वक्त ने किया क्या हँसी सितम – उमा वर्मा

आज तीस जनवरी है हमारे बाबूजी ( ससुर जी) की पुण्य तिथि ।उनही  की याद में कुछ लिखना चाहती हूँ ।बाबूजी चले गए ।चले तो वे बहुत पहले ही गये थे ।जब मेरे पति और उनके बड़े भाई बहुत छोटे थे।घर के लोगों ने कहा सौतेली माँ के खराब व्यवहार के चलते घर से चले गये।

 लेकिन बाद में कुछ लोगों ने कहा कलकत्ते में उनकी नौकरी थी और किसी ने रूपये पैसे की हेराफेरी कर दिया था और इल्जाम बाबूजी के उपर आ गया जिसके चलते दुखी होकर वे अचानक अम्मा जी को सोते हुए छोड़ कर चुपचाप घर से निकल गये थे ।खैर कारण जो भी रहा हो ।

लेकिन उन्हे  समय का सामना करना चाहिए था और कम से कम अपने पत्नी और बच्चों का तो खयाल करना था ।रोती बिलखती अम्मा जी शान्त हो गई ।परिस्थिति को अपनी नियति मान लिया ।अब वक्त ने उनपर क्या सितम किया, देखिये ।बाबूजी के पिता जी मुंगेर में डी एस पी  थे।वे वहां अकेले रहते थे ।घर में अम्मा जी सौतेली सास के पास दोनों बेटे को लेकर थी।आमदनी का कोई जरिया नहीं था ।गेहूं और चने के मोटे छिलके की रोटी और सोने के लिए टाट का बिछावन, यही मिलता था ।

अगर मुँह खोलती अम्मा जी तो दस गालियां सुनने को मिलती ” बीबी बच्चों को मेरे कलेजे पर मूँग दल ने को छोड़ गया है इसका बाप” अब मै कितना खयाल रखू ? हमसे खातिरदारी नहीं होगी, जो मिला खाओ,और पहनो।देहात  का तौर तरीका अलग था  औरतों का मुँह खोलना बदजुबानी समझा जाता था ।अम्मा बहुत भले घर की थी ।लेकिन ससुराल में सब सहती रही ।

बहुत दुख से समय बीत रहा था ।बच्चे थोड़े बड़े हुए।नाना जी ने आकर पढ़ाई की वयवस्था कर दी।वे तो जब तक रहे बहुत कोशिश किया की अम्मा जी दोनों बच्चों को लेकर उनके साथ रहे ।पर अम्मा जी बहुत स्वाभिमानी थी वे जाने को तैयार नहीं हुई।कुछ साल बीते।बाबूजी एक दम गायब थे तो अब प्रकट  हुए ।किसी आदमी को घर भेज कर बच्चों को बुलाया ।बेटों को खूब प्यार किया और मेवे और मिठाई से जेब भर कर घर भेज दिया ।




घर आने का बहुत आग्रह किया गया ।आश्वासन दिया ” तुम लोग जाओ,पीछे से मै आ जाऊँगा ” पर वे नहीं आए।घर में दादी का वही रवैया रहा ।अचानक मुंगेर से दादाजी एक दिन पधारे ।पोते को छिलके की रोटी खाते देखा ।दादी पर चिल्लाए ” यह क्या हो रहा है घर में, इतना खराब रोटी और नमक” ? कैसे खाना दिया है तुमने ।”” और क्या करें, घर में कुछ रहे तो न पेट भरे इन भुककड़ का।”” दादी का सपाट उत्तर था ।दादाजी  अन्दर गये ।आटे का भरा बोरा लाकर आँगन में पटक दिया ।

“” यह क्या है”? अगर इतना अनाज रहते मेरे बच्चे भूखे रहें तो मेरा होना बेकार है ।मै इन्हे अपने साथ आज ही ले जाता हूँ ।लेकिन अम्मा जी नहीं गई ।उन्हे बाबूजी के लौट आने का इन्तजार करना था ।बेटे और बड़े हुए।बाबूजी नहीं आए।बड़े भाई की शादी तय हो गई ।घर के लोगों ने कहा — ” अब तो चलिए, आपके बेटे की शादी है,पिता का रहना आवश्यक है ” — ” हाँ तो जाओ न तुम लोग, मै समय पर आ जाऊँगा ” ।शादी हो गई ।वे नहीं आए ।अम्मा जी एकदम निराश हो गई ।उनकी उम्मीद खत्म हो गई ।

उनहोंने बाबूजी के नाम का सिंदूर लगाना छोड़ दिया ।वे बहुत दुखी थी न समय पर जाती, न ढंग से साफ कपड़े पहनती ।किसी तरह जी रही थी अपने बेटे के लिए ।दोनों भाई छोटे मोटे नौकरी करते जीवन में आगे बढ़ने लगे थे ।घर में दादी और दादा जी गुजर चुके थे ।अम्मा जी अपने बेटों के साथ शहर आ गई ।फिर छोटे बेटे की शादी तय हो गयी ।भैया उन्हे लाने गये ” चलिए बाबूजी, अन्तिम शादी है ,आप रहेंगे तो अच्छा लगेगा ।आपके आशीर्वाद के बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है ” — ” हाँ, हाँ, तुम चलो।मै ठीक समय पर आ जाऊँगा ” लेकिन वे नहीं आए।शादी  होनी थी, हो गई ।समय के साथ सब कुछ चलता रहता है ।




अपने जीवन में सब कुछ ठीक चलने लगा था ।बस एक बाबूजी की कमी अखर जाती थी ।दोनों भाई बाल बच्चों वाले हो गये ।अपनी अपनी गृहस्थी में सब खुश थे।एक दिन बाजार में हरि काका दिख गये।वे अपने गाँव के ही थे।” हरि काका आप?” हाँ बेटा मै तुम लोगों से मिलने ही वाला था ।तुम्हारे बाबूजी बहुत बीमार हैं ।पटना स्टेशन पर महावीर मन्दिर के बगल में ही रहते हैं ।न खाने का होश है न रहने का ठिकाना है ।

इनहोने सुना तो  तुरंत पटना के लिए रवाना हुए ।पहले तो बाबूजी छिप गये।लेकिन कहाँ जाते।इनहोने कहा ” बाबूजी घर चलिए,मैं आप को लेने आया हूँ ” ।” मै किस मुंह से घर जाउँ? जब जरूरत थी, तुम लोग के लिए कुछ नहीं किया ।अब मै नहीं जा सकता ।मुझे छोड़ दो”।” घर तो आपको चलना ही पड़ेगा।आप का बेटा हूँ आप ही जैसा जिद्दी “। फिर बाबूजी घर आ गये।लम्बी लम्बी दाढ़ी कटवा दी।हमारे बच्चों को बहुत प्यार करते ।हम बहुत खुश थे ।लेकिन अम्मा जी  के मन में उनके प्रति सम्मान नहीं था ।

” अब क्यो आए?, जब बच्चों को पिता की जरूरत थी तब तो छोड़ दिया ।क्या खा रहा है, क्या पहन रहा है कुछ नहीं देखा ।जाईए वहीं चले जाइये ।” छोड़िए न ,अम्मा जी ।वह समय तो बीत गया ।बीते बात को दुहराने से कोई फायदा नहीं है ” धीरे-धीरे अम्मा जी ने भी उन्हें माफ कर दिया ।बाबूजी बीस साल हमारे साथ रहे ।और एक दिन चले गये ।सब कुछ वक्त ही करवाता है ।इनसान के हाथ में कुछ नहीं होता ।सुनने में बहुत अजीब लगता था कि सौतेली दादी इतनी कठोर कैसे हो गई ।

#वक्त 

—- उमा वर्मा, राँची ।

स्वरचित, मौलिक  रचना ।

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