वक्त – पूजा मिश्रा

आज अचानक शुक्ला अंकल से मुलाकात हो गई वह ट्रेन में सामने की सीट पर बैठे थे वह मुझे पहचान गए बोले

  आप मिसेज मिश्रा हैं

जी आप शायद शुक्ला अंकल है

मै भी उन्हें पहचान रही थी परंतु संकोच बस नही बोला था

आप कहा है आजकल

मै अब नवासहर पंजाब में रहता हूं

आप भी कानपुर जा रहे हैं मैने उत्सुकता से पूछा

मेरे दोस्त की बेटी की शादी है उसी में अपने कानपुर शहर को देखने जा रहा हूं ।

आपने कानपुर क्यों छोड़ दिया था अंकल ?

बेटा वक्त ने छुड़वा दिया था

कानपुर में तो आपको बहुत अच्छा लगता था मैं पापा के साथ आपके घर भी आती थी ।

बेटा  ” वक्त बहुत बड़ा सबक देता है जिंदगी को ,”

अक्सर मेरे दादा जी कहा करते थे । सब कुछ इतना बढ़िया था मेरी नौकरी भी मिल में अच्छे पद पर थी फिर क्या चिंता वक्त तो अच्छा था खूब खर्च करता था शान से रहता था ,मेरे खर्चों को देखकर दादा जी को अच्छा नहीं लगता था तभी वह वक्त की बात करने लगते थे ।

घर के बुजुर्ग बड़े दूरदर्शी होते हैं वह जिंदगी की पाठशाला में वक्त की कीमत पढ़ चुके होते हैं हम ही पद के मद में उनकी बातों को अनसुना कर देते हैं लेकिन जब परिस्थिति बदलती है तब बात समझ में आती है ।




ये बात तो है अंकल

एलगिन मिल जो कानपुर शहर की शान थी ये शहर मिलों का शहर था यहां कपड़े की जूट की ,लाल इमली गर्म कपड़ा बनाने की प्रसिद्ध मिले थीं ,मैनचेस्टर था कानपुर ।

कानपुर का बुरा वक्त आया कुछ गलत विचार धारा के लोग मिलों को बरबाद करने आ गए ,कर्मचारियों को भड़का कर रोज हड़ताल कराने लगे उनकी मांगे इतनी ऊंची थी की मिल मालिकों ने नही मानी धीरे धीरे मिले बंद होने लगी मेरी एलगिन मिल भी बंद हो गई ।

  वह बंगला जहां हरियाली थी फूलो की क्यारियां फूलो से भरी रहती थीं माली के बिना वह भी अपनी सुगंध खोने लगी ।

रविवार को घर पर दोस्तो की महफिल भी सूनी होने लगी थी सभी मिल छोड़ कर बाहर जाने लगे कुछ दूसरे शहरों में काम पा गए कुछ बैठे थे ।

मै भी घर में बैठा था बेटी की शादी करनी थी बेटे को इंजीनियरिंग की दिशा में भेजने की कोचिंग करा रहा था       अभी वह ग्याहरवी कक्षा में था ,बेटी एम काम फाइनल में थी ,मैं कानपुर छोड़ने की स्थित में नही था ।

अंकल आपका घर भी तो कानपुर में था ।




      जब मैं अपने पद पर था मेरी पत्नी शुभा अपने आगे बंगले एवम पद के अभिमान में किसी को कुछ समझती नही थी ।मेरे माता पिता भी उससे दूर ही रहते क्योंकि पापा भी अच्छे पद पर सुलझे हुए व्यक्ति थे वह उसकी

शानो शौकत में बाधा नहीं बनना चाहते थे ।

  दादा जी जब जीवित थे तो आते थे मुझे मित व्यई यानी कम खर्च करने पैसा बचाने की राय देते थे जिसे मैं हल्के में लेता था ।जब वक्त निकल गया तब पछता रहा था

अब पछताय का होए जब चिड़िया चुग गई खेत ।

        जो मेरी बेटी की छोटी छोटी चीजों की बहुत तारीफ करते थे उसके लिए रिश्ते बताने लगते थे जब मैं उसके विवाह के लिए बात करता था तब उन्हें मेरे आर्थिक स्थिति पर तरस आता था और वह अब कतराने लगे थे ।

    तीन साल भटकने के बाद पहले से कम वेतन पर ही मैने  पंजाब की एक मिल में नौकरी कर ली थी अपना शहर छोड़ कर पंजाब में बस गया हूं पर अच्छे बुरे वक्त को अच्छी तरह समझ गया हूं कहते हुए उनकी आंखे भर आई ।

मैने विषय बदल दिया उनकी आंखों की नमी को देखकर ।

  #वक्त 

पूजा मिश्रा

कानपुर

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!