रागिनी एक मध्यमवर्गी परिवार की लड़की थी।घर में माता पिता 4 भाई बहन एक प्यारा सा परिवार था।पिताजी राम चंद्र जी एक दुकान पर मुनीम का काम करते थे। रागिनी बारहवीं पास कर चुकी थी और कभी कभी दुकान पर खाना और दवाई देने अपने पिताजी को दुकान पर आती वही उसकी एक दो बार दुकान के मालिक धनसुख दास से मुलाकात हुई धनसुख को वो सीधी सादी बच्ची बहुत पसंद थी।उन
की बाजार में तीन और जेवरात की दुकानें थी। उनके घर में तीन लड़के थे।रतन,अजीत और राजन । रतन उनकी पहली पत्नी सीता देवी का बेटा था जो लाड प्यार से बिगड़ कर बुरी संगत में फंस गया था अजीत और राजन स्कूल में पढ़ते थे उनकी मां थी शांति देवी जो धनसुख दास की दूसरी पत्नी थीं जिसे सिर्फ
अपने बेटो से मतलब था इसलिए धनसुख दास चाहते थे कि उसकी शादी किसी समझदार लड़की से हो जाए। ।शांति देवी चाहती ही नहीं थी कि उसकी शादी हो। पर धनसुख दास ने रागिनी को अपनी बहु बनाने का फैसला कर लिया बेटे ने भी पिता की आज्ञा को सिर्फ इसलिए माना क्योंकि बिना पैसे के तो वो ऐश भी नहीं कर सकता था।
इस तरह रागिनी उनके घर में बहु बनकर आ गई।रतन पहली रात ही पी कर आया और रागिनी से साफ शब्दों में कह दिया तुम पिताजी की बहु हो मेरी कुछ नहीं और मुंह घूमा के सो गया।
रागिनी रोती रही क्या करे एक गरीब परिवार की लड़की जिसके मां बाप पर सबकी जिम्मेदारी छोटे भाई बहन सब देखते हुए ही तो रागिनी इस विवाह पर राज़ी हुई। अब धीरे धीरे रजत को धनसुख दास दुकान पर ले जाने लगे।घर से अच्छा खाना आने लगा तो उसे घर के खाने की इच्छा होती धुले कपड़े हर चीज तरतीब से लगी मिलती उसे भी कही रागिनी से जुड़ाव
होने लगा पर ये सब तब था जब वो होश में रहता पीकर तो वो फिर अपने रंग में रंग जाता। एक बार रतन बहुत बीमार हुआ उसे अस्पताल ले जाया गया वहां डॉक्टर ने कहा कि यदि ये ऐसे ही शराब पियेगा तो बहुत जल्दी ये ऊपर पहुंच जाएगा।उसके बाद रागिनी बहुत ध्यान रखती की वो शाम को सीधा घर आए
वो खुद उसे लेने जाती धनसुख दास खुश थे मेरा निर्णय सही था। वहां शांति देवी को रागिनी पसंद ना थी तानों में कहती की गरीब परिवार की लड़की ले आए सब मिल गया है इसलिए इतराती है।पर अजीत और राजन भाभी को बड़ा मान देते वो उनकी पढ़ाई में प्रोजेक्ट बनाने में सहायता करती। कुछ साल बीते अब रतन कारोबार संभालने लगा था
दोनो भाई भी पढ़ाई पूरी करने वाले थे।एक दिन धनसुख दास ने अपने वकील मित्र श्याम लाल को बुला वसीयत कर दी।कुछ रोज बाद ही धनसुख दास और शांति देवी बनारस गए और कार दुर्घटना में उन दोनों की मौत हो गई।घर में मातम पसरा हुआ था सब दिन पूरे हुए और वकील साहब वसीयत ले कर आए
उन्होंने सारी जायदाद रागिनी के नाम की थी और जब बच्चे बड़े हो जाए उनकी पढ़ाई पूरी होने पर वो अपने हिसाब से सब देखे तीनों भाई गुस्से में आग बबूला हो गए पिताजी को हम पर यकीन नहीं था सब तुम्हारे नाम कर गए।रागिनी बोली मै किसी का बुरा नहीं करूंगी वो मात्र मुझे इस जायदाद को संभालने की जिम्मेदारी दे गए है
ये तो आप सबका ही है और अजीत और राजन से बोली तुम अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ।रागिनी के बच्चे अजय और आशा भी अब स्कूल जाते थे। उधर अब सिर पर कोई न होने से रतन फिर बुरी संगत में पड़ गया रोज पीने लगा रागिनी को मारता और एक रात पी कर किसी से झगड़ा हुआ और उसका कत्ल हो गया।
रागिनी पर अब घर व्यापार सब की जिम्मेदारी थी उसके पिता और भाई उदय व्यापार संभाल रहे थे।रागिनी सब अच्छे से संभाल रही थी।अजीत ने अपनी पढ़ाई पूरी की तो रागिनी ने उससे कहा अब तुम कारोबार संभालो नाना जी और मामा जी तुम्हारी सहायता करेंगे।अजीत कुछ दिनों में सब सीख गया रागिनी के बच्चे भी अब जवान हो रहे थे।राजन भी अब अपने भाई के साथ कारोबार संभालता था।रागिनी ने कहा अब तुम दोनों का विवाह हो जाना चाहिए
यदि तुम्हे कोई पसंद हो तो बताओ अजीत बोला भाभी मै मेरी बचपन की दोस्त अमिता से शादी करना चाहता हूं और राजन बोला जो आपको पसंद हो।रागिनी अमिता के घर रिश्ता लेने गई वही उसके मामा की लड़की जो अनाथ हो गई थीं प्रिया वो उसे राजन के लिए पसंद आई बच्चो की पसंद से एक ही मंडप में दोनों का विवाह हो गया
अमिता सिर्फ अपने से मतलब रखती जबकि प्रिया भाभी भाभी करती रागिनी के आस पास रहती।अमिता अजीत से कहती जब सब तुम्हारा है तो ये कुंडली जमा कर क्यों बैठी है।अब ये बाते रागिनी के कानो में आने लगी उसका बेटा अजय सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था और उसकी कलेक्टर के पद पर नियुक्ति हो गई।
आशा भी पढ़ लिख कर सरकारी स्कूल में अध्यापिका के पद पर थी और उसका पति राहुल भी अच्छी नौकरी पर था। एक दिन रागिनी ने वकील को बुलाया उस दिन सब घर पर थे उसने अपने बेटे और बेटी को भी बुलाया।वकील ने वसीयत पढ़ी मै रागिनी इस घर की बड़ी बहु आज अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो रही हूं ।
भगवान की असीम कृपा से मेरे बच्चे सदमार्ग से लग गए।मै आपकी अमानत आप लोगों को सौंप रही हूं। अब मैं अपने बेटे अजय के पास रहूंगी।आप लोग अपना घर कारोबार संभाले और मुझे विदा दे।अजीत और राजन बोले नहीं भाभी आप हमारी मां है आप कही नहीं जाएगी। प्रिया बोली मां मुझे फिर अनाथ मत करो।
रागिनी बोली बेटा मै इसी शहर में हु।तुम्हे जब मेरी जरूरत हो मुझे बुला लेना मै आ जाऊंगी। रागिनी अजय का हाथ पकड़कर बाहर आई और अचानक दरवाजे पर गिर पड़ी। सब लोग दौड़े रागिनी के प्राण पखेरू उड़ गए थे जाते जाते भी वो धनसुख दास को दिया वादा निभा गई।
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खुशी