्रेश हो जाती थी ।
पिछले हफ़्ते की ही बात है कि वह बाज़ार जाने लगी तो अंजलि ने कहा—
दीदी, बाहर तेज गर्मी है । शाम को चली जाना या ऐसा करेंगे, हम दोनों ही चल पड़ेंगे …. फटाफट मिलकर ख़रीद लेंगे ।
देविका अंजलि की बात सुनकर रुक गई और उसे मन ही मन ख़ुशी भी हुई कि अंजलि नए रिश्तों को अपना रही है… सहेजना सीख रही है पर उसकी ख़ुशी तब छूमंतर हो गई जब उसने अंजलि के कमरे से सासू माँ की फुसफुसाती आवाज़ सुनी —-
अंजलि बेटा! अच्छी बात है कि तुम जेठानी का ख़्याल रखती हो पर देविका को अपने जीवन में दख़लंदाज़ी पसंद नहीं है । जाने देती उसको …. अब वो तुम्हारे सामने कुछ नहीं ख़रीदेगी और दो दिन बाद अकेली जाकर अपना सामान ख़रीदेगी ।
देविका को सास की यह बात बड़ी अटपटी लगी । एक बार तो सोचा कि अभी पूछ लूँ पर वह चुप रही , वह चाहकर भी मुँह नहीं खोल पाई । पर बहुत याद करने पर भी उसे याद नहीं आया कि उसने कब अपने लिए बिना माँ को बताए कुछ ख़रीदा हो ।
देविका पिछले दिनों की घटनाओं के बारे में सोचती रही । अंत में , उसने निश्चय किया कि बड़ी बहू के नाते उसकी ज़िम्मेदारी है कि माँ को एक बार उनके शब्दों का अहसास कराए …..क्योंकि कई बार कहने वाले का मन तो साफ़ होता है पर उसे शब्दों का सही चयन करना नहीं आता ।और अगर माँ जानबूझकर उन दोनों के बीच नज़दीकी नहीं चाहती तो बात करने पर शायद वे सँभल जाएँ । देविका ने फ़ैसला किया कि सही मौक़ा देखकर अंजलि की अनुपस्थिति में वह माँ से बात करेंगी ।
एक दिन अंजलि और अखिल अपने किसी दोस्त के बेटे की जन्मदिन की पार्टी में गए थे और अजय दफ़्तर के काम से बाहर , तो देविका ने सोचा कि इससे बढ़िया मौक़ा नहीं मिलेगा । वह रात के खाने का काम निपटा कर और बच्चों को सुलाकर , दूध देने के लिए सास के कमरे में गई । आदत के अनुसार सास ने कहा —-
देख लिया तूने …. इसलिए मैं कहती हूँ कि अंजलि के साथ ज़्यादा घुलने- मिलने की ज़रूरत नहीं…. अरे अखिल चला जाता पार्टी में …पर नहीं…. इसे तो डर ही नहीं किसी का । बताओ … तू आज तक नहीं गई कभी इस तरह ….
माँ, कोई बात नहीं अगर चली गई । दोनों साथ गए हैं और जाना भी चाहिए । एक बात कहूँ , घर टूटने पर हर बार बहू-बेटे को ही क्यों दोष दिया जाता है जबकि दूसरे लोग और परिस्थितियाँ भी इसका कारण हो सकती हैं । माँ…. कल को अगर मैं अजय के साथ कहीं जाऊँगी तो क्या आप अंजलि को यही सब कहेंगी जो उसके बारे में कह रही है ?
ना ना देविका, मैं क्यों तेरे बारे में कुछ कहूँगी ? तेरी शादी को सालों हो चुके और उसे आए साल भर भी नहीं हुआ….
माँ… बात दिन , महीने या साल की नहीं है । आप इस घर की धुरी हैं । कही गई बात एक-दो दिन आगे-पीछे खुल ही जाती है इसलिए आप ना तो मेरे सामने अंजलि की बात करें और ना ही अंजलि के सामने मेरी बात , परिवार के हित में यही ठीक रहेगा ।
सास का उतरा चेहरा देखकर देविका समझ गई कि माँ शायद उसका इशारा समझ गई हैं क्योंकि उस दिन के बाद सास ने देविका के सामने तो ना अंजलि के बारे में कुछ कहा और ना किसी और के । माँ ने अपनी आदत सुधारी या केवल देविका के सामने कहना छोड़ दिया, यह प्रश्न कई बार देविका के मन में आता था पर हर बार यह सोचकर अपने मन को तसल्ली देती थी कि उसने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया बाक़ी अंजलि या माँ जाने , क्योंकि हम खुद की ज़िम्मेदारी ले सकते हैं सबकी नहीं ।
हाँ….देविका ने एक बात महसूस की कि जब भी कोई निर्णय लेना होता तो वे अंजलि से कहती ——
बेटा , देविका से भी सलाह कर ले । वह तुझे छोटी बहन की तरह मानती है ।
करुणा मलिक
# घर टूटने पर आख़िर हर बार बहू-बेटे को ही दोष क्यों दिया जाता है ?
VM