नीतिका डस्टिंग कर रही थी कि ऊषा आ गई…!!
अरे ! अभी तो मेरी सफाई भी नहीं हुई और तुम आ भी गई…!!
आज एक मैडम नहीं है बाहर गयी हैं तो मेरा काम जल्दी हो गया…मैं करा देती हूँ साथ में..बातें भी करने लगी…!!
मैंने कहा पहले तुम एक हाॅस्टल में काम करती थी ना..फिर वहाँ काम क्यूँ छोड़ दिया…??
क्या बताऊँ मैडम…मेरी ताऊ ससुर की बहू वहाँ खाना बनाती थी तो मुझे भी वही बर्तन व झाड़ू-पोछा करती थी…एक ही जगह जाती थी और पैसे भी अच्छें मिलते थे…पर एक बार मेरे ससुर बिमार पड़ गये तो मालूम पड़ा कि कैंसर है इलाज कराया पर एक बार उनकों हाॅस्पिटल में एडमिट कराया तो थोड़ा आराम आया तो इन्होनें मुझे और देवर को काम पर जाने का बोल दिया…तुम जाओ मैं हूँ यहाँ…हम चलें गये..!!
थोड़ी देर बाद उनका निधन हो गया…तो ताऊ ससुर के बेटे ने वहाँ की मैडम को फोन करके बताया कि ऊषा के ससुर जी का निधन हो गया है तो मुझे व जेठानी को बता दें व जल्दी भेज दें…!!!!
उन्होने बताया नहीं कि काम रह जायेगा…दो बार फोन करने पर भी नहीं बताया गया…उधर ले जाने की तैयारी हो रही थी तो जेठ जी खुद गये और जेठानी जी को चिल्लाने लगे कि ऊषा को तो भेज देती…सुनकर दोनों ही सन्न रह गयी थी…जेठजी को बताया कि हमें तो बताया ही नहीं मैडम ने…जल्दी ही वो वहाँ से आ गये…अंतिम दर्शन तो कर लिये पर सब बातें कर रहे थे…बाद में हम दोनों ने वहाँ की नौकरी छोड़ दी….!!!!
मैडम! आज तक भी कोई बात होती है तो देवरानी इतनी बातें सुनाती हैं कि क्या बताऊँ… सही में जो गलती की ही नहीं उसकी सजा सारी ज़िन्दगी से भुगत रही हूँ…!!!!
ऊषा की बात सुनकर नीतिका अंदर तक काँप गयी व उसे गुस्सा भी बहुत आया रहा था कि गरीब है तो क्या उसकी भावनाओं के साथ ऐसा करना सही है
कभी भी किसी के साथ भी ऐसा नहीं करना चाहिए…!!!!
किसी की भावनाओं को…
यूँ खजंर ना मारना…!!!!
क्यँकि एहसास तो…
गरीब-अमीर में एक से होते है..!!!!
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)