मां का अक्स – डा. मधु आंधीवाल

दीपा किस मनोदशा से गुजर रही थी कोई नहीं समझ पा रहा था । पूरी जिन्दगी औरत क्या दूसरों के लिये ही जीती है। अपनी शायद कोई इच्छा कोई भावना नहीं होती । अजय से जब शादी होकर इस घर में आई तब वह केवल 17 साल की थी । घर में दो देवर दो ननद सास ससुर दादी सास भरा पूरा परिवार था । बहुत खुश थी इतने लोग घर में होगें  पर बहुत जल्दी खुमार उतर गया । सास का ही रुतवा था । दादी सास तो बस चुपचाप एक कमरे में रहती थी । अजय अपने आप में मस्त रहने वाले व्यक्ति । दीपा ने भी सहन करने की आदत डाल ली थी । अब वह भी तीन बच्चो की मां बन गयी थी । सबकी ननद देवर अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त होगये । दादी सास भी परमात्मा में विलीन होगयी । 

       उसकी दोनों बेटियाँ तान्या और मानवी भी शादी होकर घर चली गयी । सासु जी और ससुर जी अब तीनों बेटों के पास समय समय पर रहते । सब कुछ सही चल रहा था बस पति देव का मूड समझ से बाहर था । कभी भी किसी के सामने दीपा की तौहीन कर देना आम बात थी पर दीपा तो उनके हिसाब से बिलकुल ढल गयी थी । बस उसका इस तरह मौन रहना मानवी को दुखी करता था । वह हमेशा तान्या से कहती दी मां कभी अपने मन की बात हमें क्यों नहीं बताती । अब भी पापा अपने भाई बहनों का पक्ष लेते हैं । उसी समय अजय ने अपने बेटा सचिन की शादी रीमा से कर दी । रीमा नये जमाने की नयी सोच की लड़की थी । दीपा की स्थिती तो जब स्वयं शादी होकर आई थी तब भी ऐसी थी और अब और अधिक शोचनीय हो गयी । अचानक अजय को ह्रदय घात हुआ और वह दीपा को अकेले छोड़ कर चले गये । आज होली का दिन दीपा आज बहुत उदास थी क्योंकि रीमा ने बहुत ही चुभती हुई बात सास से कह दी । वह चुपचाप अपने कमरें में बैठी हुई थी आंखों मेंआंसू झिलमिला रहे थे । रीमा ने तो सचिन को भी अपने रंग में रंग लिया था । वह भी उसकी हां में हां मिलाता था । रीमा आज भी सचिन को लेकर मायेके चली गयी । दीपा को अजय की बहुत याद आरही थी । वह सोच रही थी देखो अजय तुमने भी हमेशा मुझे महत्व नहीं दिया और तुम्हारा बहू बेटा भी तुम्हारे पद चिन्हों




चल रहे हैं । 

     इतनी देर में किवाड़ खुली इतनी देर में तान्या और मानवी ने आकर दीपा को पकड़ लिया और बोली मां हैप्पी होली दीपा भावुक होकर दोनों बेटियों को बाहों में भरकर रोने लगी । तान्या बोली मां क्यों हम आपकी परछाई हैं । सब पहले कहते थे ये दोनों मां का अक्स हैं । दीपा सोच रही थी कोई उसको महत्व दे या ना दे बेटियाँ तो उसे समझती हैं ।

स्वरचित

डा. मधु आंधीवाल

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